यह सच है कि सूर्य अत्यधिक ज्वलनशील हाइड्रोजन गैस से बना है लेकिन रोचक बात यह है कि सूर्य अत्यधिक गर्म होने के वाबजूद भी बिल्कुल भी नहीं जल रहा है. जब हम कहते हैं कि सूर्य जल रहा है तो इसलिए कहते हैं क्योंकि वह हमें बहुत गर्मी देता है और चित्रों में यह आग की भांति दहकता-भभकता हुआ दिखता है.
जलना क्या है? जलना रासायनिक दहन का प्रचलित नाम है. जब कोई पदार्थ जलता है तब उस पदार्थ के अणु-परमाणु ऑक्सीजन से संयुक्त होते है और इस प्रक्रिया में बहुत सारी ऊष्मा और ऊर्जा निकलती है. यही कारण है कि चूल्हे में जलती लकड़ी और मोटरसाइकल का साइलेंसर बहुत गर्मी देता है. लेकिन सूर्य इस तरह से नहीं जल रहा है.
सूर्य ब्रह्मांड के अन्य तारों की भांति मुख्यतः हाइड्रोजन से बना है. पूरे सौरमंडल में इतनी ऑक्सीजन नहीं है कि सूर्य की सतह पर रासायनिक दहन हो सके. यदि सौरमंडल की सारी ऑक्सीजन का उपयोग सूर्य पर रासायनिक दहन के लिए किया जाए तो सूर्य कुछ घंटों में ही जलकर बुझ जाएगा.
सूर्य की सारी ऊष्मा और प्रकाश नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया से आता है. यह वही प्रक्रिया है जिसका उपयोग हाइड्रोजन बम बनाने में किया जाता है.
ब्रह्मांड में मौजूद सारा पदार्थ- सारे तत्व आयरन बनना चाहते हैं क्योंकि आयरन बहुत स्थिर परमाणु है. आयरन से भारी सभी तत्व (जैसे यूरेनियम) को यदि दो छोटे परमाणुओं में तोड़ा जाए तो ऊर्जा उत्पन्न होती है और उन दोनों परमाणुओं के द्रव्यमान का योग लगभग लोहे के बराबर होता है. लोहे से हल्के तत्वों को तोड़ने पर भी ऊर्जा निकलती है और यदि हम उन दोनों तत्वों को मिलाकर फिर कोई भारी परमाणु बनाएंगे तो उसका द्रव्यमान भी लगभग लोहे के बराबर होगा.
पृथ्वी पर हम कुछ भारी तत्वों (मुख्यतः यूरेनियम) के अस्थिर होने का लाभ उठाकर परमाणु बम या और कोई विखंडन मशीन बना सकते हैं जिसमें बहुत कम समय के लिए नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया होती है. परमाणु बम में थोड़े से यूरेनियम में नाभिकीय विखंडन होने से हजारों-लाखों टन TNT में विस्फोट होने जितनी ऊर्जा निकलती है.
परमाणु बम के नाभिकीय विखंडन से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का उपयोग करके हम कुछ हल्के तत्वों (आमतौर पर हाइड्रोजन और लीथियम के आइसोटोप्स) के परमाणुओं को संलयित करके परमाणु बम से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से भी सैंकड़ों-हजारों गुना अधिक ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है. तारों का निर्माण तब होता है जब पर्याप्त हाइड्रोजन एक जगह इकट्ठा हो जाती है और इसकी मात्रा अपने ही गुरुत्व से उत्पन्न दबाव और ताप से संलयित होने लगती है. परमाणु बम में जो प्रक्रिया एक सेकंड के बहुत छोटे हिस्से में होती है वही प्रक्रिया तारे में अरबों वर्ष तक होती रहती है क्योंकि संवहन धाराएं अप्रयुक्त हाइड्रोजन को संलयन क्षेत्र में लेकर आती रहती हैं. सूर्य के केंद्र में हाइड्रोजन के चार परमाणु मिलकर हीलियम का एक परमाणु बनाते हैं. ब्रह्मांड में मौजूद सारी हीलियम तारों में हाइड्रोजन के परमाणुओं के संलयित होने से बनी है.
लेकिन तारों की इस हीलियम का अंततः क्या होता है?
अधिकांश तारे जब अपनी हाइड्रोजन की बड़ी मात्रा को संलयित करके हीलियम बना लेते हैं तो उनके भीतर कुछ बदलाव आते हैं उनकी आंतरिक कोर ढहने लगती है और इतनी अधिक गर्म हो जाती है कि वह हीलियम को संलयित करके बड़े परमाणु बना सकती है. उदाहरण के लिए- तीन हीलियम परमाणुओं के संलयित होने से कार्बन बनता है. इसी समय कुछ हीलियम कार्बन से संलयित होकर ऑक्सीजन बनाती है. आंतरिक कोर के बाहर अभी भी इतनी हाइड्रोजन होती है जो संलयित होकर हीलियम में बदलती रहती है. लेकिन कोर में बड़े परमाणु लगातार बनते रहते हैं. इस तरह सूर्य जैसे सामान्य तारे लाल दानव (Red Giant) तारे बन जाते हैं.
लाल दानव चरण के बीत जाने के बाद सूर्य अपनी बाहरी पर्तें खो देगा और भीतर हीलियम से भरी कोर रह जाएगी जो ब्रह्मांड की अंतिम घड़ियों तक ठंडी होती रहेगी. सूर्य से भी भारी तारों में लाल दानव चरण बीत जाने के बाद भी परमाणु बनते रहते हैं. पहले ही संलयित हो चुके भारी परमाणु एक-दूसरे से जुड़ते जाते हैं और परिस्तिथियों के अनुसार हाइड्रोजन से आयरन तक भारी तत्वों के निर्माण की प्रक्रिया चलती रहती है.
जब कोर की हीलियम समाप्त हो जाती है तो तारा फिर से ढह जाता है, गर्म होने लगता है, और कार्बन व ऑक्सीजन मिलकर भारी परमाणु बनाने लगते हैं. यदि तारा पर्याप्त भारी हो तो यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक आयरन नहीं बन जाता. इस बिंदु पर कोर का तापमान इतना नहीं होता कि संलयन संभव हो सके. तारा ढहने लगता है, अस्थिर हो जाता है और प्रचंड विस्फोट से सुपरनोवा या न्यूट्रॉन तारे का जन्म होता है.
तो, आप यह बात जान लें कि सूर्य किसी मोमबत्ती या बल्ब की तरह नहीं “जल” रहा है. इससे भीतर ऐसी नाभिकीय प्रतिक्रियाएं हो रही हैं जिनसे इसे ईंधन की निर्बाध आपूर्ति होती रहती है. (featured image)