संदेशवाहक कबूतर कैसे जानते हैं कि उन्हें कहां जाना है?

उड़कर दूर-दूर तक संदेश पहुंचानेवाले कबूतर एक खास प्रजाति के होते हैं. लेकिन वे हमारी हर मनचाही जगह तक संदेश नहीं ले जा सकते. वे केवल वहीं जा सकते हैं जहां उनका जन्म हुआ था. उन्हें किसी दूसरी जगह पर ले जाकर जब छोड़ा जाता है तो वे अपनी पुरानी जगह का रास्ता खोजकर वहां पहुंच जाते हैं. लेकिन पहले कबूतरों को परीक्षण के तौर पर उड़ाकर इसका निश्चय कर लिया जाता है कि वे वाकई अपनी मूल जगह पर पहुंच पाते हैं या नहीं.

संदेशवाहक कबूतरों को उनके मूल स्थान से अलग करके पिंजड़े में बंद करके दूसरी जगह ले जाया जाता है. जब हमें उनके मार्फत संदेश भेजना होता है तो उसकी पुड़िया बनाकर कबूतर के पैर पर बांधकर उन्हें उड़ा दिया जाता है.

इसका अर्थ यह है कि कोई भी संदेशवाहक कबूतर केवल अपने मूल निवास अर्थात अपने घर तक ही उड़कर जा सकता है.

उदा.- आगरा के किसी कबूतर को दिल्ली लाने पर उसे छोड़ देने पर वह आगरा ही जाएगा, ग्वालियर नहीं. यदि हमें ग्वालियर कोई संदेश पहुंचाना है तो हमारे पास दिल्ली में ग्वालियर का कबूतर होना चाहिए. कबूतर को केवल अपने घर का पता है. वह दिल्ली, आगरा, ग्वालियर वगैरह नहीं जानता.

कबूतर द्वारा संदेश भेजने का लाभ यह है कि उसे साधारण तरीकों से रोका नहीं जा सकता. कबूतर प्रायः मोटरगाड़ियों से भी तेज गति से उड़कर अपने घर तक पहुंच जाते हैं.

लेकिन कबूतर द्वारा संदेश भेजने में संदेश पहुंचने की गारंटी नहीं होती. कोई पक्षी या अन्य जानवर या मनुष्य कबूतर का शिकार कर सकते हैं. इसलिए संदेश भेजने के लिए एक से अधिक कबूतर भेजे जाते हैं ताकि कम-से-कम एक कबूतर अपने गंतव्य तक पहुंच जाए.

Photo by 卡晨 on Unsplash

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