मेमोरी हमारे ब्रेन में न्यूरॉन्स को जोड़ने वाले सिनैप्टिक कनेक्शंस में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के रूप में स्टोर होती है। मनुष्य के ब्रेन में 100 ट्रिलियन से भी अधिक सिनैप्स (न्यूरॉन्स के जोड़) होते हैं और हर मेमोरी हजारों-लाखों सिनैप्स में होनेवाले रासायनिक परिवर्तनों के रूप में स्टोर होती है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि हमारी हर मेमोरी वास्तव में हजारों सिनैप्स से संबंधित होकर पूरे ब्रेन में डिस्ट्रीब्यूटेड होती है और हर सिनैप्स संभवतः हजारों मेमोरी से संबंधित होता है।
यदि कोई मेमोरी एक दिन से भी अधिक समय तक बनी रहती है तो यह ब्रेन के हजारों सिनैपेस में हो चुके स्थाई परिवर्तनों के रूप में स्टोर हो जाती है। अब यह सवाल उठता है कि यह मेमोरी कितने समय तक रीकॉल की जा सकती है? और यदि इसे रीकॉल करना संभव न हो तो भी क्या यह ब्रेन में मौजूद रहती है?
एपीसोडिक मेमोरी (Episodic memory) – यह अतीत में घट चुकी घटनाओं की मेमोरी होती है जिसे न्यूरोसाइंस अभी तक अच्छे से नहीं समझ सका है। ऐसा माना जाता है कि यह केवल मनुष्यों में ही मौजूद होती है और मनुष्यों में इसके न्यूरल मैकेनिज़्म को समझने के लिए किए जाने वाले प्रयोग लॉजिस्टिकल और नैतिक कारणों से व्यवहार्य नहीं हैं।[1]
नेचर पत्रिका में वर्ष 2005 में छपी एक आश्चर्यजनक रिसर्च में मिर्गी से पीड़ित मरीजों के उपचार के लिए की जाने वाली सर्जरी में एपीसोडिक मेमोरी के क्षेत्र (हिप्पोकैंपस) में इंडीवीजुअल न्यूरॉन्स की गतिविधियों के बारे में बताया गया था। एक मरीज में उन्होंने देखा कि एक न्यूरॉन बिल क्लिंटन की फोटो के लिए प्रतिक्रिया दे रहा था जबकि दूसरा अभिनेत्री जेनिफर एनिस्टन की फोटो के लिए प्रतिक्रिया दे रहा था। जेनिफर एनिस्टन के लिए प्रतिक्रिया देने वाला न्यूरॉन केवल उसी फोटो के लिए प्रतिक्रिया दे रहा था जिसमें जेनिफन एनिस्टन अकेली थी। ब्रैड पिट के साथ उसकी फोटो के लिए न्यूरॉन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।[2]
ऐसा नहीं है कि जेनिफर एनिस्टन की मेमोरी के लिए एक अकेला न्यूरॉन ही जिम्मेदार था। वास्तव में फ्रैंड्स सीरियल बहुत अधिक देखने वाले मरीजों के जीवन में जेनिफर एनिस्टन इतनी गहराई तक शामिल थी कि लाखों-करोड़ों न्यूरॉन्स ने मिलकर उसके व्यक्तित्व के अलग-अलग पक्षों को स्टोर किया था, जिनमें से कम-से-कम एक अकेला न्यूऱॉन ऐसा था जो किसी फोटो में उसकी अकेली छवि की मेमोरी के लिए समर्पित था।
जीवन की घटनाओं की मेमोरी के रीकॉल होने की प्रक्रिया का संबंंध उस मेमोरी की बहाली या पुनःप्राप्ति नहीं बल्कि उसके पुनःनिर्माण से होता है। मेमोरी समय के साथ कुंद हो जाती हैं या मिट जाती हैं। एक जैसी कई मेमोरी जुड़कर एक मेमोरी बन जाती हैं और एक-दूसरे से संबंधित मेमोरीज़ के गुच्छे वर्तमान से अलग-थलग पड़ गए द्वीपों की तरह खो जाते हैं। मेमोरीज़ के ऐसे द्वीप भुला दिए गए प्रतीत होते हैं लेकिन किसी दिन अचानक ही कोई चीज़ इन द्वीपों को जोड़ देती है और वे एकदम-से तरोताजा हो जाते हैं। महान फ्रांसीसी लेखक मार्सेल प्रूस्त ने इसके बारे में लिखा था कि एक दिन मेडेलीन बिस्कुट का एक टुकड़ा मुंह में रखते ही उनके बचपन की भुला दी गई अनेक बातें पूरी तरह से जीवंत होकर उनके मनमानस पर छा गई थीं।[3]
जीवन की हर महत्वपूर्ण घटना ब्रेन को बदल देती है, भले ही उस घटना की मेमोरी को रीकॉल करना संभव नहीं हो। ये बदलाव बाद में नए आकार में ढलते हैं और इतनी बार नए सिरे से अरेंज होते हैं कि मूलभूत अनुभव की विश्वसनीय रूप से पुनःरचना नहीं की जा सकती।
भूली हुई मेमोरी के टुकड़ों की खोजबीन करने के काम की तुलना किसी पुरातत्वविद के काम से की जा सकती है जो यूनान के प्राचीन नगर ट्रॉय का नक्शा बनाने की कोशिश कर रहा हो। ट्रॉय का नगर अनेक शताब्दियों तक बनता-बिगड़ता रहा। बहुत सारी खुदाई और अपनी कल्पनाशक्ति का प्रयोग करके पुरातत्वविद ट्रॉय नगर के अतीत के पक्षों का पुनःनिर्माण करने में सक्षम होता है। लेकिन यहां यह भी संभव है कि जमीन के नीचे दबे ट्रॉय के अवशेष इतने बिगड़ चुके हों कि उन्हें जोड़कर पुरानी शक्ल में लाने की कोशिश करने पर कोई दूसरी ही चीज़ बन जाए।[4]

प्राचीन यूनानी नगर ट्रॉय की नौ पुरातात्विक सतहें[5]
ब्रेन के मामले में “भूली हुई” चीज़ें हजारों न्यूरोरिसेप्टर अणु होते हैं जो ब्रेन के विशाल सिनैप्टिक नेटवर्क में छितरे हुए होते हैं – जो यदि अतीत की वह घटना नहीं घटी होती तो वहां नहीं होते। किसी खास मेमोरी को रिकवर करने की ब्रेन की योग्यता पूरी तरह से विलुप्त हो सकती है या वह तब तक प्रसुप्त हो सकती है जब तक कि ऐसा कोई सही अनुभव या घटना नहीं घटे जो ऐसा सधा हुआ आंतरिक सिग्नल पैटर्न बनाए जो कि उस भूली हुई मेमोरी के पैटर्स से मिलता-जुलता हो। उस स्थिति में वह भूली हुई मेमोरी फिर से बनकर सतह पर उभर आती है।
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