जब कभी हम कोई ऐसी धुन या गीत सुनते हैं जो अचानक से ही हमें बहुत प्रिय लगने लगती है तो हमारे शरीर में आनंद का अनुभव कराने वाले हार्मोन या न्यूरोट्रांसमीटर का लेवल बढ़ जाता है. हमारे दिल की धड़कन बढ़ जाती है और आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं. शरीर का तापमान और पैरों की तरफ़ खून का बहाव भी बढ़ जाता है . हमारे मस्तिष्क में बॉडी मूवमेंट्स को नियंत्रित करनेवाला भाग सेरीबेलम (cerebellum) अधिक सक्रिय हो जाता है. मस्तिष्क डोपामाइन (dopamine) नामक एक न्यूरोट्रांसमीटर रिलीज़ करता है और सर से पैरों तक एक सिहरन का अहसास दौड़ता है.
संगीत को सुनने पर कभी-कभी होनेवाला सिहरन का यह अहसास सब लोगों में नहीं बल्कि केवल लगभग 50% व्यक्तियों में ही होता है. रिसर्च करनेवालों का यह कहना है कि यह अच्छी लगने वाली सिहरन मस्तिष्क द्वारा डोपामाइन छोड़ने पर मस्तिष्क के अगले भाग स्ट्रायटम (striatum) को एडिक्शन, पुरस्कार और प्रेरणा की अनुभूतियां देता है. ऐसा प्रतीत होता है कि कोई-कोई संगीत हमें उसी तरह से प्रभावित करता है जैसे सैक्स का आनंद, जुआ खेलने का रोमांच या जंक फ़ूड खाने पर मिलनेवाली संतुष्टि होती है.
इसमें रोचक बात यह है कि डोपामाइन का लेवल संगीत की धुन या गाने के स्पेशल मोमेंट पर पहुंचने से पहले तेजी से बढ़ जाती है. इससे यह स्पष्ट होता है कि हमारा दिमाग बहुत अच्छा श्रोता है और यह इस बात को पहचान लेता है कि संगीत अगले पलों में कैसा घुमाव लेने वाला है. इवोल्यूशन पर काम करने वाले वैज्ञानिकों का यह मानना है कि भविष्य में होने वाली किसी चीज़ का अनुमान लगा पाना हमारे सर्वाइवल के लिए बहुत ज़रूरी होता है.
लेकिन संगीत का मामला बहुत अलग है. जब हम कोई नया संगीत सुनते हैं तो हमें उसकी धुन के उतार-चढ़ावों का पता नहीं होता. ऐसे में हमारा मस्तिष्क संगीत की विशेषताओं का अनुमान लगाने के दौरान डोपामाइन के लेवल को कम-ज्यादा करता रहता है. यही वह समय होता है जब हमें सिहरन का अहसास होता है. जैसे ही हम संगीत की उस खास धुन तक पहुंचते हैं, स्ट्रायटम पूरी संतुष्टि की अनुभूति कराने के साथ शरीर को सिहरन से भर देता है.
लेकिन केवल लगभग आधे लोगों को ही पसंदीदा संगीत सुनने पर यह सिहरन क्यों होती है? इसका संबंध लोगों के व्यक्तित्व से होता है. वैज्ञानिकों का यह मानना है कि जो व्यक्ति हमेशा नई-नई चीज़ें करके देखते या नए अनुभवों को आजमाते रहते हैं उन्हें संगीतिक सिहरन होने की संभावना अधिक होती है. ऐसे लोगों में किसी वाद्य यंत्र को बजा सकने का कौशल होने की संभावना भी बहुत अधिक होती है. मुझे यह सिहरन अक्सर ही होती है और मैं बहुत प्रयोगधर्मी होने के साथ-साथ कई म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स भी बजा सकता हूं.
पेशाब करते वक्त कभी-कभी रोमांचक सिहरन क्यों होती है?
