याग्यु ताजिमा महान तलवारबाज़ था और उस समय के शोगन तोकुगावा लेमित्सू के विद्यालय में अपनी कला की शिक्षा देता था. एक दिन लेमित्सू के एक निजी रक्षक ने गुरु याग्यु से उसे तलवारबाजी की कला में पारंगत करने का अनुरोध किया.
गुरु याग्यु ने कहा, “तुम्हें देखकर मुझे ऐसा लगता है कि तुम तलवारबाजी की कला में पहले से ही सिद्धहस्त हो. मुझे बताओ, तुमने किस मठ में शिक्षा पाई है ताकि हम गुरु-शिष्य का संबंध स्थापित कर सकें”.
रक्षक ने कहा, “मुझे यह कहते हुए शर्मिंदगी हो रही है पर मैंने किसी से भी तलवारबाजी की शिक्षा नहीं ली है”.
गुरु याग्यु बोले, “क्या तुम मुझे अँधेरे में रखना चाहते हो? मैंने स्वयं आदरणीय शोगन को सिखाया है और मैं यह जानता हूँ कि मेरी पारखी नज़र धोखा नहीं खा सकती. मैं यह देख पा रहा हूँ कि तुम पहले से ही निष्णात हो”.
“मुझे क्षमा करें, माननीय, लेकिन मैं सत्य कह रहा हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता हूँ”, रक्षक ने कहा.
रक्षक के बार-बार दृढ़तापूर्वक अस्वीकार करने से गुरु भी कुछ क्षणों के लिए सोच में पड़ गए, अंततः वे बोले, “यदि मैंने कुछ कहा है तो उसका भी आधार होगा. मैं आश्वस्त हूँ कि कुछ तो ऐसा है जिसमें तुम निष्णात हो पर मुझे वह पता नहीं चल पा रहा है”.
“आप पूछ रहे हैं तो मैं आपको यह बताता हूँ कि एक ऐसी चीज़ है जिसमें मैं निपुण हूँ. जब मैं छोटा लड़का था तब मुझे यह लगने लगा था कि समुराई होने के नाते मुझे किसी भी परिस्तिथि में मृत्यु से भयभीत नहीं होना है. कुछ वर्षों तक मुझे मृत्यु से भय लगता रहा पर अंततः मैंने उसपर विजय प्राप्त कर ली. मृत्यु का विचार मुझे चिंता में नहीं डाल सकता, संभवतः आपने इसी बात को भांप लिया है”.
“हाँ, बिलकुल वही!”, गुरु याग्यु ने उत्साहपूर्वक कहा, “मैं यही कह रहा था. मैं खुश हूँ कि मेरे निर्णय में कोई त्रुटि नहीं थी, क्योंकि तलवारबाजी का सबसे बड़ा रहस्य इसी में है कि इसे सीखनेवाला व्यक्ति मृत्यु की चिंता से मुक्त हो जाये. मैंने सैंकड़ों शिष्यों को इसी मान्यता को केंद्र में रखकर शिक्षा दी है पर उनमें से कोई भी वास्तव में परिपूर्ण तलवारबाज कहलाने का पात्र नहीं है. तुम्हें किसी तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि तुम पहले से ही इसमें निपुण हो”. (image credit)
अच्छी शिक्षा!
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निशांत जी ,
आप हमेशा बेहतर कथायें चुनते हैं , इस कथा को पढ़ते हुए जो सूझा वह दर्ज कर रहा हूं ! टिप्पणी लिखता तो लंबी हो जाती इसलिये कथा में निहित / मुझे सूझे, संकेतों का उल्लेख करके, कथन समाप्त कर रहा हूं !
शिशु – प्रश्न , जिज्ञासा
तलवार – वैचारिक परिष्कार का उपकरण
तलवार बाज़ी / समुराईयत – ज्ञान की विधा
भय / मृत्यु – अज्ञान
निष्णात / पारंगत / गुरु – ज्ञानी
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आपने बहुत अच्छा विष्लेषण किया है, अली जी.
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मृत्यु-भय से बाहर निकलना ही सभी विद्याओं और ज्ञान की शीर्ष निपुणता है.
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निष्ठा , समर्पण , और उन सबसे ऊपर भयमुक्त जीवन शैली हमें सिखाने की कला में कुशल नहीं पूर्ण प्रवीन बनता है
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मृत्यु की चिन्ता श्रेष्ठता बाधित करती है..
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बहुत सुन्दर कहानी।
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श्रेष्ठ कथा जो शिक्षा का तत्त्व बताती है. बहुत सुंदर.
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बहुत बढ़िया कथा……
बेहतरीन ब्लॉग.
बधाई.
अनु
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वाह, बिल्कुल उस तरह कि निष्णात ब्लॉगर वह जो आलोचना के भय को लांघ चुका हो!
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केवल तलवारबाजी ही क्यों, मैं सोचता हूं कि कोई भी विधा अंतत: भय से मुक्त कर देती है।
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