मनुष्यों, कपियों और वानरों के सर पर सींग क्यों नहीं होते हैं?

किसी भी प्राणी में वे विशेषताएं विकसित होती हैं जो उनके लिए उपयोगी होती हैं और जिनके विकसित होने के कोई प्रतिकूल परिणाम नहीं होते.

प्राइमेट्स समुदाय के जंतुओं के सिर पर सींग विकसित नहीं हुए क्योंकि सींग उन जंतुओं में विकसित होते हैं जो अपने क्षेत्र पर अधिकार करने के लिए आमने-सामने की टक्कर करके लड़ते हैं. ऐसे जंतुओं को एक दूसरे का पीछा करके लंबी दूरी तक भागना पड़ता है. इसके विपरीत प्राइमेट जंतुओं का आरंभिक विकास पेड़ पर रहनेवाली प्रजातियों के रूप में हुआ. वे चौपायों की भांति एक-दूसरे के पीछे नहीं भागते थे. मनुष्य के शरीर में हाथों की मौजूदगी होने के कारण उनके बीच होने वाली लड़ाइयां चौपायों की तुलना में अलग तरह की होती थीं. आज भी मनुष्यों के बीच होने वाली लड़ाइयों या बचाव में उनके हाथ ही सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं. चौपायों के हाथ नहीं होते इसलिए लड़ने या बचने के लिए उन्हें अपने सर का उपयोग करना पड़ता है. यदि मनुष्यों के सींग होते तो लड़ाई के दौरान वे हाथों की पकड़ में आसानी से आ जाते और सर के मुड़ जाने पर रीढ़ की हड्डी आसानी से टूट जाती.

इसके अतिरिक्त यदि हम प्राइमेट्स के विकसित होने पर विचार करें तो पाएंगे कि उनका निकटतम संबंध रोडेंट्स (मूषक जैसे जीव) प्रजाति से है और रोडेंट्स के भी सींग नहीं होते. यदि प्राइमेट्स के सींग होते तो पेड़ों पर उनके सर उलझते रहते. सींग वाले भारी सर को संभालना भी कठिन होता. यह प्राइमेट्स की पूरी शारीरिक संरचना को बदल देता. चौपायों के जबड़े भी उनके शरीर के आकार की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे होते हैं. इसकी तुलना कपियों और बंदरों से करके देखिए. उनके जबड़े कहीं अधिक भयानक होते हैं.

सींग नहीं होने पर भी मनुष्य अपने सर का उपयोग किसी हथियार की भांति कर सकते हैं. यदि मनुष्यों के सर में कोई सींग विकसित होता तो हमारे सर के केंद्र में केवल एक सींग का होना हमारे लिए बहुत अच्छा होता, लेकिन इसके लिए हमारी खोपड़ी की संरचना में बहुत से परिवर्तन करने पड़ते जिनका प्रभाव हमारे मस्तिष्क की क्षमताओं पर पड़ता.

अब तो मनुष्य लड़ाइयों में अपने हाथ-पैर की अपेक्षा अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करते हैं. मनुष्य के सर में सींग होना अब केवल एक मुहावरा मात्र ही है.

Photo by Mallory Johndrow on Unsplash

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