एक गुरु नदी के किनारे अपने शिष्य के साथ बैठकर वार्तालाप कर रहा था.
शिष्य अभी बहुत छोटा था और उसने गुरु से अच्छाई और बुराई के बारे में कुछ पूछा.
“तुम जानते हो, हमारे भीतर हमेशा एक युद्ध चलता रहता है” – गुरु ने शिष्य से कहा – “दो भेड़ियों के बीच एक अंतहीन रक्तरंजित युद्ध”.
“पहला भेड़िया बुरा और वीभत्स है. वह क्रोध, शत्रुता, लोभ, निंदा, दुःख, पश्चाताप, हीनता, असत्य, अंहकार, स्वार्थ, दंभ, अवसरवादिता, प्रमाद, हठ, और मत्सर्य आदि से बना है”.
“और दूसरा भेड़िया अच्छा और सुन्दर है. वह मित्रता, प्रसन्नता, शांति, प्रेम, आशा, मानवता, दयालुता, दान, न्याय, समानुभूति, सत्य, करुणा, नैतिकता, और गहनता आदि से बना है”.
“ऐसे ही दो भेड़ियों के बीच तुम्हारे भीतर भी द्वंद्व छिड़ा हुआ है… और हर मनुष्य के भीतर भी”.
शिष्य ने बहुत तल्लीनता और चिन्तनपूर्वक गुरु की बात सुनी. फिर उसने गुरु से पूछा – “इनमें से कौन सा भेड़िया जीत जाता है?”
गुरु ने कहा – “वह जिसे तुम भोजन और पोषण देते हो”.
चित्र साभार – फ्लिकर
(Two warring wolves – story about goodness and evil – in Hindi)
A Native American grandfather was talking to his grandson about how he felt.
He said, “I feel as if I have two wolves fighting in my heart.
One wolf is the vengeful, angry, violent one.
The other wolf is the loving, compassionate one.”
The grandson asked him, “Which wolf will win the fight in your heart?”
The grandfather answered, “The one I feed.”
प्रेरक।
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बात तो सच है।
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अबसोलुतेली राईट, काफी प्रेना मिली इसे पड़ने के बाद
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