कुंदनलाल सहगल की बेजोड़ मानवता

k_l_saigalबोलती फिल्मों का दौर बीत जाने के बाद जिस आवाज़ को हिन्दुस्तानी जनता का अपार प्रेम मिला वह कुंदनलाल सहगल की आवाज़ थी. मैं खुशकिस्मत हूँ कि अपने परिवार में पुराने संगीत के प्रति लगाव होने के कारण मैं बचपन से ही उनकी अनूठी आवाज़ और स्वरलहरियों को सुनता रहा. उस अप्रतिम आवाज़ के आज बहुत कम ही कद्रदान बचे हैं. जब मेरी उम्र के नौजवान उनके गीतों का भरपूर मजाक मिमिक्री करके उड़ाते हैं तब मुझे भीतर बहुत टीस होती है. मुझे भय है कि आज से कुछ दसियों सालों बाद तो शायद उनके संगीत को पसंद करनेवाले लोग बचें ही नहीं. खैर.

समय के क्रूर पंजों ने सहगल को मात्र 42 वर्ष की छोटी अवस्था में ही हमसे वर्ष 1948 में छीन लिया. उस समय वे शोहरत की बुलंदी पर थे. उन्होंने बेहतरीन भजन और गज़लें भी गाईं. उनके बाद हिंदी पोपुलर संगीत जगत में एक से बढ़कर एक गायक हुए लेकिन सभी ने अपने गायन की शुरुआत उनकी नक़ल करके ही की. उनके गीतों के ओरिजनल रेकॉर्ड्स आज संगीत प्रेमियों के लिए बहुमूल्य निधि हैं.

स्कूली शिक्षा में सहगल का मन ज़रा भी न लगा. वे अक्सर स्कूल से भाग जाते थे. अपने परिवार की व्यापारी परंपरा के विपरीत उनमें व्यापार करके संपत्ति अर्जित करने की और परिग्रह की भावना बिलकुल भी नहीं थी. उन्होंने बहुत पैसा कमाया लेकिन सब अपने दोस्तों की सहायता और ज़रूरतमंदों को बांटने में लगा दिया. किसी की मदद करते समय उन्होंने यह नहीं पूछा कि मांगनेवाला किस जाति या वर्ग का है. ऊँच-नीच का भेदभाव उनमें ज़रा भी न था.

एक रात सहगल बारिश में भीगकर ठण्ड से थर-थर कांपते हुए घर लौटे. उनकी पत्नी आशारानी ने देखा कि वे केवल कच्छा-बनियान पहने हुए थे. पूछने पर पता चला कि उन्होंने अपने कपड़े रास्ते में किसी भिखारी को दे दिए थे जो ठण्ड से कांप रहा था. पहले के लोग कैसे होते थे!

सहगल की पत्नी आशारानी ने अपने ड्राईवर को कह रखा था कि वह स्टूडियो से उनका वेतन खुद लेकर घर तक पहुंचा दे. वे जानती थीं कि सहगल के जेब में होने पर आधे पैसे भी घर नहीं पहुंचेंगे.

(A motivational / inspiring anecdote of Kundan Lal Saigal / K L Sehgal – in Hindi)

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