एक किसान खेत से अपने घर लौट रहा था. उसने रास्ते में एक गधा देखा.
गधे ने किसान से कहा – “सुनो भाई, मैं कोई साधारण गधा नहीं हूँ. ईसा मसीह का जन्म मेरे सामने ही हुआ था. मैं दो हज़ार सालों से इस दुनिया में हूँ और सिर्फ मैं ही इस बात की गवाही दे सकता हूँ.”
विस्मित और भयभीत, किसान सरपट दौड़कर अपने गाँव के चैपल तक गया और वहां पादरी को सारा किस्सा कह सुनाया.
“असंभव!” – पादरी ने हँसते हुए कहा. तब किसान ने उसे दोबारा से पूरी बाद बताई. गधे के कहे एक-एक शब्द को किसान ने दोहराया.
“मैंने कहा न यह नामुमकिन है! कोई भी पशु मनुष्यों की तरह नहीं बोल सकता” – पादरी ने कहा.
“लेकिन आप सिर्फ एक बार मेरे साथ चलकर उसकी बात सुन लीजिये” – किसान अपनी बात पर अड़ा रहा.
पादरी ने कहा – “भाई मुझे तो तुम ही पूरे गधे लग रहे हो जो एक पढ़े-लिखे पादरी की बात को छोड़कर एक गधे पर यकीन कर रहे हो!”
ऐसे लोग बहुतायत में हैं, तीनों में से जो था, उसे नहीं कहा गया।
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परेशानी तो यही से शुरू होती है जो पड़ा लिखा या उचे पद पर बैठा है वह यह मानने को तैयार ही नही होता की मेरे ग्यान से बडकर भी कुछ हो सकता है
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किसान की बात की सत्यता परख लेने में कोई हानि न थी,लेकिन शिक्षित होने के दंभ ने पादरी को ऐसा न करने दिया…
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टिप्पणी दो-तीन बार मिटा चुका, ‘अनेकांतिक’ और नाजुक कहानी है, अब मनन कर रहा हूं.
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dar-asal kahani padhkar to paadri zyada gadha lag raha hai….kisan to anpadh tha par agyani nahin .
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आप इन प्रेरक कथाओं को सिलसिलेवार प्रस्तुत करके बहुत नेक काम कर रहे हैं। कोटिशः बधाई और धन्यवाद।
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it seems, this story is not complete, because it doesn’t have any sense, it is just like a joke
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मैं कुछ अलग तरीके से सोच रही थी. बढ़िया कहानी है.
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बढ़िया प्रसंग. सच अपनी सहजता में सामने होता है, ज्ञान अपने दंभ में उसे स्वीकार नहीं पाता है.
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गधा, कौन?
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ढाई आखर पढे और मनन कर सके वह पंडित बाकि कितना भी ज्ञान प्राप्त करले यदि बुद्धि दर्प में डूबी हो तो सब बेकार .पशु की बोली भी सरलता से समझी जा सकती है बशर्त मन सरल हो और दया प्रेम से भरा हो कसी हो तो क्या समझे.
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अच्छी नसीहतों से भरा लेख .धन्यवाद्
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