अंतरिक्ष का निर्वात पृथ्वी के वायुमंडल को क्यों नहीं खींच लेता?

निर्वात (vacuum) किसी भी चीज़ को नहीं खींचता. ऊंचे दबाव पर स्थित किसी पदार्थ को रोक सकने वाली कोई चीज़ नहीं हो तो वह निर्वात में फैल जाता है.

बहुत से लोग इस बात का अनुमान नहीं लगा सकते कि समुद्र के स्तर पर हवा कितनी भारी होती है. हमारे घर के एक घन मीटर आयतन में मौजूद हवा का भार लगभग 1.2 किलो होता है! इस तरह एक औसत कमरे में मौजूद हवा का भार 50 से 100 किलो तक हो सकता है. एक घर में कैद सारी हवा का भार एक टन तक हो सकता है.

यही भार हवा को पृथ्वी के गुरुत्व के कारण वायुमंडल में कैद रखता है. वायुमंडलीय दबाव की उत्पत्ति भी इसी के कारण होती है. धरातल पर एक वर्ग मीटर क्षेत्र के ऊपर मौजूद हवा के कॉलम का भार लगभग 10 टन होता है. सामान्य भाषा में इसे 1 किलो प्रति वर्ग सेंटीमीटर या 15 साई (psi) कहते हैं. हम इस दबाव का अनुभव नहीं कर पाते क्योंकि हम हमेशा ही वायु से घिरे होते हैं और हमें इस दबाव की आदत हो जाती है. आंधी-तूफ़ान चलने पर हमें इस दबाव के प्रभाव का पता चलता है.

केवल हाइड्रोजन और हीलियम जैसी बहुत हल्की गैसें ही पृथ्वी के वायुमंडल के सबसे बाहरी छोर तक जाकर अंतरिक्ष में विलीन हो पाती हैं. यहि कारण है कि वायुमंडल में इस गैसों की मात्रा बहुत कम है.

सबसे भारी गैसें पृथ्वी के धरातल पर तैरती रहती हैं और हल्की गैसें कम सघनता के कारण ऊपर उठती जाती हैं. जब हाइड्रोजन और हीलियम जैसी बहुत हल्की गैसें ऊपर उठती हैं तो हवा का दबाव भी कम होता जाता है क्योंकि भारी गैसें पीछे छूट जाती हैं. वायुमंडल की सबसे बाहरी परतों में हवा इतनी पतली होती है और दबाव इतना कम होता है कि हल्की गैसों को बाहर निकलने के लिए बल नहीं मिल पाता. यदि वे वायुमंडल के बाहर चली जाती हैं तो अंतरिक्ष में विलीन हो जाती हैं.

हाइड्रोजन के साथ समस्या यह है कि ऊपर जाते समय यह वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके पानी बना लेती है जो भारी होने के कारण नीचे आ जाता है. इसके अलावा पृथ्वी पर हाइड्रोजन की मात्रा इतनी अधिक है कि यह कभी भी समाप्त नहीं होगी.

लेकिन हीलियम का मामला कुछ दूसरा है. यह अक्रिय या नोबल गैस होने के कारण किसी भी पदार्थ से प्रतिक्रिया नहीं करती. यह पृथ्वी के भीतर से प्राकृतिक गैस के रूप में नकलती रहती है और इसे किसी भी तरह आसानी से नहीं बनाया जा सकता. हीलियम से भरा कोई गुब्बारा फूट जाने पर हीलियम बिना किसी रुकावट के ऊपर उठती जाती है और वायुमंडल से बाहर निकलकर अंतरिक्ष में खो जाती है. एक बार अंतरिक्ष के निर्वात में चले जाने पर यह हमेशा के लिए खो जाती है.

Featured image Earth’s Atmosphere at Sunrise (NASA, International Space Station Science, 11/03/07)

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