झींगुर

Time Square


अमेरिका का एक मूल निवासी (इंडियन) और उसका एक मित्र न्यू यॉर्क के टाइम स्क्वायर में घूम रहे थे. शाम का वक़्त था और सड़क में बहुत सारे लोग घूम रहे थे. चारों तरफ से गाड़ियों के हॉर्न, ब्रेक, सायरन की कानफोडू आवाजें आ रहीं थीं. साथ चलते हुए व्यक्ति की बातें सुन पाना भी मुश्किल था.

ऐसे में इंडियन ने अपने मित्र से पूछा – “तुम्हें झींगुर की आवाज़ सुनाई दी?”

मित्र ने आश्चर्य से कहा – “कैसी बात करते हो! इतने शोरगुल में तुम्हें झींगुर की आवाज़ सुनाई दे रही है!”

“मैं यकीन से कह सकता हूँ कि मैंने झींगुर की आवाज़ सुनी है.”

“तुम्हारे कान खराब हो गए हैं” – मित्र ने कहा.

इंडियन ने एक पल के लिए ध्यान से सुना. फिर वह सड़क के पार एक दूकान के बाहर लगे सीमेंट के प्लान्टर के पास गया जहाँ कुछ पौधे उगे हुए थे. उसने कुछ पौधों के आगे-पीछे देखा और उसे एक छोटा सा झींगुर दिखाई दे गया. उसका मित्र यह देखकर अचंभित था.

“कमाल की बात है!” – मित्र ने कहा – “तुम्हारे कान तो बिलकुल कुत्ते के कानों की तरह हैं!”

“नहीं यार!” – इंडियन ने कहा – “मेरे कानों में और तुम्हारे कानों में कोई अंतर नहीं है! असल में जो कुछ तुम सुनना चाहते हो वह तुम्हें सुनाई दे ही जाता है”.

“फालतू की बात है” – उसके मित्र ने कहा – “ऐसे शोर-शराबे में मुझे झींगुर की आवाज़ कभी सुनाई नहीं दे सकती”.

“नहीं, ऐसा नहीं है” – इंडियन ने कहा – “मैं फिर से कहूँगा कि जो कुछ हमारा मन सुनना चाहता है वह हमें शोर में भी सुनाई दे जाता है. देखो, मैं तुम्हें बतलाता हूँ कैसे”.

उसने अपनी जेब से दो सिक्के निकाले और धीरे से उन्हें फूटपाथ पर गिरा दिया. उन्होंने देखा कि चारों ओर जारी शोर के बावजूद फूटपाथ पर करीब ही चल रहे लगभग हर व्यक्ति ने ठिठककर देखा कि कहीं उनके सिक्के तो नहीं गिर गए हैं.

“समझ में आया मैं क्या कह रहा था?” – इंडियन ने अपने मित्र से कहा – “जो चीज़ तुम्हारे लिए ज्यादा कीमती है उसे तुम नज़रंदाज़ नहीं कर सकते”.

(A native American/Indian folk tale – cricket – in Hindi)

There are 9 comments

  1. समीर लाल

    चारों तरफ से गाड़ियों के हॉर्न…अमरीका में?? अजब है कथा..यहाँ कहाँ हार्न बजता है. कान तरस जायेंगे सुनने को कार हार्न!! अमरीका और कनाडा में कार के हार्न बजना..बहुत आश्चर्य का विषय है.

    खैर, कथा है बढ़िया…

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  2. प्रवीण पाण्डेय

    श्रवण तन्त्र में कदाचित कुछ तो ऐसा है जिसकी ट्यूनिंग मन करता होगा । जिस पर मन लगा है वही तंरगें उभार कर मस्तिष्क तक भेजता होगा ।

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  3. aradhana

    बिल्कुल सही है…हम जिस आवाज़ को सुनना चाहते हैं, उसे बहुत अधिक शोर में भी सुन लेते हैं. हम चाहें तो इतने शोरगुल में भी अच्छी आवाज़ें सुनी जा सकती हैं…हम चाहें तो…
    अगर अच्छी आवाज़ें नहीं सुनी जातीं तो इसमें दोष हमारा है कि हम उन पर ध्यान नहीं देते न कि आवाज़ का कि वो धीमी है या दबी है.

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