सुकरात को पश्चिमी विद्वानों ने महान यूनानी दार्शनिक माना है, संत नहीं। दूसरी और, हम भारतवासियों ने उनमें आत्मस्थित दृष्टा की छवि देखी और उन्हें संतों की कोटि में रखा। आश्चर्य होता है कि आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व के संसार में सुकरात जैसा क्रन्तिकारी व्यक्तित्व हुआ जिसने मृत्यु का वरण करना स्वीकार किया लेकिन अपने दर्शन की अवज्ञा नहीं की।
सुकरात की पत्नी जेंथीप बहुत झगड़ालू और कर्कशा थी। एक दिन सुकरात अपने शिष्यों के साथ किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। वे घर के बाहर धूप में बैठे हुए थे। भीतर से जेंथीप ने उन्हें कुछ कहने के लिए आवाज़ लगाई। सुकरात ज्ञानचर्चा में इतने खोये हुए थे कि जेंथीप के बुलाने पर उनका ध्यान नहीं गया। दो-तीन बार आवाज़ लगाने पर भी जब सुकरात घर में नहीं आए तो जेंथीप भीतर से एक घड़ा भर पानी लाई और सुकरात पर उड़ेल दिया। वहां स्थित हर कोई स्तब्ध रह गया लेकिन सुकरात पानी से तरबतर बैठे मुस्कुरा रहे थे। वे बोले:
“मेरी पत्नी मुझसे इतना प्रेम करती है कि उसने इतनी गर्मी से मुझे राहत देने के लिए मुझपर पानी डाल दिया है।”
सुकरात का एक शिष्य इस पशोपेश में था कि उसे विवाह करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। वह सुकरात से इस विषय पर सलाह लेने के लिए आया। सुकरात ने उससे कहा कि उसे विवाह कर लेना चाहिए।शिष्य यह सुनकर हैरान था। वह बोला – “आपकी पत्नी तो इतनी झगड़ालू है कि उसने आपका जीना दूभर किया हुआ है, फ़िर भी आप मुझे विवाह कर लेने की सलाह दे रहे हैं?”
सुकरात ने कहा – “यदि विवाह के बाद तुम्हें बहुत अच्छी पत्नी मिलती है तो तुम्हारा जीवन संवर जाएगा क्योंकि वह तुम्हारे जीवन में खुशियाँ लाएगी। तुम खुश रहोगे तो जीवन में उन्नति करोगे और रचनाशील बनोगे। यदि तुम्हें जेंथीप की तरह पत्नी मिली तो तुम भी मेरी तरह दार्शनिक तो बन ही जाओगे! किसी भी परिस्तिथि में विवाह करना तुम्हारे लिए घाटे का सौदा नहीं होगा।”
सुकरात शायद अपनी तरह के अनोखे मनुष्य थे। उनके किस्से पढ़ना अच्छा लगा।घुघूती बासूती
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सच है मित्र… यह बात हर द्रष्टि से सच है।इसमे गहराई भी है तो साथ में हास्य-व्यंग की चुटकी भी :))धन्यवाद इनके लिए..~जयंत
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और सुकरात के उस शिष्य की पत्नी जेंथिप जैसी तो कतई नहीं रही होगी, सो वह दार्शनिक न बन पाया, और मानवजाति एक होनहार और महान दार्शनिक की प्रतिभा से वंचित रह गई. (आज हम उस दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी नाम भी नहीं जानते)
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वाह क्या सकारात्मक सोच थी सुकुरात की .
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यहाँ आना अच्छा लगता है।
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मुझे… शायद क्रम से दोनों फायदे समय समय पर मिलते रहते हैं। 🙂
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हां! मुझे भी सुकरात ने यही कहा था और अब मैं भी दार्शनिक बनने की कोशिश में हूं.
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शादी ऐसा फल है जो खाए वो पछताए और जो न खाए वो भी पछताए। तो खाकर पछताना मेरे हिसाब से ठीक है।
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आज पहली बार यहां आना हुआ । सुकरात के बारे में ग्रेजुएशन के दौरान खूब पढ़ा था । यादें ताज़ा हो गयीं । फिर सुकरात के बारे में पढ़ना रोचक रहा । अफ्रीकी लोककथा भी पढ़ी । और ये तय किया समय मिलते ही आपका ब्लॉग देखूंगी और अब चार महीने के अपने बेटे को अभी से ये नीति कथाएं और लोक-कथाएं सुनानी शुरू कर दूं ।
आगे भी ये सिलसिला जारी रखिएगा ।
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ajj pahli bar yahan ana hooa. bahut achcha laga.
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jentheep the sukurat;s wife is a good example because without her their was no sukurat…
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