क्या निकटतम तारों के पास मौजूद एलियन सभ्यताओं से रेडियो संपर्क संभव है?

यहां हम मनुष्यों जितने या उनसे अधिक उन्नत परग्रहियों की बात कर रहे हैं.

यदि हम आज तक बनाया गया सबसे शक्तिशाली रेडियो ट्रांसमीटर लें और उसे सूर्य के सबसे नजदीक किसी तारे की परिक्रमा कक्षा में स्थापित करें तो भी हमारा सबसे संदेदनशील रेडियो टेलीस्कोप उस ट्रांसमीटर के सिग्नल्स नहीं पकड़ पाएगा.

लेकिन यदि मैं यह कहूं कि: “… आज तक बनाया गया सबसे शक्तिशाली सर्व-दिशात्मक (omnidirectional) रेडियो ट्रांसमीटर …” तो मेरा मानना है कि यदि हम बहुत सटीक दिशात्मक सिग्नल उस रेडियो ट्रांसमीटर तक भेज सकें तो हमें इतनी पर्याप्त ऊर्जा युक्त सिग्नल मिलेगा कि हम सूर्य के सबसे निकटतम तारे एल्फ़ा सैटोरी (Alpha Centauri) की दूरी से आनेवाले रेडियो सिग्नल पकड़ सकेंगे.

इस प्रकार हमारे सबसे नज़दीकी तारे की परिक्रमा कर रहे एलियंस को हम तक सिग्नल बहुत सटीकता से उस समय भेजना पड़ेगा जब हमारा रेडियो टेलीस्कोप भी उतनी ही सटीकता से उनकी दिशा में उन सिग्नलों को पकड़ने के लिए तैनात हो. ऐसा होने की संभावना न-के-बराबर ही है.

इसके विपरीत यदि वे हमें सुन सकें तो हमें उनके रेडियो टेलीस्कोप तक नैरो-बैंड (narrow-band) का सिग्नल सटीकता से भेजना पड़ेगा. हमने कई तारों की दिशा में अपने ऐसे सिग्नल भेजे हैं, लेकिन हमने यह काम एक-दो दशक पहले किया है और वह भी बहुत कम समय (केवल कुछ घंटे) के लिए किया है.

तो इस बात की बहुत संभावना है कि हमारे नज़दीकी तारों की परिक्रमा करनेवाले ग्रहों पर एलियंस रहते हों लेकिन वे हमारे द्वारा उस समय छोड़े गए सिग्नलों को नहीं सुन रहे हों. यह भी हो सकता है कि हमारे भेजे गए सिग्नल उनकी समझ में नहीं आए हों. उदाहरण के लिए मधुमक्खियां एक-दूसरे को अपनी बातें नृत्य करके समझाती हैं लेकिन हमें मधुमक्खियों की नृत्य भाषा को समझने में बहुत लंबा समय लगा. हो सकता है कि हमारे रेडियो सिग्नल भी एलियंस को समझ में नहीं आ रहे हों.

यह भी हो सकता है कि एलियंस ने हमें सुना ही न हो. यह भी हो सकता है कि उन्होंने हमारे सिग्नलों के जवाब में हमें नैरो-बैंड सिग्नल भेजे हों लेकिन उन दिनों सेटी (SETI, परग्रही जीवन की खोज करने वाली संस्था) आकाश के उस हिस्से की छानबीन नहीं कर रही हो जहां से सिग्नल भेजे गए हों. यह भी हो सकता है कि हमने भी उन्हें नहीं सुना हो.

हो सकता है कि एलियंस के पास हमारे औद्योगिक उत्सर्ग (industrial emissions) के संकेत देखने में सक्षम टैक्नोलॉजी हो और वे यह जान गए हों कि हम एक उन्नत सभ्यता हैं – फिर उन्होंने लगातार 100 वर्ष तक हमारी दिशा में पर्याप्त शक्तिशाली सिग्नल भेजे हों लेकिन कोई उत्तर नहीं पाने पर सिग्नल भेजने बंद कर दिए हों… और यह सब 200 वर्ष पहले हुआ हो जब हमारे पास रेडियो तरंग आधारित टैक्नोलॉजी नहीं थी.

