यह एक कठिन प्रश्न है. मंगल ग्रह को अपनी धुरी पर एक घूर्णन करने में 24 घंटे 37 मिनट (24.6 घंटे) लगते हैं. इस प्रकार मंगल का एक दिन-रात पृथ्वी से कुछ लंबा होता है.
मनुष्यों की नींद पर मंगल ग्रह के दिन और रात के अपेक्षाकृत लंबा होने का क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अनुमान लगाना कठिन है. मंगल ग्रह पर मौजूद रोबोट वाहन (मार्स रोवर्स, Mars rovers) को पृथ्वी से चलाने वालों ने अपने दिन-रात की अवधि को 24 घंटे 37 मिनट का मानकर अनेक प्रयोग किए, लेकिन उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा. यह कहना कठिन है कि ऐसा सूर्य के प्रकाश के चक्र में आनेवाली गड़बड़ी के कारण हुआ या दिन के अपेक्षाकृत अधिक लंबा होने के कारण.
मंगल ग्रह के “वर्ष” के साथ और अधिक समस्या हो जाएगी. मंगल सूर्य की परिक्रमा पृथ्वी के 687 दिन (मंगल के 669.8 दिन) में करता है.
यदि मंगल पर रहनेवाले लोग 670 दिनों का एक वर्ष मान लें तो उन्हें लगभग हर पांच वर्ष में एक अधिवर्ष (लीप वर्ष, leap year) की ज़रूरत पड़ेगी.
वे चाहें तो एक “अर्ध-वर्ष” का उपयोग भी कर सकते हैं जो कि मंगल के 335 दिनों का होगा. यह अवधि पृथ्वी के वर्ष के निकट ही है इसलिए यह उपयोगी तो होगा लेकिन लोगों की आयु की गणना बहुत रोचक हो जाएगी.
पृथ्वी पर महीनों की गणना यदि हम चंद्रमा को आधार मानकर करें तो हिसाब गड़बड़ा जाता है क्योंकि चंद्रमा को पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में 29.5 दिन लगते हैं, इस प्रकार हमें एक वर्ष (365 दिन) में 12.4 महीने मिलते हैं. वर्तमान में प्रचलित 12 महीनों की तुलना में 12.4 महीनों की प्रणाली का उपयोग करना सुविधाजनक नहीं होता. पृथ्वी पर हम महीनों की गणना इस प्रकार से करते हैं कि चंद्रमा की परिक्रमा अवधि हमारे लिए अनुपयोगी हो जाती है.
लेकिन मंगल के दो छोटे-छोटे चंद्रमा हैं. उन्हें आधार मानकर किसी तरह की काल गणना करने से वहां और अधिक समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगीं. मेरी समझ से मंगल पर रहनेवालों को या तो “महीना” रखने का विचार त्याग देना चाहिए या पृथ्वी की ही भांति एक वर्ष या अर्ध-वर्ष में महीनों की एक पूर्ण संख्या रख लेनी चाहिए.
इसी प्रकार “सप्ताह” की अवधारणा भी बहुत रोचक है. प्राचीन काल से ही लोग सप्ताह में दिनों की संख्या में फेरबदल करके देखते रहे हैं कि इसका हमारे जीवन और कामकाज पर क्या प्रभाव पड़ता है. बहुत सोचविचार करके हमने 7 दिनों का एक सप्ताह बनाया जिसमें एक-दो दिनों का सप्ताहांत या वीकेंड होता है. 7 दिनों के सप्ताह को हमने अपना लिया क्योंकि यह हमारी उत्पादकता बनाए रखता है.
इसीलिए मुझे लगता है कि मंगल पर रहनेवाले लोग भी 7 दिनों का ही एक सप्ताह बनाएंगे. इस प्रकार उन्हें एक वर्ष में लगभग 96 सप्ताह या एक अर्ध-वर्ष में लगभग 48 सप्ताह मिलेंगे.
ऊपर जो कुछ भी बताया गया है उसकी गणना मंगल दिन को आधार मानकर की गई है, लेकिन मुझे संशय है कि मंगल पर रहनेवाले लोग मंगल दिन का उपयोग करेंगे. यह बहुत संभव है कि वे पृथ्वी की काल गणनाओं को ही उपयोग में लाते रहेंगे.
इसका कारण यह है कि मंगल का कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं है और इसका वातावरण भी बहुत विरल है. इसके परिणामस्वरूप मंगल की सतह पर बने किसी किसी मिशन हाउस में या स्पेससूट में भी रहना भी हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक होगा.
मंगल पर रहने के दौरान लगभग पूरे समय ही हमें सतह के नीचे रहना पड़ेगा ताकि हानिकारक पराबैंगनी व अंतरिक्षीय किरणों से हमें कोई नुकसान न हो. सतह के नीचे हमें रात-दिन व सर्दी-गर्मी को कोई चिंता नहीं होगी. ऐसी स्थिति में जब हमें सतह पर जाने की आवश्यकता बहुत कम होगी तब मंगल के दिन को आधार बनाकर अपने शरीर की जैविक घड़ी को गड़बड़ा देने से बेहतर यही होगा कि हम पृथ्वी की मानक घड़ियों और कैलेंडर का ही उपयोग करते रहें. मंगल पर हम पाषाणयुगीन गुफामानवों की तरह ही रहेंगे.
By Steve Baker, Blogger at LetsRunWithIt.com (2013-present). Featured image: giant Martian shield volcano Arsia Mons.