पेरेटो का सिद्धांत और उसके आगे

1896 में स्विट्जरलैंड के लौसान शहर में दोपहर के दिन विल्फ़्रेड फेडेरिको दमासाओ पेरेटो अपने सुंदर बगीचे में टहल रहे थे.

पेरेटो लौसान यूनिवर्सिटी में पॉलीटिकल ईकोनॉमी पढ़ाते थे लेकिन दिल से वे एक इंजीनियर थे और उन्हें अपने बगीचे में सब्जियां उगाने और उनकी देखरेख करने में भी आनंद आता था. उस दिन मटर की फलियां तैयार दिख रही थीं. उन्होंने कुछ फलियों को बतौर सैंपल अध्ययन करने के तोड़ लिया और घर ले गए.

किचन की टेबल पर उन्होंने गिनती शुरु की. एक, दो तीन, चार, पांच… दस… बारह… पंद्रह. उन्होंने देखा उनके पास 15 फलियों से 45 मटर के दाने निकले थे.

वे अपने उस दिन के आंकड़े रजिस्टर में नोट करने जा रहे थे लेकिन ठिठक गए. पहली कुछ फलियों से निकलनेवाले दानों की संख्या अधिक थी.

उन्होंने फिर से गिना. पहली 3 फलियों से 36 दाने निकले थे जबकि बाकी 12 फलियों में से केवल 9 दाने निकले थे. बहुत सी फलियों में दाने थे ही नहीं.

पेरेटो ने पन्ने पलटकर पिछले सप्ताह के रिज़ल्ट देखे. पिछले परिणाम भी इससे मिलते-जुलते ही थे. लगभग 20% फलियों में 80% तक दाने थे.

उन्हें अचानक कुछ याद आ गया! हां, कल के अखबार में ऐसा ही कुछ छपा था. लेकिन अखबार था कहां? कॉफ़ी टेबल पर? नहीं. शेल्फ़ पर? वहां भी नहीं. ओह! उसे तो रद्दी में डाल दिया गया था.

अखबार को रद्दी से खोज निकाला गया. उसमें क्या छपा था? हेडलाइन के अनुसार “धनी और अधिक धनी होते जा रहे हैं”. इटली की 80% निजी भूमि का स्वामित्व थोड़े से अभिजात्य वर्ग के लोगों के पास था. ये लोग संख्या में कितने थे? उनकी आंखें किसी संख्या को खोज रही थीं. वह संख्या थी ‘20%’. एक बटे पांच या पांचवां भाग.

इन तथ्यों के देखकर पेरेटो के मस्तिष्क में विचारों की लहरें उठने लगीं. उन्हें इसमें निहित किसी सिद्धांत के दर्शन होने लगे. उन्होंने इस सिद्धांत से सभी को परिचित कराने का निर्णय लिया और अपना कोट पहनकर घर से निकल गए.

कुछ दिनों के बाद अकादमिक हल्कों में एक रिसर्च पेपर छपा जिसे 80/20 नियम या पेरेटो के नाम पर ही पेरेटो सिद्धांत कहते हैं. इस पर हिंदीज़ेन में पहले भी एक पोस्ट कई वर्ष पहले लिखी जा चुकी है.


इस घटना के 111 वर्ष बाद न्यू यॉर्क के क्राउन पब्लिशर ने एक नए उत्साही लेखक से उसकी किताब छापने की डील की. प्रकाशक को इस बात का अनुमान नहीं था कि वह किताब धमाका करने जा रही थी और उसकी लॉटरी निकलनेवाली थी.

उस लेखक का नाम है टिम फेरिस (Tim Ferriss) और उस किताब का नाम है “The 4-Hour Workweek”. यह पिछले दशक की सबसे प्रसिद्ध किताबों में से है, स्टीवन कोवी की किताब “The 7 Habits of Highly Effective People” जितनी ही प्रसिद्ध. इस किताब में टिम ने प्रोडक्टिविटी और क्रिएटीविटी बढ़ाने के बहुत अच्छे उपाय  बताए हैं.

अपनी किताब के 70वें पन्ने पर टिम ने पेरेटो के सिद्धांत पर बात की है. टिम ने पेरेटो के सिद्धांत का समर्थन किताब के चैप्टर “Pareto and His Garden: 80/20 and Freedom from Futility” में किया है लेकिन टिम की बात में एक समस्या है:

टिम ने अपनी किताब में जो पेरेटो के सिद्धांत का समर्थन किया है लेकिन पेरेटो का सिद्धांत किताब में दिए गए टिम के मूल विचार के विपरीत है.

