ज़िज्हांग पूरे चीन में कन्फ्यूशियस को खोज रहा था. देश बहुत बड़े उतार-चढ़ाव से गुज़र रहा था और सभी के मन में अराजकता और रक्तपात का भय समाने लगा था.
उसने कन्फ्यूशियस को बरगद के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न देखा.
“मास्टर! हम चाहते हैं कि आप सरकार की सहायता करें. आपके मार्गदर्शन के बिना यह देश बिखर जाएगा”
कन्फ्यूशियस बस मुस्कुरा दिया.
“मास्टर, आपने हमें हमेशा कर्म करने की ही शिक्षा दी है”, ज़िज्हांग ने कहा, “आपने ही यह बताया है कि देश और दुनिया के प्रति हमारे क्या कर्तव्य हैं!”
“मैं देश के लिए प्रार्थना कर रहा हूं”, कन्फ्यूशियस ने कहा, “और उसके बाद मैं मोहल्ले के व्यक्तियों की मदद करने के लिए जाऊँगा. अपनी सीमाओं और परिवेश के भीतर रहकर ज़रूरी काम करके हम सभी का हित कर सकते हैं.”
“यदि हम दुनिया को बचाने के उपाय ही खोजते रहेंगे तो हमारे हाथ कुछ नहीं आएगा. हम अपनी सहायता भी नहीं कर पायेंगे.”
“राजनीति से सम्बद्ध होने के सैंकड़ों तरीके हैं, उसके लिए मुझे सरकार का अंग बनने की आवश्यकता नहीं है”.
हमारे लिए एकदम प्रासंगिक और सनातन भी.
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सामयिक और सार्थक..
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zindagi mai apne aap ko samjna sabe se badi chaunati hai
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सत्य वचन, लेकिन करना तो है।
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