परमात्मा की पुकार

hafizईरान के सूफ़ी महाकवि हाफ़िज़ {ख्वाज़ा शमसुद्दीन मुहम्मद हाफ़िज़-ए-शीराज़ी (1315 – 1390)} का दीवान अधिकाँश ईरानियों के घर में पाया जाता है. उनकी कविताएँ और सूक्तियां हर मौके पर पढ़ी और प्रयुक्त की जाती हैं.

यह घटना उस समय की है जब हाफ़िज़ अपने गुरु के सानिध्य में ज्ञान और ध्यान की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. आश्रम में और भी बहुत से शिष्य थे. एक रात को गुरु ने सभी शिष्यों को आसन जमाकर ध्यान करने के लिए कहा. आधी रात बीत जाने पर गुरु ने धीरे से कहा – “हाफिज़!”

यह सुनते ही हाफ़िज़ फ़ौरन उठकर गुरु के पास पहुँच गए. गुरु ने उनसे कुछ कहा और ध्यान करने के लिए वापस भेज दिया. इसके कुछ देर बाद गुरु ने फिर किसी और शिष्य को बुलाया लेकिन केवल हाफ़िज़ ने ही उनके स्वर को सुना. सुबह होने तक गुरु ने कई बार अलग-अलग शिष्यों को उनका नाम लेकर बुलाया लेकिन हर बार हाफ़िज़ ही गुरु के समीप आये क्योंकि बाकी शिष्य तो सो रहे थे.

परमात्मा भी प्रतिक्षण प्रत्येक को बुला रहा है – सब दिशाओं से, सब मार्गों से उसकी ही आवाज़ आ रही है लेकिन हम तो सोये हुए हैं. जो जागता है, वह उसे सुनता है… और जो जागता है केवल वही उसे पाता है. – ओशो

(An anecdote of great Sufi mystic poet ‘Hafiz’)

There are 4 comments

  1. seema gupta

    परमात्मा भी प्रतिक्षण प्रत्येक को बुला रहा है – सब दिशाओं से, सब मार्गों से उसकी ही आवाज़ आ रही है लेकिन हम तो सोये हुए हैं. जो जागता है, वह उसे सुनता है… और जो जागता है केवल वही उसे पाता है.
    बेहद सुन्दर विचार
    regards

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  2. Pankaj Upadhyay

    ‘Autobiography of a yogi’ में भी कुछ ऎसा ही कहा गया है कि एक शक्ति हमें अपनी तरफ़ खीचती है.. कहते हैं कि ’हिमालय’ बुलाता है योगियों को… लेकिन वो आवाज और खिंचाव महसूस करना होता है… वैसे मेरा भी वहाँ जाने का मन है..

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