वर्तमान युग में अस्पतालों के प्रबंधन और रोगियों के स्वास्थ्य लाभ में नर्सों का विशेष महत्त्व है. नर्सों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. लेकिन 19वीं शताब्दी के मध्य तक की स्थिति इसके सर्वथा विपरीत थी. नर्स का कार्य बहुत घटिया समझा जाता था. निम्न वर्ग की महिलाएं ही इस पेशे में आती थीं. उनमें से अधिकांश अनपढ़ और चरित्रहीन होती थीं और नशा किया करती थीं. उन्हें अपने कार्य के लिए कोई व्यवस्थित ट्रेनिंग भी नहीं मिलती थी.
इस पेशे को सम्मान दिलाने का श्रेय ब्रिटेन की फ्लोरेंस नाइटिंगेल को जाता है. उनका जन्म 1820 में एक धनी परिवार में हुआ था. उस युग के ब्रिटिश वैभवपूर्ण जीवन के प्रति उन्हें कोई आकर्षण नहीं था और दुखी मानवता के लिए उनके ह्रदय में अपार संवेदना थी.
1840 में इंग्लैंड में भयंकर अकाल पड़ा और अकाल पीडितों की दयनीय स्थिति देखकर वे बेचैन हो गईं. अपने एक पारिवारिक मित्र डॉ. फाउलर से उन्होंने नर्स बनने की इच्छा प्रकट की. उनका यह निर्णय सुनकर उनके परिजनों और मित्रों में खलबली मच गई. उनकी माँ को यह आशंका थी कि उनकी पुत्री किसी डाक्टर के साथ भाग जायेगी. ऐसा उन दिनों शायद आम था.
इतने प्रबल विरोध के बावजूद फ्लोरेंस ने अपना इरादा नहीं बदला. विभिन्न देशों में अस्पतालों की स्थिति के बारे में उन्होंने जानकारी जुटाई और अपने शयनकक्ष में मोमबत्ती जलाकर उसका अध्ययन किया. उनके दृढ संकल्प को देखकर उनके माता-पिता को झुकना पड़ा और उन्हें कैन्सर्वर्थ संस्थान में नर्सिंग की ट्रेनिंग के लिए जाने की अनुमति देनी पड़ी.
1854 में क्रीमियन युद्ध में फ्लोरेंस को “लैंप वाली महिला” (The Lady with a Lamp) का उपनाम द टाइम्स अखबार में छपी इस खबर के आधार पर मिल गया:
“वह तो साक्षात् देवदूत है. दुर्गन्ध और चीखपुकार से भरे इन अस्थाई अस्पतालों में वह एक दालान से दूसरे दालान में जाती है और हर मरीज की भावमुद्रा उसके प्रति आभार और स्नेह के कारण द्रवित हो जाती है. रात में जब सभी चिकित्सक और स्टाफ अपने-अपने कमरों में आराम से सो रहे होते हैं तब वह अपने हाथ में एक लैंप लेकर हर बिस्तर तक जाती है और मरीजों की ज़रूरतों का ध्यान रखती है.”
(चित्र विकिपीडिया से लिया गया है)
(A motivational / inspiring anecdote of Florence Nightingale – in Hindi)
good and nice information ,it motivated us ,keep on writing .
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बहुत आभार इस जानकारीपूर्ण आलेख का. फ्लोरेंस नाईटेंगल की कहानी बचपन में पढ़ी थी.
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The Lady with the Lamp की दास्तान ही उजली है, और अनेकों विमुख मन वालों को समाज सेवा के लिये उन्मुख करने वाली है । इस शख्सियत के परिचय का आभार ।
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रोचक और प्रेरणास्पद .ऐसी ही एक कहानी मैंने यहाँ लिखी थी
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inke baare men padha hai par fir bhi baar baar man karta hai. chitr men to vo bilkul karuna kee moorti lag rahi hai.
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ye nurse k liye prernasrote h or hmesa se inki wajah se nurse ko ek new pehchaan k roop me jaana jaata h
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Inke Baer m Jan k kafi accha LGA .Bachpn se utsukta thi Jane ki Jan k kafi santust hu
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