एक ज़ेन कहानी में यह वर्णित है कि एक व्यक्ति अनियंत्रित घोड़े पर बैठा कहीं भगा जा रहा है. सड़क पर उसे देखने वाला एक आदमी उससे चिल्लाकर पूछता है, “तुम कहाँ जा रहे हो?!” और घुड़सवार उससे चिल्लाकर कहता है, “मुझे नहीं मालूम! तुम घोड़े से पूछो!”
मुझे लगता है कि यह हमारी ही दशा है. हम ऐसे बहुसंख्य घोड़ों पर सवार है और उनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है. विश्व में हथियारों की बढ़त और सभी तक उनकी पहुँच होना भी कुछ ऐसा ही है. इन घोड़ों को बस में करने के लिए हमने बहुत प्रयास किये पर उनका कुछ परिणाम नहीं निकला. ऐसे ही बहुत से जंजाल में हम उलझे हुए हैं और हमारे पास उनसे बाहर निकलने के लिए समय भी नहीं है.
बौद्ध मत में जागरूकता के विचार को बहुत महत्व दिया गया है. इसका अर्थ है यह बोध सतत बने रहना कि हमारे चारों ओर क्या घट रहा है. जागरूकता का यह बोध, न केवल हमारी दृष्टि की सीमा के भीतर, बल्कि उसके परे भी. उदाहरण के लिए, भोजन करते समय हमारा मन इस ओर भी जाए कि पूरी दुनिया में कृषक बंधु अन्न को उपजाने के लिए अंधाधुंध विषैले कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं जो धरती, जल, वायु, और पैदावार को दूषित कर रहा है. ऐसे भोज्य पदार्थों का सेवन हमें अनजाने में ही पर्यावरण का शत्रु बना रहा है यद्यपि इसका कोई विकल्प भी नहीं है. माँस और शराब का सेवन करते समय हमारा ध्यान इस ओर भी जाना चाहिए कि गरीब देशों में प्रतिदिन अनगिनत शिशु भूख से मर रहे हैं क्योंकि इनके (माँस और शराब) उत्पादन के लिए बहुत सारा अनाज व्यर्थ कर दिया जाता है. ऐसे में एक टुकड़ा माँस खाने के स्थान पर एक कटोरा चावल खाने में मुझे भूख की त्रासदी नगण्य ही सही पर घटती दिखती है. फ्रांस में रहनेवाले एक विद्वान ने मुझे एक बार यह बताया कि पश्चिमी देश यदि माँस और शराब के उपभोग में पचास प्रतिशत कमी ले आयें तो विश्व में भुखमरी की समस्या से बहुत हद तक छुटकारा पाया जा सकता है. सोचिये, सिर्फ पचास प्रतिशत कटौती करने से ही हालात कितने बदल सकते हैं!
प्रतिदिन हम बहुत कुछ करते हैं और हम ही वह माध्यम हैं जो शांति की स्थापना कर सकता है. यदि हम अपनी जीवनशैली, उपभोगवादी मानसिकता, और दृष्टिकोण के प्रति जागरुकता लायेंगे तो आज और इसी क्षण से ही परिवर्तन सहज हो जायेंगे. हर रविवार को अखबार उठाते समय हम यह जानने लगेंगे कि विज्ञापनों से पटे हुए इस भारी-भरकम साप्ताहिक एडीशन को छापने के लिए सैंकड़ों वृक्षों की बलि देनी पड़ी होगी. अखबार को उठाते समय हमारे मन में यह बात ज़रूर आनी चाहिए. अपनी सोच और दृष्टिकोण में जागरूकता का समावेश करने पर हम पायेंगे कि हमारे हाथ में बहुत कुछ है. हम चाहें तो बहुत कुछ बदल सकते हैं.
सच बात है, इन घोड़ों पर नियन्त्रण मात्र जागरूकता के माध्यम से हो सकता है।
पसंद करेंपसंद करें
Awareness is vital for efficient as well as quality life 🙂
Nice read
पसंद करेंपसंद करें
जागरुकता नयी दिशाओं के द्वार खोलती है…
पसंद करेंपसंद करें
Nishant Ji,
I read this post via Email Subscription. It is good.
Following your footsteps I have shifted my blog to WordPress. Please visit http://www.achhikhabar.com.
You were the first person to suggested me to change the background color of my blog from black to some other color, after that many more people gave the same feedback, I have now made it White 🙂 hope you would like it.
I have one query for you, how do you change the font size in wordpress? Is there any simple way other than using HTML?
Please answer here itself through your comment.
पसंद करेंपसंद करें
Hello Gopal Ji,
You can change the size of font by clicking an icon in the second toolbar when you compose your post. If you don’t see the second toolbar, click the last icon on the first toolbar.
I’d also suggest you to experiment with other themes also. My theme ‘Mistique’ is great. I love it 🙂
पसंद करेंपसंद करें
Thanks a lot for your reply. And i will definitely keep experimenting 🙂
पसंद करेंपसंद करें
मैं आपसे सौ प्रतिशत सहमत हूँ. अपनी जीवन शैली में छोटी-छोटी आदतों को अपनाकर हम बड़ा-बड़ा काम कर सकते हैं.
पसंद करेंपसंद करें
हम चाहें तो बहुत कुछ बदल सकते हैं| पर इसके लिये बहुत सारे बदलाव की जरूरत है।
पसंद करेंपसंद करें
मन पर नियंत्रण कर ले तो बहुत कूछ बदला जा सकता है ….इसके लिए जागरूकता की बहुत आवश्यकता है …बधाई सार्थक बोध कथा के लिए ….
पसंद करेंपसंद करें
iksha shakti ho to sub kuch sambhav hai agar iksha shakti na ho to ishwar bhi kuch nahi kr sakte.
पसंद करेंपसंद करें
मन के घोड़े पर विवेक की लगाम अत्यंत आवश्यक है
पसंद करेंपसंद करें
बहुत बढ़िया पोस्ट है, शुक्रिया.
पसंद करेंपसंद करें
khud badal gaye to sari duniya badal jayegi. suruat apne se karni hogi.( save earth )
पसंद करेंपसंद करें