विकास (Evolution) कभी नहीं रुकता. यह तब तक के लिए प्रसुप्तावस्था में चला जाता है जब तक किसी चीज़ में बदलाव लानेवाला कोई कारण अस्तित्व में नहीं आ जाता. जब प्राणी के सर्वाइवल के लिए किसी आनुवांशिक विशेषता की ज़रूरत खत्म हो जाती है तब वह विशेषता मस्तिष्क के किसी रिकॉर्ड रूम में चली जाती है. वह वहां हमेशा मौजूद रहती है और वहां से वापस तभी आती है जब उसकी ज़रूरत दोबारा महसूस होने लगती है. इस बीच दूसरी विशेषताएं व लक्षण अपनी गति से विकसित होते रहते हैं.
ऊपर दिए गए GIF को देखिए. बच्चे के नीचे से सहारा अचानक हटा लेने पर उसमें होनेवाली हरकत को मोरो रिफ़्लेक्स (Moro Reflex) कहते हैं.
यह रिफ़्लैक्स नवजात शिशुओं में लगभग 4 महीने तक देखने में आता है. ऐसा तब होता है जब बच्चे के नीचे से सहारा हटने पर उसे लगता है कि वह गिर रहा है. तब बच्चा अनजाने में ही अपनी बाहें फैला देता है, खुद को भींच लेता है, फिर ढीला छोड़ देता है. इसके बाद वह अपनी पूरी ताकत से रोने लगता है. आप सावधानी से चार महीने से छोटे बच्चे के साथ ऐसा करके देख सकते हैं.
बच्चे के रोना बंद कर देने के बाद उसकी हथेलियों में अपनी उंगलियां फेरिए. क्या होता है?
बच्चा आपकी उंगली को मजबूती से पकड़ लेता है.
इतने छोटे और शक्तिहीन प्रतीत होनेवाले बच्चे के लिए उंगली इतनी ताकत से पकड़ लेना अचरज भरी बात है. नवजात शिशुओं की तो मांसपेशियां भी इस अवस्था तक पर्याप्त रूप से विकसित नहीं होतीं, फिर भी उनकी पकड़ इतनी मजबूत होती है कि वह उनके पूरे शरीर का भार उठा सकती है. इसे पामर ग्रैप्स रिफ़्लेक्स (Palmar Grasp Reflex) कहते हैं.
मैंने आपको इन रिफ़्लैक्सेस के बारे में क्यों बताया? क्योंकि ये रिफ़्लैक्सेस हमारी आनुवांशिकता में प्रसुप्त हो चुके हैं. हम सभी विकसित कपि-वानर परिवार प्राइमेट्स (primates) के सदस्य हैं. मनुष्यों और चिंपांजियों के DNA में 70 लाख वर्ष पहले विभिन्नताएं आनी शुरु हो गईं थीं. वर्तमान में मनुष्य और चिंपांजी के DNA की संरचना में केवल 1.2% अंतर है. विकास होने के साथ-साथ हमारा मस्तिष्क विकसित होता गया और DNA भी परिवर्तित होता गया.
अधिकांश प्राइमेट्स जीवन भर किसी छायादार वस्तु या वृक्ष में रहते हैं. उनके बच्चे सहज-बोध से अपनी मां की खाल से या पेड़ के तने से चिपटते हैं. वे पेड़ की डालियों पर बैठे रहते हैं और सोते भी वहीं हैं. यहां पर मोरो रिफ़्लेक्स उनके काम आता है. यह उनके बच्चों को पकड़ ढीले होते ही गिरने की संभावना होने पर उनकी मां को सावधान कर देता है और उन्हें भी अचानक पकड़ मजबूत करने के लिए उद्यत करता है. पामर ग्रैप्स रिफ़्लेक्स प्राइमेट्स को एक डाली से दूसरी डाली पर छलांग लगाते वक्त गिरने से बचाने के साथ-साथ दिन भर की अनेक गतिविधियों में इन्हें मजबूत पकड़ उपलब्ध कराता है. बच्चा यह काम खुद से नहीं करता बल्कि उसका मस्तिष्क करता है. मनुष्यों में मस्तिष्क का अग्र-भाग (frontal lobe) ऐच्छिक क्रियाएं (voluntary activities) करने के लिए योगदान देता है. अग्र-भाग का विकास होने से मोरो और पामर ग्रैप्स रिफ़्लेक्सेस दब जाते हैं और प्रायः सहज बोध से भुला दिए जाते हैं.
अब हम बच्चे को उसकी मां के हवाले करके देर तक नहाएंगे. बेचारे बच्चे को हमने बिना बात रुला दिया, इस अपराध बोध को हम बहुत देर तक नहा कर धो डालेंगे.
तो, बहुत देर तक नहाने के बाद जब हम अपने हाथों को देखेंगे तो हमें अपनी हथेलियां कुछ ऐसी दिखेंगी जैसी नीचे फोटो में दिख रही हैं. उंगलियों को ध्यान से देखिए. आपके साथ भी ऐसा बहुत बार हुआ होगा.
उंगलियों के साथ थोड़ी देर के लिए ऐसा होने का संबंध पानी के तापमान से नहीं है, न ही आपकी स्किन में कुछ खास है. यह भी एक तरह का रिफ़्लेक्स है जो हमारे मस्तिष्क नहीं बल्कि तंत्रिका तंत्र द्वारा उत्पन्न होता है. ऐसा तब होता है जब हमारी हथेलियां बहुत देर तक पानी के संपर्क में रहती हैं. लेकिन ऐसा केवल हमारी हथेलियों के साथ ही क्यों होता है, चेहरे के साथ क्यों नहीं होता? इसका कारण यह है कि लाखों वर्ष पहले जब हम भी दूसरे कपियों की भांति पेड़ों पर रहते थे तब बरसात के दिनों में हमारी गीली हथेलियों के कारण पकड़ कमज़ोर हो जाती थी.
तो विकास ने हमारी हथेलियों और उंगलियों को पानी के संपर्क में देर तक रहने पर झुर्रीदार (टायरों के उभार जैसा) बना दिया ताकि उनकी पकड़ मजबूत हो जाए और पेड़ की टहनियों और उंगलियों के बीच से बरसता हुआ पानी निकल जाए. इवोल्यूशन सच में बहुत कमाल की घटना या प्रक्रिया है.
By Jeff Mwangi, Aeronautical Engineering Banker, Biker, Rugby playing, Dad. Featured Photo by Joshua Reddekopp on Unsplash
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