अफ़्रीका के जंगलों से गुज़रते समय एक नास्तिक वैज्ञानिक विकासवाद के कारण अस्तित्व में आए प्राकृतिक सौंदर्य की सराहना करता जा रहा था.
“कितने सुंदर विराट वृक्ष! कितनी वेगवती नदियां! कितने सुंदर प्राणी! और यह सब किसी के हस्तक्षेप के बिना अपने आप ही घटित हो गया! दुनिया में केवल अज्ञानी और कायर ही हैं जो किसी अज्ञात शक्ति के भय से ग्रस्त होकर चमत्कारिक ब्रह्मांड के अस्तित्व का श्रेय नाहक ही ईश्वर को देते हैं.”
तभी उसके पीछे झाड़ियों में कुछ आहट हुई. एक शेर नास्तिक पर झपटा. उसने भागने की कोशिश की लेकिन शेर ने उसे चित कर दिया.
जब कोई राह न सूझी, नास्तिक के मुंह से निकल पड़ा, “भगवान बचाओ!”
और एक चमत्कार हुआ: सब कुछ थम गया. वातावरण में दिव्य प्रकाश व्याप्त हो गया और एक आवाज़ आई:
“तुम क्या चाहते हो? इतने वर्षों तक तुम मेरे अस्तित्व को नकारते रहे और दूसरों को भी यह समझाते रहे कि ईश्वर का कोई वजूद नहीं है. तुमने मेरी रची दुनिया को महज़ “घटनाओं का संयोग” कहा.
नास्तिक को अचरज में कुछ न सूझा, वह बोला:
“सिर्फ इसलिए कि मैं अगले ही पल मरनेवाला हूं, मैं पाखंड का आश्रय नहीं लूंगा. मैं पूरी ज़िंदगी यही सिद्ध करता रहा हूं कि तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है.”
“अच्छा, तो अब तुम मुझसे क्या चाहते हो?”
नास्तिक ने एक पल को विचार किया. वह जानता था कि अब किसी संवाद की गुंजाइश नहीं थी. अंततः उसने कहा:
“मैं नहीं बदल सकता लेकिन यह शेर तो बदल सकता है. तुम इस खूंखार भयानक शेर को आस्थावान ईसाई बना दो!”
उसी क्षण दिव्य प्रकाश लुप्त हो गया. जंगल में चिड़ियों की चहचहाहट फिर से सुनाई देनी लगी. शेर नास्तिक के ऊपर से उतर गया. उसने श्रृद्धा से अपना सर झुकाया, और नम्रतापूर्वक बोला:
“हे ईश्वर, मेरी भूख मिटाने के लिए तूने अपार उदारता दिखाई और मुझे यह भोजन सौंपा. तुझे लाख-लाख धन्यवाद प्रभु…”
Very nice story.
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जय हो!
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कहानी कुछ भी बनाई जा सकती हे। तुमने कहा और हम मान लेंगे ? कोई बिजली नहीं चमकी और कोई प्रकट नहीं हुआ। शेर उस scientist को खा गया। कहानी ख़तम। यह ही वास्तविकता हे।
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