“सबसे महान तलवारबाज़ कौन है?”, योद्धा शिष्य ने अपने गुरु से पूछा.
“तुम आश्रम के पास स्थित खेतों की ओर जाओ,” गुरु ने कहा, “वहां खेत में एक बड़ी चट्टान है. तुम उस तक जाओ और उसका अपमान करो.”
“लेकिन मैं ऐसा क्यों करूं?” योद्धा ने आश्चर्य से पूछा, “चट्टान मुझे कोई उत्तर नहीं देगी.”
“तब तुम उसपर अपनी तलवार से प्रहार करना,” गुरु ने कहा.
“लेकिन यह सब करने से क्या होगा?”, योद्धा ने कहा, “मेरी तलवार टूट जाएगी. यदि मैं चट्टान पर हाथों से प्रहार करूंगा तो मेरी उंगलियां चोटिल हो जाएंगी लेकिन चट्टान पर कुछ असर नहीं होगा. मैने तो आपसे विश्व के सबसे महान तलवारबाज़ के बारे में पूछा था?”
“महानतम तलवारबाज़ वह है जो उस चट्टान की भांति है,” गुरु ने कहा, “वह अपनी तलवार को म्यान से निकाले बिना ही यह दिखा देता है कि वह अपराजित है.”
बहोत मर्म वाली बात – सबसे अच्छा तलवारबाज़ वह है जो उस चट्टान की भांति है,” गुरु ने कहा, “वह अपनी तलवार को म्यान से निकाले बिना ही यह दिखा देता है कि वह अपराजित है.”
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कहीं दूब की महिमा गायी जाती है, कहीं चट्टान की। शायद काल और परिस्थिति ही सबसे बड़ी तलवारबाज है।
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प्रेरक नसीहत भरी कहानी ,इसीलिए कहते हैं कि जीवन में गुरु का होना जरुरी है
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very good story.
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Bahut Khoob.
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