ज़ेन मॉनेस्ट्री में पधारे एक आगंतुक ने पूछा, “आप लोग यहाँ क्या करते हो?”
मास्टर ने कहा, “हम कुछ नहीं करते”.
वे टहल रहे थे. आगंतुक ने एक संन्यासी को कपड़े धोते देखा और पूछा, “आप तो कह रहे थे कि आप लोग यहाँ कुछ नहीं करते!”
मास्टर ने कहा, “कपड़ों की धुलाई ज़रूरी है. यह संन्यासी उन्हें फिर से पहनने के लायक बना रहा है.”
वे चलते रहे और रसोई के सामने से गुज़रे. आगंतुक ने पूछा, “कोई खाना बना रहा है. लेकिन आप तो कह रहे थे कि यहाँ कुछ नहीं होता!”
मास्टर ने कहा, “खाना बनाना भी ज़रूरी है, अन्यथा हम भूखे ही रह जायेंगे. ये संन्यासी भोजन को परोसे जाने लायक बना रहे हैं”.
सैर की समाप्ति पर आगंतुक ने पूछा, “क्या आपको मेरे बार-बार प्रश्न पूछने से असुविधा नहीं होती?”
मास्टर ने कहा, “प्रश्न पूछना ज़रूरी है. तुम केवल आतंरिक शांति को खोजे जाने का अवसर दे रहे हो”.
आवश्यक या उत्साह, तथ्य सरल हो।
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होने के साथ हो जाना अथवा हो जाने देना… द्रष्टा भाव
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प्रश्नोपनिषद न होता तो विश्व कहां, क्या होता?!
सच में, जब कुछ न होगा तो प्रश्न होगा ही!
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वाह…
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sundar.
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