एक नजर में हमें दिखता है कि टिम को लेखक के रूप में अभूतपूर्व सफलता उसके “minimum effective dose” की अवधारणा के कारण मिली है लेकिन यदि टिम ने पागलों की तरह काम करने को अपना लक्ष्य नहीं बनाया होता तो आज हमें उसका नाम भी पता नहीं होता.

क्या आप वाकई यह मानते हैं कि बहुत ज़रूरी 20% चीजों पर 80% फोकस करने से हमें बेजोड़ सफलता मिल सकती है, हमारी किताब दुनिया की बैस्टसेलर किताब बन सकती है, हमारा वीडियो वायरल हो सकता है? यकीन मानिए, सच तो यह है कि ज्यादातर मामलों में हमें 100% फोकस करने पर भी सफलता मिलने के चांस बहुत कम ही होते हैं.

दुनिया में टिम ही अकेला लेखक या ब्लॉगर नहीं है जो अद्वितीय प्रभावशीलता या इफ़ेक्टिवनेस की खोज कर रहा है. हजारों-लाखों लेखक, ब्लॉगर, कोच, वेबसाइटें, किताबें, सेमीनार, कोर्स, प्लान हमें जीवन को शानदार बनानेवाले विचार थाल में सजाकर दे रहे हैं लेकिन उत्कृष्टता या एक्सीलेंस को कोई कैसे हैक कर सकता है? जीवन में महानता को कोई कैसे उतार सकता है? किसी जीनियस की तरह सोच पाना इतना आसान है क्या?

हर महीने लोग गूगल पर पेरेटो के विचारों को एक लाख बार सर्च करते हैं. वे भरपूर मेहनत किए बिना परिणाम की अपेक्षा करते हैं. लेकिन अक्सर ही जीवन में जिन मोर्चों पर लड़ना बहुत आसान लगता है वे हमारी सारी ताकत खींच लेते हैं.

असल में पेरेटो के सिद्धांत में कुछ भी गलत नहीं है. यह हमारे लिए संभावनाओं के द्वार खोलता है. यह काम को शुरु करने के लिए हमें मोटीवेट करता है. यह हमें प्राथमिकताएं सेट करने के लिए प्रेरित करता है. यह हमें बताता है कि कोई काम शुरु करते समय हमें किन बिंदुओं पर फोकस करना चाहिए, लेकिन आप हमेशा कुछ बिंदुओं पर फोकस करते नहीं रह सकते!

हमारी समस्या यह है कि हम पेरेटो के सिद्धांत के चक्र में फंस जाते हैं. हम हर चीज को हैक करने लगते हैं. इसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल हो जाता है लेकिन एक समय ऐसा आता है जब इसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाना हमारे लिए ज़रूरी हो जाता है.

आपकी पहली ब्लॉग पोस्ट को सुंदर फॉर्मेटिंग की ज़रूरत नहीं है. आप इसमें फ़ीचर्ड इमेज नहीं लगाएंगे तो चलेगा. कसी हुई एडीटिंग नहीं होगी तो भी चलेगा… इसी तरह आपके पहले कुछ YouTube वीडियो में HD रिकॉर्डिंग, शानदार एनीमेशन या उम्दा साउंड क्वालिटी नहीं होगी तो भी चलेगा. लेकिन आपकी 100वीं पोस्ट को बेजोड़ होना चाहिए. 50वें वीडियो तक पहुंचते-पहुंचते उनकी क्वालिटी में निखार साफ झलकना चाहिए. ऐसी पोस्ट लिखने या ऐसा वीडियो बनाने में आपको परफ़ेक्शन झोंकनी ही पड़ेगी. आप इसे बाइपास नहीं कर सकते. आप उसे आधे-अधूरे मन से या लापरवाही से नहीं कर सकते.

पेरेटो के सिद्धांत का उपयोग करके उन दरवाजों के ताले खोलिए जिनके पीछे जाना शुरुआत में आपको लिए बहुत कठिन है, लेकिन पेरेटो की भांति जिंदगी नहीं बिताइए. किसी भी काम में एक छोटी सी लीड मिल जाने पर होने वाली खुशी को मन में संजोइए लेकिन कुछ देर रुककर आराम करने का विचार मन में नहीं आने दीजिए.

मोज़ार्ट जैसे दुनिया के महान संगीतकार, एडीसन जैसे आविष्कारक, और फोर्ड जैसे बिजनेसमेन इसी तरह के लोग थे.

Photo by Rachael Gorjestani on Unsplash

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