हां. हबल ने 1997 में सबसे पहले अंतर्मंदाकिनीय तारों को खोजा. लेकिन हमें अभी तक इसके प्रमाण नहीं मिले हैं कि इन तारों के ग्रह भी हैं या नहीं. ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार के बहुत से तारे दो मंदाकिनियों की टक्कर के समय मंदाकिनियों के गुरुत्व से बाहर निकल जाते हैं. बहुत संभव है कि इन तारों में से कुछ के चारों ओर इनके ग्रह परिक्रमा करते हों.
यदि इन तारों के किसी ग्रह से आप रात के आकाश को देखेंगे तो आपको ग्रहों के उपग्रह और समीपस्थ मंदाकिनियों के धुंधले धब्बे जैसी आकृतियों के सिवाय कुछ और नहीं दिखेगा. हमें पृथ्वी पर रात्रि के आकाश में दिखनेवाले लाखों तारे वहां नहीं दिखेंगे क्योंकि उनके हजारों-लाखों प्रकाश वर्ष दूर-दूर तक कोई तारे नहीं हैं.
ऐसे किसी ग्रह पर रहना बहुत अद्वितीय अनुभव होगा. ऊपर दिए गए फोटो को देखकर आप धोखा मत खा जाइए. इस प्रकार के फोटो कलाकार लोग फोटोशॉप वगैरह की सहायता से बनाते हैं. यदि पृथ्वी के समीप स्थित एंड्रोमेडा गैलेक्सी हमें पृथ्वी से दिखती तो वह इतनी बड़ी ही दिखती लेकिन इतनी चमकदार नहीं दिखती. वास्तविकता में हमें मंदाकिनी किसी बहुत धुंधले धब्बे जैसी ही दिखाई देती. बहुत अच्छे बाइनोकुलर से लोगों को मंदाकिनी के केंद्र में स्थित बल्ज भी दिख सकता.
इस प्रकार दो आकाशगंगाओं के बीच में स्थित तारों के ग्रहों पर रहनेवालों रात्रि के आकाश में को दूर-दूर स्थित मंदाकिनियों की धुंधली आकृतियों के सिवाय और कुछ नहीं दिखेगा. हम पृथ्वीवासियों के लिए यह अनुमान लगाना कठिन है कि अन्य ग्रहों पर रहनेवाले एलियंस की दृष्टि या देखने की क्षमता हमसे बहुत भिन्न भी हो सकती है. यदि उनकी देखने की क्षमता बहुत अधिक विकसित हुई तो उनके लिए रात्रि के आकाश के अवलोकन करने से अच्छा मनोरंजन और कुछ नहीं हो सकता.
हो सकता है कि इस प्रकार के तारों की संख्या हमारे अनुमान से कहीं अधिक हो. जब कभी दो मंदाकिनियां टकराती हैं तो बहुत से तारे अंतर्मंदाकिनीय अंतरिक्ष में फिंका जाते हैं. हाल में ही बहुत दूर स्थित एक धुंधली चमक का विश्लेषण करने पर यह अनुमान लगाया गया है कि हमारे ब्रह्मांड में लगभग आधे तारे इसी प्रकार के अनाथ तारे हैं. यह तारों की बहुत बड़ी संख्या है फिर भी हमें दो मंदाकिनियों के बीच तारों का अंबार लगा नहीं दिखता क्योंकि ये तारे एक दूसरे से इतनी दूर-दूर हैं कि इनका प्रकाश भी एक-दूसरे तक पहुंचते हुए क्षीण हो जाता है.
यह ज़रूरी नहीं है कि मंदाकिनियों के टक्कर से ही तारे बाहर फिंका जाते हों. कभी-कभी कोई तारा अपनी मंदाकिनी के केंद्र में स्थित ब्लैक होल के बहुत निकट पहुंच जाता है और उसकी गति इतनी अधिक हो जाती है कि वह प्रकाश की गति के कुछ अंश से गति करते हुए गुलेल से निकले पत्थर की भांति मंदाकिनी से बाहर चला जाता है. इस तारे की गति प्रकाश की गति के दसवें से लेकर पांचवे भाग तक हो सकती है. खगोलशास्त्रियों ने हालांकि कुछ बहुत तेज गतिमान तारे देखे हैं लेकिन उन्हें अभी तक ऐसे कोई हाइपरवेलोसिटी तारे (hypervelocity stars) नहीं मिले हैं जो इतनी अधिक गति से चल रहे हों. लेकिन हर घन मेगा पारसेक (cubic megaparsec) अंतरिक्ष में इस प्रकार के हजारों तारे हो सकते हैं. यह अंतरिक्ष का बहुत बड़ा क्षेत्र है क्योंकि एक घन मेगा पारसेक अंतरिक्ष के घन के एक पृष्ठ का क्षेत्रफल30.262 लाख प्रकाश वर्ष होगा.
अपने निर्माण के समय से ही ये तारे ब्रह्मांड में अरबों प्रकाश वर्ष की दूरी तय कर चुके होंगे. हो सकता है कि ऐसे अनेक तारे अपने साथ परिक्रमा करते हुए ग्रहों को लेकर अंतरिक्ष में निरुद्देश्य भटक रहे हों. ब्रह्मांड के एक कोने से दुसरे कोने तक जीवन को फैलाने में भी इनकी बड़ी भूमिका हो सकती है. (चित्र गूगल से)
अपने नाम-उपनाम को सार्थक करता एक बेहतरीन ब्लॉग
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