हो सकता है कि वे एलियंस सैंकड़ों-हजारों वर्ष तक जीवित रहने वाले प्राणी हों लेकिन उनकी विचार-प्रक्रिया हमारी तुलना में बहुत सुस्त हो. ऐसी स्थिति में हो सकता है कि उन्हें हमारे सिग्नल मिल गए हों लेकिन वे 50 वर्षों में भी यह नहीं तय कर सके हों कि उन्हें इसके बारे में क्या करना है.

यह भी हो सकता है कि वे एलियंस अन्य तारों के ब्रहस्पति या शनि जैसे ग्रहों के उपग्रहों के समुद्र में जमी बहुत मोटी बर्फ की पर्त के नीचे रहते हों. यह भी हो सकता है कि उन्होंने रेडियो सिग्नल मशीनों की खोज नहीं की हो क्योंकि ये पानी के नीचे अच्छे से काम नहीं करतीं.

रेडियो तकनीक आधारित सभ्यता के रूप में हम अभी एक नवजात सभ्यता ही हैं. हमारे बहुत कमज़ोर रेडियो सिग्नलों को पकड़ने के लिए एलियंस के पास बहुत अधिक उन्नत रेडियो टैक्नोलॉजी होनी चाहिए. यदि उनकी तकनीक हमसे भी बहुत अधिक उन्नत तकनीक नहीं है तो वे हमारे टीवी सिग्नल नहीं पकड़ सकते. 4 प्रकाश वर्ष (सूर्य के निकटतम तारे की दूरी) पर भी हमारे टीवी सिग्नलों की अत्यंत सूक्ष्म ऊर्जा को पकड़ पाना संभव नहीं है.

और यहां पर समस्या केवल कमज़ोर सिग्नल की ही नहीं है. हम लोकल रेडियो/टीवी स्टेशन को इसलिए आसानी से पकड़ लेते हैं क्योंकि दुनिया भर में फैले हजारों अन्य रेडियो/टीवी स्टेशन हमसे दूर हैं हालांकि वे भी लगभग उसी फ्रेक्वेंसी पर प्रसारण करते हैं. लेकिन 4 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एलियंस के लिए वे सभी एक समान दूरी (अर्थात पृथ्वी) पर मौजूद होंगे.

इस प्रकार एलियंस को न केवल हमारे बहुत कमज़ोर सिग्नल पकड़ने हैं बल्कि उन्हें लगभग एक ही फ्रेक्वेंसी पर प्रसारित हो रहे हजारों टीवी  प्रोग्राम्स को भी अलग-अलग करके देखना है. ऐसा नहीं होने पर उन्हें अपनी स्क्रीन पर वह व्हाइट नॉइस (white noise) दिखेगी जिसे हम पुराने जमाने में मक्खियां भिनभिनाने वाली स्क्रीन कहते थे. इस प्रकार, बहुत संवेदनशील रिसीवर्स होने पर भी उन्हें हमारे जीवन की झलक दिखानेवाले सीरियल्स नहीं दिखेंगे. उनकी मशीनें उन्हें यह ज़रूर बताएंगी के वे सिग्नल्स कृत्रिम हैं लेकिन उन्हें डीकोड करने का उपाय उनके पास संभवतः नहीं होगा.

यदि उनके रेडियो टेलीस्कोप हमारे टेलिस्कोपों से बहुत उन्नत प्रकार के हुए तो वे उन हाई-पॉवर सिग्नल्स को देख पाएंगे जिनकी फ्रेक्वेंसी हमने मिलिटरी जैसी सेवाओं के लिए सुरक्षित रखी हैं. ऐसे सिग्नल्स को डीकोड करना उनके लिए और अधिक कठिन होगा और इनमें उनके लिए उपयोगी कोई जानकारी नहीं होगी.

इनके अलावा भी ऐसे बहुत सी शर्तें और परिस्तिथियां हैं जिनके कारण बहुत कम दूरी (4 से 20 प्रकाश वर्ष) पर मौजूद दो एलियन सभ्यताएं (वे हमारे लिए एलियन होंगे और हम उनके लिए एलियन होंगे) एक-दूसरे से संपर्क नहीं कर सकतीं.

By Steve Baker, Blogger at LetsRunWithIt.com (2013-present). Featured image: Very Large Array telescopes railroad tracks

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