इंटरनेट पर व्यक्तित्व विकास के ऊपर बहुत उपयोगी लेखों की भरमार सी हो गयी है. यह स्वाभाविक है कि हर व्यक्ति अपने जीवन के किसी-न-किसी पक्ष में हमेशा ही कुछ सुधार लाना चाहता है इसलिए यहाँ ऐसे बहुत से लोग हैं जो इसकी उपयोगिता को समझते हैं और दूसरों को जाग्रत करने के लिए इसके बारे में बहुत कुछ लिखते भी हैं. जो कोई भी इसपर कुछ लिखता है उसका अपना कुछ अनुभव और रणनीतियां होती हैं इसलिए मैं यह मानता हूँ कि उसकी सलाह में कुछ वज़न होना चाहिए. किसी दूसरे के अनुभव से कुछ सीखने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि यह ज़रूरी तो नहीं कि हम सदैव स्वयं ही गलतियाँ करके सीखते रहें!
तो यह अच्छी बात है कि बहुत से लोग जीवन और कामकाज को बेहतर बनाने के लिए अपने विचार और अनुभव हमसे बांटते हैं. मैं तो यही मानकर चलता हूँ कि ये व्यक्ति जेनुइन हैं और इन विषयों पर जितना पढ़ा-लिखा जाये उतना ही अच्छा होगा. सफलता का कोई एक मार्ग नहीं है जिसपर चलकर आप निश्चित रूप से इसे पा सकें. हर व्यक्ति अपनी बनाई राह पर चलकर ही सफल होता है या स्वयं में उल्लेखनीय परिवर्तन कर पाता है – यह बात और है कि आप दूसरों द्वारा बनाई पगडंडियों का सहारा लेकर आगे बढ़ने का हौसला जुटाते हैं.
इतना सब होने के बाद भी यहाँ ऐसा कुछ है कि बहुत सारे लोग (मैं भी) व्यक्तित्व विकास के भंवर में कूदकर फंस जाते हैं. ज्यादातर लोग ढेरों ब्लॉग्स को बुकमार्क या सबस्क्राइब कर लेते हैं. वे ऐसे बिन्दुओं के बारे में तय कर लेते हैं जिनपर उन्हें काम करना है और अगले दिन से ही जीवन में आशातीत परिवर्तन की अपेक्षा करने लगते हैं. उसके दूसरे दिन वे अपने जीवन में उतारने के लिए कुछ और बातें छांट लेते हैं और नित-नए खयाली पुलाव बनाने लगते हैं.
यहाँ एक ही समस्या है जिससे सभी जूझते हैं और वह यह है कि शॉर्ट-टर्म उपाय कभी भी लॉंग-टर्म सुधार की ओर नहीं ले जा सकते. अपने व्यक्तित्व में दस नए सुधार लाने के स्थान पर यदि लोग केवल चार सुधार ही लागू करने के बारे में सोचें तो भी इसमें सफलता पाने का प्रतिशत नगण्य है. किसी भी व्यक्ति के चित्त की दशा और उसके कामकाज की व्यस्तता के आधार पर तीन या अधिकतम दो सुधार ला सकना ही बहुत कठिन है.
आप चाहें तो एक झटके में ही स्वयं में पांच सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं. उदाहरण के लिए: आप सुबह जल्दी उठना, रोजाना व्यायाम करना, शक्कर का कम सेवन करना, अपनी टेबल को व्यवस्थित रखना, स्वभाव में खुशमिजाजी लाना आदि कर सकते हैं हांलांकि लंबी अवधि के लिए इन सरल उपायों को साध पाना ही कठिन है और अक्सर ही इनमें से एक-एक करके सभी सकारात्मक उपाय आपका साथ छोड़ देते हैं.
आपकी असफलता के पीछे आपका मानसिक अनुकूलन (mental conditioning) है. कुछ रिसर्च में यह पता चला है कि एक सरल आदत को व्यवहार में लाने के लिए अठारह दिन लग जाते हैं और कठिन आदत को साधने में तीस से चालीस दिन लगते हैं. ऐसी रिसर्च कई बार बेतुकी भी होती हैं पर क्या आपको वाकई यह लगता है कि आप अपनी घोर व्यस्त दिनचर्या में तमाम ज़रूरी काम को अंजाम देते हुए अपना पूरा ध्यान पांच नयी आदतें ढालने या सुधारने में लगा सकते हैं?
नहीं. मुझे तो ऐसा नहीं लगता.
ठहरिये. ज़रा सांस लीजिये…
कुछ पल के लिए रुकें. ऐसी एक दो बातों को तलाशिये जो आप वाकई कर सकते हों और अगले दो-तीन सप्ताह तक पूरे मनोयोग से उन्हें साधने का प्रयत्न करें. कुछ समय बाद आपको उन्हें यत्नपूर्वक नहीं करना पड़ेगा और वे आपकी प्रकृति का अंग बन जायेंगीं.
और ऐसा कर लेने के बाद ही आपको यह पता चल पायेगा कि आप किसी नयी आदत या कौशल को साधने के लिए कितने अनुकूल हैं.
