इसे जानने के लिए हम 400 वर्ष पीछे लौटते हैं।
भद्राचल के इस प्रसिद्ध राम मंदिर का निर्माण कंचरला गोपन्ना ने करवाया था। गोपन्ना श्री राम का अनन्य भक्त था।
गोपन्ना सुल्तान ताना शाह के अधीन तहसीलदार के पद पर काम करता था। वह एक बुढ़िया से मिला जिसे सांप के बिल के भीतर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण की प्राचीन प्रतिमा मिली थी।
उस प्रतिमा के प्रति उत्पन्न भाव के वशीभूत हो वह श्री राम का अनन्य भक्त बन गया। उसने अनेक भजन लिखे और राजस्व के धन से यह भव्य मंदिर बनवाया।
उससे जलनेवाले वरिष्ठ दरबारियों ने ताना शाह से कहा कि गोपन्ना ने मंदिर बनवाने के लिए सरकारी रकम का गबन किया है।
ताना शाह ने गोपन्ना को जेल में बंद करवा दिया।
जेल की कोठरी में गोपन्ना को 12 वर्ष तक अनेक यातनाओं को सहना पड़ा।
उस कालखंड में लिखे उसके गीतों में अतीव वेदना झलकती है, जिनमें वह प्रभु राम से सहायता और दया की याचना करता है।
कहते हैं कि श्री राम और लक्ष्मण एक रात को रामोजी और लक्ष्मोजी नाम के व्यक्तियों का वेष धरकर ताना शाह से उसके कमरे में मिले।
उन्होंने सरकारी खजाने में से कम हुई सारी रकम चुकाकर ताना शाह से कहा कि वह गोपन्ना को तत्काल रिहा कर दे।
तानाशाह ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए गोपन्ना से माफी मांगी और उसे मुक्त कर दिया।
इस किवंदंती में एक पेंच है…
- प्रभु राम पृथ्वी पर अवतरित हुए और उन्होंने ताना शाह को अपने दिव्य दर्शन दिए, जबकि ताना शाह ने अपने पूरे जीवनकाल में प्रभु राम को प्रसन्न करने के लिए कुछ भी नहीं किया, उल्टे उनके अनन्य भक्त गोपन्ना को घोर कष्ट दिए।
- इसके बाद प्रभु राम तत्काल ही वहां से विदा हो गए। उन्होंने कारागार के तहखाने में जाकर अपने भक्त गोपन्ना को देखा भी नहीं, जबकि गोपन्ना ने हमेशा उनकी आराधना की, स्तुतियां गाईं, और हर तरह के कष्ट भोगते हुए प्रभु से दर्शन देने की विनती की।
इस सबसे आप क्या समझते हैं?
इससे मिलनेवाली सीख यह है कि
आप चाहे भक्त हों या नास्तिक हों या अगनास्तिक हों…
भाग्य या नियति ऐसी चीज़ है जिसे आप नकार नहीं सकते, न ही इसकी व्याख्या कर सकते हैं। आप इसे समझ भी नहीं सकते
जीवन में कुछ भी न्यायपूर्ण नहीं होता।
हर व्यक्ति को यह कठोर सत्य स्वीकार करना ही पड़ता है।
क्यों कुछ कम प्रतिभावान लोग योग्य व्यक्तियों को पछाड़कर आगे निकल जाते हैं, जबकि घोर परिश्रम करने वाले योग्य व्यक्ति पीछे रह जाते हैं? और क्यों कुछ लोग जन्म से ही भाग्यवान होते हैं, जबकि कुछ जन्म से ही दूसरों पर आश्रित रहते हैं?
इन प्रश्नों के उत्तर खोजना सहज नहीं है।
इसलिए जब आपका सामना इन कठोर सच्चाइयों से हो तो आप केवल इतना ही कर सकते हैं किः
- यदि आप ताना शाह हों तो अपने भाग्य को सराहिए कि अपके सर्वथा अयोग्य होने पर भी प्रभु ने आपको सशरीर दर्शन दिए।
- और यदि आप गोपन्ना हों तो स्वयं को भाग्यवान मानिए क्योंकि आपकी रक्षा के लिए प्रभु को अपना दिव्य लोक छोड़कर पृथ्वी पर आना पड़ा।
तब आपको लगेगा कि जीवन इतना भी अन्यायपूर्ण नहीं है।
Quora पर Srinath Nalluri के एक उत्तर का अनुवाद
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