लाभ-हानि जीवन से जुड़े हुए हैं. एक आता है तो दूसरा चला जाता है. आप किसी भी ओर दृष्टि डालें, आपको क्षणभंगुरता दिखेगी. जीवन में आगे कई तरह के नुकसान और विछोहों से हमारा सामना होगा. उनसे हम कैसे निबटेंगे वही महत्वपूर्ण बात है. उनके विपरीत हमारी प्रतिक्रिया ही हमारे चरित्र, अनुभव, कर्म, और नियति का निर्माण करेगी. हम जीवन से जुड़ी बहुतेरी अनिश्चितताओं के लिए हमेशा ही खुद को तैयार नहीं रख सकते. हम सिर्फ यही कर सकते हैं कि अपने सत्व को संभाल कर रखें. फिर हम उन चीज़ों को अपने जीवन में उतार सकते हैं जिन्हें हमने सीखा है. अपनी हर सांस के साथ मन में आशा और शांति का संचार करके आत्मावलोकन करते रहना ही हमारे लिए बेहतर है.
मुझे हाल में ही ऐसे बहुत से संवेगों से गुज़रना पड़ा जिन्होंने मुझे बहुत विचलित और भ्रमित कर दिया – चीज़ें जैसे चिंता, असहायता, और अपनी स्थिति पर गहन क्षोभ होना. इनसे निबटने के लिए मैंने जो उपाय किये उनके परिणाम भविष्य के गर्त में हैं लेकिन मेरे मन में ऐसा निरपेक्ष भाव आया जो मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था. कभी वैसी मनस्थिति रही तो उनके बारे में लिखूंगा.
मेरे निकटस्थ परिजन और मित्रादि यह मानते हैं कि बौद्ध-ज़ेन मत द्वारा प्रभावित तथा किसी न किसी रूप में आत्मिक-आध्यात्मिक होने के कारण मैं निश्चित ही उन पद्धतियों अथवा उपायों का अनुसरण करता हूँ जो व्यक्ति को अंतर्यात्रा पर ले जाते हैं. ऐसा नहीं है. मैं स्वयं पर किसी भी प्रकार के प्रयोग नहीं करता. मैं साधक नहीं हूँ. साध्य क्या है… मुझे यह भी नहीं पता. न तो मैं गुरु की खोज में हूँ, और न ही मुझमें शिष्यत्व ग्रहण करने की योग्यता है. जीवन सबसे बड़ा शिक्षक है. मुझे अपने ही जीवन से सीखना है.
अब समय है उस कविता को याद करने का जो मैंने कई बार पढ़ी. आपके लिए उसका अनुवाद प्रस्तुत है:
ज़िंदगी हमें सौंपती है वह गुरु, वह शिक्षक, हमेशा, जो हमें इस क्षण ही चाहिए. और इसमें शामिल है हर मच्छर, हर मुसीबत, हर रैड लाईट, हर ट्रैफिक जाम, हर अप्रिय बॉस, हर मुलाजिम, हर बीमारी, हर नुकसान, उमंग और हताशा के सब पल, हर व्यसन, हर जूठन, हर सांस. हर क्षण हमारा गुरु है. -शार्लोट जोको बेक.
पूरी तरह सहमत हूँ, अपना अनुभव न जाने कितना कुछ सिखा जाता है।
पसंद करेंपसंद करें
गाँधी जी ने कहा था- मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।
पसंद करेंपसंद करें
सम्यक दृष्टि.
पसंद करेंपसंद करें
यह सत्य है कि स्व जीवन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
लेकिन एक छोटा सा जीवन अप्रयाप्त है असंख्य अनुभवो से सार्थक बोध ग्रहण करने के लिए।
इसिलिए बौद्ध-ज़ेन आदि दर्शनों से विश्लेषित सार का चिंतन जरूरी हो जाता है।
पसंद करेंपसंद करें
निशांतजी आप जो दर्शन के मोती चुनकर लाते हैं वो लाजवाब होते हैं. आपका शुक्रिया
पसंद करेंपसंद करें
agree with sugya
पसंद करेंपसंद करें
संक्षेप में, जीवन (अनुभवों) से बड़ा और कोई गुरु हो ही नहीं सकता… 🙂
पसंद करेंपसंद करें
श्रीमान आपके ब्लॉग के कुछ महत्वपूर्ण शब्दों को मैंने मेरे ब्लॉग पर स्थापित किये हैं जो प्रकार हैं
“इस ब्लॉग की समस्त सामग्री आपकी है. मुद्रित पुस्तक के रूप में इसका व्यावसायिक उपयोग करके धन अर्जित करना निषेध है, अन्यथा आप इसका किसी भी रूप में उपयोग कर सकते हैं. चाहें तो इसे बेहतर बनाने के लिए रूपांतरित/परिवर्तित भी कर सकते हैं. इसके लिए किसी प्रकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है. बस एकनिवेदन है कि यदि आप सामग्री को कॉपी करके कहीं प्रयुक्त करें तो कृपया इस ब्लॉग का लिंक वहां पर दे दें. इससे ब्लॉग का प्रचार-प्रसार होगा.”
आप के शब्द तथा आपके ब्लॉग दोनों प्रशंसनीय हैं
धन्यवाद्
पसंद करेंपसंद करें
हर क्षण शिक्षक है,यह बात सत्य है पर बहुत कम लोग शिष्य बनते हैं ! यथार्थ को समझना तभी सार्थक है जब उसे अमल में लाया जाये !
पसंद करेंपसंद करें
ishwar ne jab tek sansar me jivan dhan de rekha hai purn jivan inshan sikhne me hi laga retha hai. pehla shabd maa ke naam ka bi esi sansar me us ko sikhne ko milta hai aur fir sikhte – sikhte sansar se jane vkht hi aha jata hai yadi maan lo ki jivan fir milta hai esi sansar me tho safer fir shuru ho jata wo hi pehla shabd maake naam se [ es sansar me ek sab se badha mahan satya va rehsya open by rakesh mehra jyotish maharat ki es sansar me janam milne ke badh karam pehle se hi teya hota hai.
पसंद करेंपसंद करें