एक युवक ओलंपिक में गोताखोरी के प्रदर्शन की तैयारी कर रहा था. उसके जीवन में धर्म का महत्व केवल इतना ही था कि वह अपने बड़बोले ईसाई मित्र की बातों को कभी-कभार बिना कोई प्रतिवाद किये सुन लेता था. उसका मित्र नियमित रूप से चर्च जाता था और वापस लौटकर युवक को बाइबिल के उपदेश सुनाया करता. युवक अपने मित्र की बातों को सुन तो लेता लेकिन उनपर कुछ ध्यान नहीं देता था.
एक रात युवक गोताखोरी के अभ्यास के लिए इन-डोर स्वीमिंग पूल गया. वहां रौशनी नहीं थी. इन-डोर स्वीमिंग पूल की छत कुछ खुली हुई थी और चंद्रमा का कुछ प्रकाश भीतर आ रहा था. उतनी रोशनी में युवक अपना अभ्यास कर सकता था.
युवक सबसे ऊंचे डाइविंग प्लेटफोर्म पर गया. डाइविंग बोर्ड के किनारे खड़े होकर उसने गोता लगाने की तैयारी में अपनी बाँहें फैलायीं. बाजू की दीवार पर उसे अपनी परछाईं दिखाई दी. परछाईं में उसका शरीर सलीब पर चढ़े ईसा की तरह दिख रहा था.
यह देखकर युवक के मन में श्रद्धा उमड़ आई. उसने अपने हाथ जोड़कर प्रार्थना की. प्रार्थना करने के बाद वह गोता लगाने के लिए तैयार होने लगा.
तभी वहां पूल के एक कर्मचारी ने आकर बत्तियां जला दीं.
युवक ने देखा, पूल में एक बूँद भी पानी नहीं था क्योंकि उसके रखरखाव का काम चल रहा था.
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A young man who had been raised as an atheist was training to be an Olympic diver.
The only religious influence in his life came from his outspoken Christian friend.
The young diver never really paid much attention to his friends sermons,but he heard them often.
One night the diver went to the indoor pool at the college he attended.
The lights were all off, but as the pool had big skylights and the moon was bright, there was plenty of light to practice by.
The young man climbed up to the highest diving board and
as he turned his back to the pool on the edge of the board and extended his arms out, he saw his shadow on the wall.
The shadow of his body was in the shape of a cross.
Instead of diving, he knelt down and asked God to come into his life.
As the young man stood, a maintenance man walked in and turned the lights on.
The pool had been drained for repairs.
बच गयी जान, उसकी वजह से जिसने सही समय पर लाईट जलाई।
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प्रार्थना मदद करती ही है !
सुन्दर !
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गोताखोर किससे प्रति कृतज्ञ हुआ (होना चाहिए) – ईसा के प्रति या पूल कर्मचारी के प्रति.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने काम के प्रति उन्मादी नहीं हो जाना चाहिए, सजग रह कर आंखें खुली रखना आवश्यक होता है अथवा जीवन में ऐसे संयोग बनते ही रहते हैं, जब हम आसन्न दुर्घटना महसूस करते हैं.
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बिल्कुल सही.
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आपने कथा का सही भाव,सही शिक्षा हमें बता दी…
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निश्चित रूप से जो मनुष्य मनुष्य को अधिक महत्व नहीं देता है, वह इसे ईसा या भगवान की कृपा मानता। लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इसके लिए किसी मनुष्य के प्रति कृतज्ञ होते हैं। गोताखोर किसके प्रति कृतज्ञ हुआ, यह कथा से निकाल लेना एकदम उचित नहीं है। हम यहाँ इस तरह की पहेली या एक्जिट पोल करने नहीं, कथा के लिए आते हैं।
सारे वाहनों पर जय माता की से लेकर पता नहीं कौन-कौन बाबा रहते हैं लेकिन कौन याद करता है कि उस वाहन या मशीन का आविष्कारक कोई आदमी था और कौन था।
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आगे:
फिर वह गोताखोर नीचे उतर कर आया और उसने पूल कर्मचारी को सारा वाक्या सुनाया, तो पूल कर्मचारी ने उसके गाल पर जोर से थपाड़ा चिपका दिया, फिर बोला, “अबे गधे! तेरे दिमाग में क्या भुस भरा है? कठोर जमीन और पानी के ऊपर पड़ने वाली परछाई के बीच कितना फर्क दिखता है. reflection ही अलग प्रकार का होता है! समझ ले आज मेरी किस्मत तेज थी, वरना तुझ जैसे अंधविश्वासी की वजह से आज मेरी नौकरी चली जाती.”
alternative ending
डाइविंग प्लेटफार्म पर चढ़कर यूवक ने हाथ फैलाये और नीचे देखा तो उसे परछाई को देखकर ऐसा लगा कि नीचे ईसा मसीह हाथ फैलाये उसे गले लगाने के लिये बुला रहे हैं, उसने आव देखा न ताव और कूद पड़ा, लेकिन पूल में पानी नहीं था और वह जमीन पर गिरकर मर गया!”
काश उसने ध्यान दिया होता कि पूल पर अगर परछाई पड़े तो चाले पानी कितना ही साफ और शांत हो, सामान्य परछाई से एकदम अलग होता है.
—-
निशांत जी, आप तो मेरे पुराने स्कूल के पादरी के जैसे कहानी सुना रहे हैं
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very good
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निशांत जी कहानी में कई गलतिया है इसलिए बात ठीक से नहीं आ पा रही है , राहुल जी की बात भी सही है की धन्यवाद किसका और कहानी की शिक्षा क्या है मुझे तो असली बात अपनी आंखे खुली रखने की लगती है जो अपनी इन्द्रिय खुली हो और अच्छे से उपयोग करे तो कोई परेशानी ही ना हो |
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KISI BHI KARY KE PRATI POORI TARAH SAMRPIT HONA TO THIK HAI LEKIN US PARMPITA KI KRIPA SE HI HAM KOI BHI KARY KARNE YOGY BAN PATE HAIN.ISLIYE USKO HAMESHA YAAD RAKHANA CHAHIYE. WAH GOTA KHOR APANE KAM KI SHURUAAT KAR CHUKA THA. TABHI USE PAR BHU KE HONE KA AHSAS HUA,OUR WAH PARBHU KE AGE NATMASTAK HUA.OUR UNKI KRIPA SE USKI JAN BACH GAI.
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मोटे तौर पर राहुल सिंह जी के कमेन्ट से असहमत नहीं हुआ जा सकता पर …
कथा पढते हुए कान्वेंट स्कूलों में फादर्स / सिस्टर्स और स्कूल की बस के ड्राइवर्स के वे हथकंडे याद आ गये जो नन्हे बच्चों के मन में ईसा के प्रति आदर और भक्ति भाव जगाने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं 🙂
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कई बार मन में श्रद्धा का विचार आते ही चमत्कार हो जाता है।
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प्रवीण जी,अपना देश तो वैसे ही चमत्कारों का देश है और बात यदि भगवान की हो तब तो नित नये चमत्कार…
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achhi lagi yah katha
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wa,,,,,hh,.
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HUM ISHWER KO YAAD KAREN NA KAREN PER VO HAMARAS DHYAN JAROOR RAKHTE HAI.
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हमे बातो को अनसुना नही करना चाहिए|
ना जाने कौन सी बात किस समय काम आ जाए|
अनदेखा कार्य करना भी उचित नही है|
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