आम तौर पर पेशाब करते वक्त होने वाली सिहरन उस समय होती है जब बहुत देर से इसे करना टालते रहने के कारण प्रेशर बन जाता है. यह सिहरन आमतौर पर उस समय होती है जब यूरीनेशन (पेशाब करना) लगभग समाप्त होने वाला होता है. यह सिहरन हमारी रीढ़ की हड्डी से शुरू होकर पूरे शरीर में दौड़ती है. शरीर इससे होने वाले अहसास से पूरा कांप जाता है लेकिन यह अहसास बुरा नहीं लगता. इस सिहरन के होने के मुख्य कारण ये हैंः
डॉक्टरों के अनुसार पेशाब करने के दौरान होनेवाली इस सिहरन का कारण यह है कि पेशाब के रूप में बड़ी मात्रा में गर्म द्रव के तेजी से निकलने के कारण शरीर का तापमान गिर जाता है. इसके परिणामस्वरूप शरीर का रक्षात्मक तंत्र तेजी से सक्रिय हो जाता है और शरीर को कुछ गर्माहट देने के लिए सिहरन या झुरझुरी भेजता है. यह बिल्कुल वैसा ही है जब हमें ठंड लगती है और हमारा शरीर कुछ गर्माहट लेने के लिए कांपने लगता है.
इसके अलावा बहुत से डॉक्टरों का यह भी मानना है कि पेशाब करते वक्त होनेवाली सिहरन तब होती है जब हमारे शरीर से अधिक मात्रा में द्रव के अचानक निकल जाने पर हमारा ब्लड प्रेशर कम हो जाता है. शरीर ऐसी स्थिति में ब्लड प्रेशर को पहले वाली स्थिति पर लाने की कोशिश करता है जिससे सिहरन सी होती है. चूंकि बैठे होने की तुलना में खड़ी अवस्था में ब्लड प्रेशर कुछ अधिक होता है इसलिए पेशाब करते वक्त होनेवाली यह सिहरन पुरुषों को अधिक होती है क्योंकि वे अक्सर ही खड़े होकर पेशाब करते हैं जबकि महिलाएं बैठकर करती हैं. इसकी प्रकिया वास्तव में बहुत जटिल होती है लेकिन यहां इन्हें बहुत सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है.
इन विषयों पर क्वोरा में लिखे गए अलग-अलग उत्तरों का संकलन/संपादन. Photo by bruce mars on Unsplash
तब ऐसा सिहरन ब्लड डोनेट करते समय क्यों नहीं होता है।
एक बात और, संभोग का आनंद और स्खलन का सिहरन भी क्या इसी कारण है। जबकि विर्य की मात्रा मात्र 5ml. होती है?
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खून देते समय सिहरन नहीं होने के कारण ये हो सकते हैंः
1. खून का तापमान पेशाब से कम होता है. 2. खून बहुत धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकाला जाता है, जबकि पेशाब देर तक रोके रहने पर अधिक मात्रा में तेजी से बाहर निकलती है. 3. खून देते समय व्यक्ति पूरी विश्रामावस्था में (लेटे हुए) होता है इसलिए उसके ब्लड प्रेशर में गिरावट का अनुभव नहीं होता.
जहां तक संभोग के समय होने वाली सिहरन की बात है, स्त्री और पुरुष के यौनांगों में लयबद्ध तरीके से गति होने पर स्खलित होते ही मस्तिष्क से प्लेज़र हॉर्मोन या न्यूरोट्रांसमीटर ऑक्सीटोसिन की बड़ी मात्रा रिलीज़ करता है. इसी दौरान मस्तिष्क में ऑक्सीजन का लेवल भी गिर जाता है जिससे अलग-अलग तरह की सुखद अनुभूतियां होती हैं. ऑक्सीजन के लेवल में एकाएक होनेवाली यह कमी फौरन पूरी भी हो जाती है.
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