मृत्यु हमें नहीं बख्शेगी

मुझे क्वोरा पर जेदिदियाह बेनहुर मार्गोचिस वाइज़ली (Jedidiah Benhur Margoschis Wisely) के उत्तर पढ़ना बहुत पसंद है. वे जीवन के गहरे पहलुओं पर बहुत संजीदगी से लिखते हैं. उनके एक उत्तर ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने झटपट हिंदीज़ेन के लिए उसका अनुवाद कर लिया. लेकिन काम पूरा होने के बाद मैंने यह पाया कि बेनहुर ने अपने उत्तर अनुवाद के लिए उपलब्ध नहीं कराए हैं. इस स्थिति में मेरा अनुवाद व्यर्थ हो जाता इसलिए मैंने इसे यहां प्रस्तु करने का विचार किया है. मैं बेनहुर को इसकी सूचना दूंगा और उम्मीद करता हूं कि वे इसे अन्यथा नहीं लेंगे.


मेरा एक बहुत करीबी दोस्त है. वह बहुत अच्छा डॉक्टर है. बहुत प्यारा पति है. वह अपने बच्चों की देखभाल करने वाला बहुत आदर्श पिता है.

प्रोफेशनली वह बहुत सफल व्यक्ति है. वह अपना खुद का अस्पताल चलाता है… बल्कि अब यह कहना चाहिए कि चलाता था. वह अपने एरिया में भलाई के बहुत से काम करने के लिए प्रसिद्ध था.

वह लोगों की समय पर मदद करता था और वह निस्वार्थ भाव से लोगों के हित के लिए काम करता था. उसके एरिया के लोग उस पर भरोसा करते थे और यह मानते थे कि उसकी दवा से वह बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे. उसमें उनकी बहुत आस्था थी. वह उन लोगों के लिए भगवान या देवता की तरह था.

मेरे फैमिली सर्किल में भी वह अपने कठोर नास्तिक विचारों के कारण बहुत प्रसिद्ध था. तर्क-वितर्क, कार्य-कारण और ऑब्जेक्टिव अप्रोच उसके जीवन का आधार थे.

मेरा परिवार ईसाईयत में बहुत आस्था रखता है, और यही कारण है कि हम उसके विचारों को बहुत अचरज से देखते.

मेरे परिवार में अधिकांश व्यक्तियों की तुलना में वह बहुत संपन्न था. मेरे माता-पिता के पास तो अभी भी कार नहीं है लेकिन इस व्यक्ति के पास 10 साल पहले तीन-तीन कारें थीं.

वह कुत्तों से बहुत प्रेम करता था. उसके पास पांच ऊंची नस्ल के कुत्ते थे. शानदार भोजन, सुंदर घर, बढ़िया लाइफस्टाइल – और इन सब चीजों के साथ-साथ वह भला भी था और परोपकारी भी था. उसका जीवन संतुलित था और उसका व्यक्तित्व करिश्माई था.

वह ऐसा व्यक्ति था जिसे हम परफेक्ट पैकेज कहते हैं और एक युवक के नाते यह स्वाभाविक ही है कि मैं उसे अपना रोल मॉडल मानता था. मैं उसमें एक भी दोष नहीं देख पाता था.

यह मेरी इंजीनियरिंग का आखरी साल था जब हमें पता चला कि उसे पैंक्रिअाटिक कैंसर हो गया है. यह खबर हमारे ऊपर बिजली की तरह गिरी.

हमारा पूरा परिवार उसके घर गया. उसका जीवन किसे टूटते हुए तारे की तरह ढह रहा था.

पूरे कस्बे के लोग सदमे में थे और यकीन नहीं कर पा रहे थे. लोगों ने अपनी समझ के मुताबिक कुछ जायज़ और कुछ बेतुके लेकिन सही प्रश्न भी उठाए कि उसके साथ ऐसा कैसे हो सकता है? हम सभी लोगों में से केवल वही क्यों? एक डॉक्टर के साथ ऐसा कैसे हो सकता है?

उसके घर जाने वालों की भीड़ के साथ-साथ उसकी घड़ी भी टिक-टिक करती जा रही थी. मुझे याद है कि मैं उसके आखिरी 2 महीनों में उसे देखने गया.

मैं जब उसके घर के भीतर गया तो एक पल के लिए मेरी सांसे थम गई.

पर्दों पर धूल चढ़ गई थी. फर्श बहुत गंदा था. घर के बाहर लगे सुंदर पौधे मुरझाने लगे थे. कार को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसे किसी ने कई दिनों से छुआ ही नहीं है. उसके 3 कुत्तों को कहीं भेज दिया गया था या किसी को दे दिया गया था. उसके घर काम करने वाली ने मेड ने मेरी मां को दबे शब्दों में कहा वह वीडियो और हेनरी (बाकी 2 कुत्तों के नाम) को तब तक अपने साथ रखना चाहता है जब तक…

घर के हर व्यक्ति के चेहरे पर मूर्दनी छाई थी. ऐसा लग रहा था जैसे मृत्यु ने कमरों में डेरा डाल लिया हो. पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. कानों को सुन्न कर देने वाला सन्नाटा.

मैं उसके पलंग के सिरहाने तक गया और मैंने यह देखा कि उसके चेहरे की हर रौनक और चमक उसे छोड़कर जा चुकी थी. वह बेरंग और बेजान लग रहा था.

पादरी उसके कमरे में मौजूद था. उसने वहां उपस्थित सभी धर्मों के व्यक्तियों से कहा कि वे उसके लिए प्रार्थना करें. बाइबल की कई प्रतियां रखी हुई थी. कुरान और बाइबल के उद्धरण दीवारों पर चिपकाए गए थे.

