“मेरे मन के साथ कुछ गड़बड़ है” शिष्य ने कहा, “मेरे विचार तर्कसंगत नहीं हैं”.
गुरु ने कहा, “शांत सरोवर और उफनती नदी, दोनों जल ही हैं”
शिष्य गुरु की बात नहीं समझ पाया और मुंह बाए देखता रहा.
गुरु ने अपने कथन की व्याख्या की, “तुम्हारे सबसे शुद्ध, सचेत, उन्नत विचार और सबसे विकृत, दूषित, भद्दे विचार – तुम्हारा मन ही इनका सृजन करता है.”
Thanx to John Weeren for this story
जो बोया, वह पाया..
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baat ek dam pate ki h * jagat me jo bhi ham hota huaa dekh rhe h sab MAN ki maya h *
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उसी गेहूँ की पूरी और उसी गेहूँ की रोटी।
उसी आग पर रोटी सिके और उसी से किसी का घर जले।
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God & Devil, so called Bhagwan Aur Shaitaan, Ek Hain.
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बहुत पते की बात कही गुरूजी ने…।
साधो, मन को साधो।
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Ek Lafz-e-Mohabbat Ka Adnaa Sa Fasana Hai,
Simte To Dil-e-Aashiq Faile to Zamana Hai!
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जैसा खाओगे अन्न वेसा होगा मन , में पूरी तरह से सहमत हूँ इस बात से ,आप …..?
very good, story,
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….देखने और समझने के नज़रिए में मन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है !
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महत्वपूर्ण है कि प्रयोग कैसे किया जाय…
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http://wp.me/pK11N-mN
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Veri good yar
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man hi sab kuch karta/karvata hai
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DON’T BE JUDGEMENTAL,BE AWARE OF BOTH.
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