प्राचीन यूनान में डायोजीनस की ख्याति महान दार्शनिक के रूप में थी। वह सर्वथा नग्न रहता था और सागरतट पर पत्थर के एक टब में दिनभर पड़ा रहता था।
यूनान और आसपास के क्षेत्रों को जीतकर अपने अधीन करने के बाद सिकंदर विश्वविजय करने के लिए निकलनेवाला था। उसने सोचा कि अभियान पर निकलने से पहले डायोजीनस की शुभकामनायें भी ले लेनी चाहिए।
सिकंदर उस जगह गया जहाँ डायोजीनस पानी भरे टब में नग्न लेटा हुआ था। सिकंदर ने उसके पास जाकर कहा – “डायोजीनस, मैं यूनान का राजकुमार सिकंदर हूँ। मैं पूरे विश्व को जीतने के लिए जा रहा हूँ। मेरा अभिवादन स्वीकार करो और बताओ कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ।”
डायोजीनस ने उसकी बात अनसुनी कर दी। सिकंदर विस्मित था। आज तक किसी ने उसकी ऐसी अवहेलना नहीं की थी, लेकिन डायोजीनस के प्रति उसके ह्रदय में सम्मान था। उसने अपनी बात फ़िर से दोहराई।
डायोजीनस ने लेटे-लेटे उसे एक नज़र देखा, और बोला – “हूँ… सामने से ज़रा हट जाओ और धूप आने दो, बस।”
कहते हैं सिकंदर वहां से उदास अपने महल में यह कहते हुए वापस आया – “अगर मैं सिकंदर नहीं होता तो डायोजीनस होता”।
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है…
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sab kuch paakar yahi chonda hai,dhooppaane ka anand alag tha.bahut achhi katha.
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यह कथा मेरे गुरु जी ने भी बताई थी। मेरे लिए प्ररेक भी है।
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जो दिल से डायोजीनस होते हैं वही सिकन्दर बन पाते होंगे।
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