मैं आपसे यह नहीं कह रहा हूँ कि व्यक्तित्व विकास के ब्लॉग्स पढ़ना बंद कर दें. कई बार तो ऐसा होता है कि किसी चीज़ को पढ़ने से होनेवाले मनोरंजन से भी उसे पढ़ने का महत्व बढ़ जाता है. जब भी आप मेरे ब्लॉग या अन्य ब्लौगों की पोस्ट पढ़ें तो यह न सोचें कि आपको इन बातों को अपने रोज़मर्रा के जीवन में उतारना ही है – यदि ऐसा है तो आप मेरे प्रयासों को व्यर्थ ही कर रहे हैं. यदि आपको कुछ अच्छा लगे तो आप उसे कहीं लिख डालें और प्राथमिकता के अनुसार उन्हें सूचीबद्ध कर लें. इस सूची में आप वरीयता के अनुसार अपने जीवन में छोटे-छोटे परिवर्तन लाने के लिए किये जाने वाले उपायों को लिख सकते हैं. केवल एक या दो उपायों को अपना लें, उन्हें अच्छी आदत में विकसित करें, और आगे बढ़ जाएँ. इस तरह आप वाकई अपने में कुछ सुधार का अनुभव करेंगे अन्यथा आप केवल सतही बदलाव का अनुभव की करते रह जायेंगे. ध्यान दें, यदि मनोयोग से कुछ भी नहीं किया जाए तो सारे प्रयत्न व्यर्थ जाते हैं और झूठी सफलता को उड़न-छू होते देर नहीं लगती.
अब सबसे ज़रूरी काम यह करें कि इस पोस्ट को स्वयं में सुधार लाने का सबसे पहला जरिया बनाएं… न पांचवां, न सातवाँ, बल्कि सबसे पहला.
कोई भी गलत आदतें पालते नहीं और जीवन में खुश रहने का प्रयास करते हैं। अब समझ ही नहीं आता कि और क्या सुधार किया जाए? बस कोशिश यही रहती है कि हम से किसी और का मन कभी नहीं दुखे। बाकि तो सुधारवादी कदम तो अनन्त हैं। ब्लाग पढ़ने से आत्मावलोकन होता रहता है।
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मानव जीवन और उसका परिवेश इतना जटिल और डायनामिक होता गया है कि उसे फार्मूले में बांधना संभव नहीं है –
किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन भी एक बड़ी चुनौती है -क्योंकि कई ‘लिमिटिंग’ फैक्टर हैं -प्रारब्ध (जेनेटिक प्रिडिस्पोजीशन ),परिवेश आदि, उन्हें कैसे बदलेगें?
कुछ लोगों में बदलावों के प्रति एक झुकाव होता है वे ऐसे प्रयासों के उपयुक्त लक्ष्य समूह हो सकते हैं -मगर क्या हार्ड कोर क्रिमिनल्स क्या ऐसे प्रयासों से भी खुद में सुधार ला सकते हैं ?
मनुष्य परिस्थितियों के चलते अनुकूलित तो हो सकता है मगर व्यवहार परिवर्तन के आर्म चेयर सुझावों से वह बदल जाय -ऐसा मैंने नहीं देखा !
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प्रेरक और अनुकरणीय.
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प्रिय श्रीनिशांतजी, आपने बहुत बढ़िया आलेख लिखा है, बहुत-बहुत बधाई।
मार्कण्ड दवे।
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अनुकरणीय बातें हैं। व्यक्तित्व विकास जितना आवश्यक है, उतना ही इस विकासी-भंवर से तटस्थ रहना भी। गीता वाक्य से कहूँ तो ‘यह योग न ज्यादा जागने से , न कम; न जति आहार से , न अनाहार से …संभव है।’ शुक्रिया!!
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Master of All posts.जिन्होने आपकी पेहली पोस्ट संभाल कर रखीहो तो इस पोस्ट को फ़ाईल् मे सबसे उपर लगा ले , फ़िर् एक सच से रु ब रु करवाया आपने शुक्रिया।
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सुधार के सार्थक उपाय इंगित किए है आपनें निशांत जी।
सुधार को भी स्वयं पर लादा नहीं जा सकता, आदतें सुधारने की प्रक्रिया मन से ही प्रारंभ होती है। सर्वप्रथम मन को दृढ और दृढतर करना होता है, मानसिकता में बार बार दोहराना होता है, जब मन गम्भीरता से सुधार स्वीकार करले, शनै शनै आदत में सुधार सहज सम्भव है।
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कहीं कोई फार्मूला पूरा पूरा फिट होते नहीं दिखता है, बस प्रयास करने में ही लगने लगता है कि किस दिशा राह मिलेगी।
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प्रेरक पोस्ट।
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An really good post. Just want to tell one more thing about your blog. You have changed your blog’s style. But one thing that i liked in your blog in recent time was the header that used to have a beautiful line or some inspiring words. Its okay now also, but that caused me a lot of visit to your blog.
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Thanx for your feedback, my friend. I’ll try and keep changing the header from time to time.
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बहुत अच्छा लेख है। जब किसी चीज को पाने की चाह बढ़ जाती है तो वह चीज मिलकर ही रहती है , यानी जहाँ चाह वहां राह ! मै तो यही मानता हूँ।
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