यदि मानव जाति अगले कुछ हजार वर्षों तक अस्तित्व में बनी रहे और तकनीकी विकास इसी गति से होता रहे तो यह संभव है कि अबसे कई पीढ़ियों बाद के मनुष्य अमर हो जाएंगे. ऐसे मनुष्यों की मृत्यु वृद्धावस्था या बीमारियों के कारण नही होगी, हालांकि वे किसी दुर्घटना का शिकार होकर मर सकते होंगे.
वे इस प्रकार से अमर नहीं होंगे कि उन्हें कोई हथियार नहीं मार सकेगा बल्कि वे बुढ़ापे और बीमारियों का शिकार नहीं होंगे.
आदिकाल से ही हमारी औसत आयु में वृद्धि होती जा रही है और हमने अनेक बड़े रोगों पर विजय पाई है. आनुवांशिकी विज्ञान में प्रगति होने के साथ ही हम उन अनेक रोगों पर विजय पा लेंगे जो वर्तमान में मृत्यु होने का बड़ा कारण हैं. कोरोनरी आर्टरी डिसीज़ और कैंसर ऐसे ही दो बड़े रोग हैं जो वृद्धावस्था में मृत्यु कारित करते हैं. यदि हम इनपर विजय पा लेंगे तो आधा किला फतह हो जाएगा.
यह सच है कि हम एक रोग पर विजय पा लेंगे तो दूसरा रोग उत्पन्न हो जाएगा पर देर-सबेर हमारे हाथ चिरकाल तक जीने का ऐसा फॉर्मूला अवश्य लगेगा जिससे हमारी वृद्धावस्था और उससे उत्पन्न होनेवाली अक्षमताओं पर विराम लग जाएगा. हम अपने शरीर के लगभग हर एक अंग को संयंत्रों में उगा सकेंगे और उन्हें पलक झपकते ही बदल सकेंगे. हमारा शरीर नेटवर्क से हर समय जुड़ा रहेगा और हमारी स्मृतियां किसी सर्वर पर अपलोड़ होती रहेंगी. जब तकनीकी विकास अपने चरम पर होगा तो किसी दुर्घटना में हमारी मृत्यु हो जाने के बाद हमारे शरीर की एक कोशिका से DNA लेकर हमारा दूसरा शरीर बना दिया जाएगा और हमारे व्यक्तित्व और समृतियों को उसमें अपलोड कर दिया जाएगा.
लेकिन मनुष्यों के अमरत्व से जुड़ी बात मेरे लिए शारीरिक या चिकित्सकीय नहीं बल्कि दार्शनिक समस्या अधिक है. अमरत्व पाकर हमें क्या मिलेगा? क्या अमरत्व पाने के बाद हमें संतानोत्पत्ति की आवश्यकता नहीं रहेगी? क्या अमरत्व को पा लेना इस जीवन को इसके सभी सुखों-दुःखों के साथ चिरकाल तक घसीटने जैसा कर्म नहीं रह जाएगा? क्या यह मनुष्य जीवन को कहीं अधिक क्लेशयुक्त नहीं कर देगा? क्या यह हमारी ईश्वर और आत्मा संबंधित स्थापनाओं को छिन्न-भिन्न नहीं कर देगा?
हमें इन सारी समस्याओं और प्रश्नों का सामना अगले कुछ सौ वर्षों के भीतर करना ही पड़ेगा. अमरत्व के संबंध में मुझे जो बात व्यक्तिगत रूप से सबसे अधिक खटकेगी वह यह है कि यदि मुझे इसी क्षण यह पता चल जाए कि हम सब अमर हो गए हैं तो मेरा हृदय उन सभी मनुष्यों के बारे में सोचकर दुःख से भर जाएगा जिन्हें हम मृत्यु के हाथों खो चुके हैं. मृत्यु के घटित होने पर मनुष्य का जीवन जिस पूर्णता को प्राप्त कर लेता है वह उसके न होने पर खंडित हो जाएगा. हमारे अस्तित्व के पीछे कार्य-कारण का जो सिद्धांत काम कर रहा है वह ध्वस्त हो जाएगा.
इसलिए मैं तो यही चाहूंगा कि मनुष्य अपनी संपूर्ण गरिमा के साथ जिए और गरिमा के साथ मरे. भले ही वह तकनीकी प्रगति के कारण अधिक समय तक युवा बना रहे, बूढ़ा होने पर भी अशक्त और रोगी न हो, लेकिन इस संसार को अपने बाद वाली पीढ़ियों के लिए छोड़कर अस्तित्व में विलीन हो जाए. Photo by Simon Wijers on Unsplash
गहन विचारपूर्ण।🙏
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जी लाजबाव
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