एक सूफी रहस्यवादी ने मुल्ला नसरुद्दीन और उसके एक शागिर्द का रास्ता रोक लिया. यह जांचने के लिए कि मुल्ला के भीतर आत्मिक जागृति हो चुकी है या नहीं, सूफी ने अपनी उंगली उठाकर आसमान की ओर इशारा किया.
इस इशारे से सूफी यह प्रदर्शित करना चाहता था कि ‘एक ही सत्य ने सम्पूर्ण जगत को आवृत कर रखा है’.
मुल्ला का शागिर्द आम आदमी था. वह सूफी के इस संकेत को समझ नहीं सका. उसने सोचा – “यह आदमी पागल है. मुल्ला को होशियार रहना चाहिए”.
सूफी का यह इशारा देखकर मुल्ला ने अपने झोले से रस्सी का एक गुच्छा निकाला और शागिर्द को दे दिया.
शागिर्द ने सोचा – “मुल्ला वाकई समझदार है. अगर पागल सूफी हमपर हमला करेगा तो हम उसे इस रस्सी से बाँध देंगे”.
सूफी ने जब मुल्ला को रस्सी निकालते देखा तो वह समझ गया कि मुल्ला कहना चाहता है कि ‘मनुष्य की क्षुद्र बुद्धि सत्य को बाँध कर रखने का प्रयास करती है जो आकाश पर रस्सी लगाकर चढ़ने के समान ही व्यर्थ और असंभव है’.
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The Sufi saw that Nasruddin meant: “Ordinary humanity tries to find truth by methods as unsuitable as attempting to climb into the sky with a rope.”
मौन की अभिव्यक्ति, गूंगे का गुड़.
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अहा, बस यही।
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जो उसके लिए अँधेरा है,
मेरे लिए उजाला
अपनी-अपनी नज़रें हैं
पहचाने देखनेवाला !
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आज यही हल है
सटीक..
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सच के बारे में एक और सच !!!
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निशांत जी …मनुष्य की क्षुद्र बुद्धि सत्य को बाँध कर रखने का प्रयास करती है जो आकाश पर रस्सी लगाकर चढ़ने के समान ही व्यर्थ और असंभव है.सच में तो एक बिंदी भी कोई जोड़ घटा नहीं सकता पर झूंठ कितना चाहो बढ़ाई जा सकती है कोई अंत ही नहीं झूट का .
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सही है, जहाँ बुद्धि की हद खत्म होती है, वहीं से सत्य की तरफ जाने वाली राह खुलती है।
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बुद्धि शायत कई अलामतों की जड है। आपको सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
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