आज मैं आपको इस्लाम में सूफी परम्परा की एक अत्यन्त महान महिला संत राबिया के बारे में बताऊंगा। राबिया के विषय में बस इतना ही ज्ञात है कि उनका जन्म अरब में आठवीं शताब्दी में हुआ था। वे साधुओं की भांति समाज से दूर कुटिया बनाकर ईश्वर की आराधना में ही लीन रहती थीं।
उनके बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। उनकी कुटिया में केवल एक चटाई, घड़ा, मोमबत्ती, कुरान और ठण्ड में ओढ़ने के लिए कम्बल रहता था। एक रात एक चोर उनकी कुटिया से कम्बल चुराकर ले जाने लगा। कुटिया से बाहर जाते समय उसने यह पाया कि दरवाज़ा बंद था और खुल नहीं पा रहा था। उसने कम्बल नीचे जमीन पर रख दिया। कम्बल नीचे रखते ही दरवाज़ा खुल गया। उसने कम्बल उठा लिया पर दरवाजा फ़िर से बंद हो गया। उसे कुटिया के कोने से किसी की आवाज़ सुनाई दी:
“उसने तो सालों पहले ही मेरी शरण ले ली है। शैतान भी यहाँ आने से डरता है तो तुम जैसा चोर कैसे उसका कम्बल चुरा सकता है? बाहर चले जाओ! जब ईश्वर का मित्र सो रहा होता है तब स्वयं ईश्वर उसकी रक्षा के लिए उसके पास बैठा जाग रहा होता है।”
मलिक नामक एक विद्वान एक दिन राबिया से मिलने गया। उसने औरों को राबिया के बारे में यह बताया – “उसके पास एक घड़ा है जो वह पीने का पानी रखने और धोने के लिए इस्तेमाल करती है। वह जमीन पर चटाई बिछाकर सोती है और तकिये की जगह पर वह सर के नीचे ईंट लगा लेती है। उसकी गरीबी देखकर मैं रो पड़ा। मैंने उससे कहा कि मेरे कई धनी मित्र हैं जो उसकी सहायता करने के लिए तैयार हैं।”
“लेकिन राबिया ने मेरी बात सुनकर कहा – ‘”नहीं मलिक, क्या मुझे जीवन और भोजन देनेवाला वही नहीं है जो उन्हें भी जीवन और भोजन देता है? क्या तुम्हें यह लगता है कि वह गरीबों की गरीबी का ख्याल नहीं रखता और अमीरों की मदद करता है?”‘
मलिक – “मैंने कहा ”नहीं राबिया”।
राबिया बोली – “तुम ठीक कहते हो। जब उसे मेरी हालत का इल्म है तो मैं उससे किस बात का गिला-शिकवा करूँ? अगर वह मुझे ऐसे ही पसंद करता है तो मैं उसकी मर्जी से ही रहूंगी।”
एक दिन लोगों ने राबिया को दौड़ते हुए देखा। उसके एक हाथ में जलती हुई टहनी थी और दूसरे हाथ में पानी का बर्तन। किसी ने पूछा – “ओ राबिया, तुम कहाँ जा रही हो और क्या कर रही हो?”। राबिया ने कहा – “मैं स्वर्ग में आग लगाने और नर्क की लपटें बुझाने जा रही हूँ। ऐसा होने पर ही तुम यह जान पाओगे कि ये दोनों भ्रम हैं और तब तुम अपना मकसद हासिल कर पाओगे। जब तुम कोई परम सुख की कामना नहीं करोगे और तुम्हारे दिल में कोई उम्मीद और डर न रह जाएगा तभी तुम ईश्वर को पा सकोगे। आज मुझे कोई भी आदमी ऐसा नहीं दिखता जो स्वर्ग की लालसा और नर्क के भय के बिना ईश्वर की आराधना केवल ईश्वर को पाने के लिए करता हो।”
Photo by Tom Ezzatkhah on Unsplash
rabiya yaani …..ishwar ke bahut najdeek…bahut pyaari katha hai….shukriya
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man ko bhane walli
essi katha mere sad guru osho bhi bahut bar kahate hain dhanyabad apka jo ………..
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सुन्दर ! प्रेरणादायक कहानियाँ।घुघूती बासूती
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बहुत सुँदर कथाएँ हैँ राबिया की भक्ति की कथा सँत तुलसी दास जी से मिलती है श्री राम व लक्ष्मण जी भी बाबाजी की कुटीया का पेहरा देते थे ऐसा प्रसँग भी पढा है ..- लावण्या
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बहुत साल पहले मुस्लिम रहस्यवाद की जननी राबिया पर एक किताब पढ़ी थी। निशांतजी राबिया के बारे में जितनी कहानियां सामने आए उतनी कम है। तीस से अधिक तो मैंने पढ़ी थी। उस छोटी सी पुस्तक में। इस्लाम में धर्म को दार्शनिक पृष्ठभूमि देने वाले दार्शनिकों में से एक है राबिया। हिन्दू मान्यता में जो दर्जा शंकराचार्य के पास है तकरीबन वही दर्जा मुस्लिम संप्रदाय में राबिया का होना चाहिए। दोनों केवल उस सत्ता को ही सत्य मानते हैं बाकी सब झूठ। अच्छी कथाएं। राबिया का तो और भी संकलन मिल सकता है। मुझे दोबारा वह किताब मिली तो आपको कुछ कथाएं भेजने का प्रयास करूंगा। आपके ब्लॉग के लिए।
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बहुत ही प्रेरणा दायक प्रसंग ,अगर वह मुझे ऐसे ही पसंद करता है तो मैं उसकी मर्जी से ही रहूंगी। काश ऐसी सोच हम सब की हो जाये तो कही कुछ गलत नहीं होगा .
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तीसरी कहानी तो बहुत ही अच्छी है…केवल इच्छापूर्ति या डर के कारण ही सब धर्मों के लोग अपने-अपने भगवान को पूजते हैं.
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राबिया के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है ..यहाँ उनके बारे में और अधिक जान कर अच्छा लगा शुक्रिया
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aap ka ye koshish lajwab he.. aaj logo ko achha lage wohi sab likhate he… apne logo ke liye kya achha he ye likha hy…
Great
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hindi aur english ki stories different hain?
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Kaese kah diye ki koe nahi hai sansar me jo bina sawarg nark ke lalach me ebadat karta aap aesa na bolo
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