पोइनकेयर रिकरेंस टाइम

पोइनकेयर रिकरेंस टाइम (Poincare recurrence time) गणित और भौतिकी की बहुत जटिल संकल्पना है लेकिन अपने मूल रूप में इसे समझना कुछ आसान है. यह कहती है कि यदि पर्याप्त समय मिले तो कुछ भी संभव हो सकता है. पोइनकेयर रिकरेंस टाइम वह अनुमानित समयसीमा है जिसके बाद ब्रह्माण्ड लगभग आज जैसी अवस्था में स्वयं को दोहराएगा और ऐसा क्वांटम गतिविधियों की अनियमित अस्थिरता (random fluctuations) के कारण होगा. सरल भाषा में कहें तो ‘इतिहास स्वयं को दोहराएगा’, अर्थात अब से लगभग अनंत समय बाद मैं अपने लैपटॉप पर यही लिख रहा होऊंगा जिसे आप पोस्ट होने पर पढेंगे. अनंत समय मैंने इसलिए कहा है क्योंकि ऐसा होने में 10^10^10^10^10^1.1 साल लगेंगे. यह कितना लम्बा समय है इसे यहाँ नहीं लिखा जा सकता. समझने लायक भाषा में कहें तो यह खरबों, खरब, खरब, खरब, खरब वर्ष से भी लंबी कालावधि है.

इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्माण्ड अनंत टाइम और अनंत स्पेस में स्वयं को अनंत बार दोहराता आ रहा है. भारतीय दर्शन में कुछ ऐसी ही बातें पढ़ने को मिलतीं हैं. बौद्ध दर्शन में यह मानते हैं कि हम ब्रह्माण्ड में अनंत बार जन्म ले चुके हैं और सृष्टि के समस्त जीव-जंतु किसी-न-किसी जन्म में हमारे माता-पिता रह चुके हैं इसलिए हमें सबके प्रति आदर व मैत्रीभाव रखना चाहिए.

कुछ वैज्ञानिक यह मानते हैं कि ब्रह्माण्ड में पदार्थ की मात्रा सीमित अर्थात finite है इसलिए समस्त पदार्थ, जो कि कण के रूप में है, उसे सीमित बार ही जमाया अर्थात arrange किया जा सकता है. इस प्रकार वे अनंत बार ब्रह्माण्ड के स्वयं को दोहराने के विचार का खंडन कर देते हैं. यह वाकई बेतुका विचार है कि हमारे शरीर के प्रत्येक अणु-परमाणु आखिर किस प्रकार लगभग अनंत वर्ष बाद इस प्रकार arrange हो जाएँ कि हम पुनः उसी रूप में अस्तित्व में आ जाएँ जिस रूप में हम आज हैं. चाहे जो हो, इस अवस्था की उत्पत्ति के लिए जिस ‘पर्याप्त’ समय की उपलब्धता की बात की जा रही है वह दृश्य ब्रह्माण्ड की उम्र का भी लगभग अनंत गुना ही है. तब तक तो यह ब्रह्माण्ड न जाने कितनी ही बार बन कर बिगड़ चुका होगा.

मैं इन बातों को पढ़ता हूँ तो सोचता हूँ कि कुछ लोग कितनी अजीब और बड़ी-बड़ी बातों के बारे में सोच लेते हैं! बहरहाल, इस संकल्पना में कुछ दम हो तो मुझे आपसे लगभग अनंत काल के बाद ‘दोबारा’ मिलने में ख़ुशी होगी. लेकिन… ज़रा ठहरिये, कहीं ऐसा तो नहीं कि हम लगभग अनंत वर्ष पूर्व पहले ही मिल चुके हों… और वह भी एक बार नहीं बल्कि लगभग अनंत बार!

नहीं दोस्त! इन बातों में कुछ नहीं रखा है. दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है. मैं तो यह मानता हूँ कि:

आज इस वक़्त आप हैं हम हैं,

कल कहां होंगे कह नहीं सकते.

जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें

देर तक साथ बह नहीं सकते.*

* रमानाथ अवस्थी की एक कविता का अंश. Photo by freddie marriage on Unsplash

There is one comment

टिप्पणी देने के लिए समुचित विकल्प चुनें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.