उसकी पत्नी ने मुझे कैंसर का डायगनोसिस होने के बाद से ही उसमें आने वाले परिवर्तनों के बारे में बताया.

मैं उस रात उसे हो रही पीड़ा से होने वाले भय से अभी भी बेचैन हो जाता हूं. मैं हॉल में था और उसके कमरे से आने वाली रोने की आवाजों को सुन सकता था.

“कोई मुझे बचा ले! मैं अब यह दर्द सहन नहीं कर पा रहा हूं! जीसस प्लीज! मुझे सुन लो! मैं तुमसे भीख मांगता हूं! क्या कोई भगवान है जो मुझे सुन रहा है?”

मैं उसे 10 साल के बच्चे की तरह रोता हुआ सुन सकता था. मैं उसके हाथ पैरों को पटकने की और नाखून खरोंचने की आवाज सुन सकता था. ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई जमीन पर घिसट रहा हो, छटपटा रहा हो, तड़प रहा हो.

कुछ मिनटों के बाद मैंने सुना “डार्लिंग, मुझे माफ कर दो! प्लीज मुझे माफ कर दो! प्लीज मुझसे यह कहो कि मैं जी जाऊंगा! बस मुझे कह दो! आह… बचा लो!”

और इसके बाद कुछ अस्पष्ट सी आवाजें घुटी हुई सांसे दबी-दबी सी सुनाई देती रहीं. यह सब लगभग 1 घंटे तक चलता रहा और उसके बाद चुप्पी छा गई जो बीच-बीच में उसकी पत्नी की रुलाई से टूट जाती थी.

अगली सुबह उसकी पत्नी ने कहा कि यह तो हर रात का किस्सा बन गया था. उसने कहा कि अब तो वह भी यह चाहने लगी थी कि इतना कष्ट झेलने से अच्छा है कि उसकी मृत्यु हो जाए. मैंने उसे मेरी मां के सीने से लग कर रोते हुए कहते हुए सुना कि “मैं चाहती हूं कि वह मर जाए लेकिन वह कहता रहता है कि कोई चमत्कार हो जाएगा और वह बच जाएगा”.

मैं उसके घर से चला आया और बाद में मेरी मां ने बताया कि उसके अंतिम पल कैसे थे.

वह अचेत होने से पहले सारे देवी-देवताओं के आगे गिड़गिड़ाता रहा, रोता रहा, बिलखता रहा. वह किसी चमत्कार में यकीन करने लगा था और वह अंतिम सांस तक उसकी प्रतीक्षा करता रहा.


हम सभी कितनी विचारधाराओं, मतों, विश्वासों, योजनाओं, नियमों, और नीतियों में यकीन करते हैं और उनसे चिपके रहते रहते हैं.

यह सब सिर्फ एक धोखा है.

जब हमारे फेफड़ों में ऑक्सीजन दौड़ने बंद हो जाती है… जब हमारी शिराओं में रक्त की हर बूंद थम जाती है… जब हमारे जीवन के अंतिम दिन निकट आ जाते हैं… जब हमारे जीवन के अंतिम क्षण प्रकट होने लगते हैं…

जब हमारा जीवन किसी शिखर से ढहने लगता है तब हमारे भीतर का मनुष्य बचने की चाह में छटपटाने लगता है. वह कांपता है, भीख मांगता है, रोता-गिड़गिड़ाता है. अपने जीवन के चारों और हमने जो बड़े-बड़े झूठ बोले हैं वह उन सबको गलत बताने लगता है.

एक-एक ईंट चुनकर आपने जो दीवार बनाई है वह किसी दिन धूल-धूसरित होकर ढह जाएगी. आपका कोई ज्ञान काम नहीं आएगा. यह याद रखिए कि जो व्यक्ति चमत्कार की प्रतीक्षा करता रहा वह बहुत अच्छा डॉक्टर था.

मैं और आप – हम सभी बहुत भंगुर हैं. हम सभी मांसपेशियों के गीले रेशों के पुलिंदे हैं.

झूठा जीवन जीना बंद कर दीजिए. जो आप बनना चाहते हैं, जो आप भीतर से हैं, आप वही बनिए. नास्तिक. धार्मिक. मोटे. पतले. अमीर. गरीब. प्रसिद्ध. अज्ञात.

किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. जीवन को इसकी वास्तविकता में जीने का प्रयास करते हुए जिएं. खूब प्यार करें. खूब जिएं. नफरत को मिटा दें. अहंकार को गला दें.

क्योंकि आप किसी भी तरीके से भी जीवन जीने का चुनाव करें लेकिन मृत्यु आपको बख्शेगी नहीं.

Photo by nikko macaspac on Unsplash

There are 6 comments

  1. Vipul Goyal

    बहुत बढ़िया… सही कहा आप ने… मौत तो आनी ही है.. जिस का जन्म हुआ है उस की मौत निश्चित है फिर डर किस बात का??? गीता में सही कहा है.. गीता मौत से दूर ले जाती है. मृत्यु एक परम और शाश्वत सत्य है.. वैसे भी जो इस संसार की माया को जान जाता है वो मृत्यु से परे हो जाता है…

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  2. राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

    आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन यारी को ईमान मानने वाले यार को नमन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है…. आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी….. आभार…

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  3. कवि कुमार पिंटू

    मेरे चाचा का निधन ठिक इसी कहानी जैसा हुआ हैं ,कैशर से जवानी मे ही मृत्यु हो गई,वे भी बहुत रोये थे,बहुत प्रार्थना की थी,पर बच नही सके, ईश्वर उनकी आत्मा को शांन्ति दे

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