क्या आप यह जानते हैं कि छोटे जंतुओं जैसे बिच्छू, मकड़ी, टिड्डों की कुछ प्रजातियों में समागम के फौरन बाद मादा जंतु नर जंतु को मारकर खा जाती है? इस विचित्र व्यवहार को मैथुनिक नरभक्षण (Sexual cannibalism) कहते हैं. मादा जंतुओं का यह व्यवहार 30 से भी अधिक प्रजातियों में देखा गया है. कुछ जीववैज्ञानिक यह मानते हैं कि विकासवादी (Evolutionary) दृष्टिकोण से यह व्यवहार नर जंतु को स्वयं को अपनी भावी संतानों के लिए बलिदान कर देने के लिए प्रेरित करता है. हाल की कुछ रिसर्चों में यह पता चला है कि सैक्सुअल कैनिबलिज़्म एक अपवाद भी हो सकता है, अनिवार्यता नहीं.
सैक्सुअल कैनिबलिज़्म को समझाने वाले कुछ मॉडल हमें बताते हैं कि यह क्यों होता है और इस गतिविधि में शामिल दोनों पार्टनर इसपर क्यों सहमत होते हैं. हर प्रजाति का उद्देश्य यह होता है कि वह संतानोत्पत्ति करके अपने जीन्स आगे संततियों तक पहुंचाए. कीड़ों की कुछ प्रजातियां इससे भी आगे बढ़कर अपनी संतानों का भला करना चाहती हैं. ऐसे वातावरण में जहां मादा के पास संसाधनों की कमी होती है और उसे बच्चों को जन्म देने के लिए अधिक खुराक और पोषण की ज़रूरत होती है वहां नर जंतु को मार दिया जाता है. लेकिन कीड़ों में भी बहुत कम प्रजातियां हैं जहां यह प्रवृत्ति देखी गई है. यह अनुमान लगाया गया है कि ऐसा करने से उन प्रजातियों को समागम करने में आसानी होती है. स्वयं का भक्षण करवाने से नर जंतु मादा को समागम के लिए अधिक समय दे पाता है और अधिक समय मिलने से मादा को गर्भधारण करने में आसानी होती है. अंततः इससे मादा और उसके होनेवाले बच्चों के पोषण की आवश्यकताएं भी पूरी हो जाती हैं.
झींगुरों के मामले में यह देखा गया है कि समागम के दौरान नर झींगुर मादा को अपने पंख खाने देते हैं. पंख खिला देने से नर झींगुर की मृत्यु नहीं होती है और वे भविष्य में भी समागम कर सकते हैं. यह व्यवहार हमेशा नहीं देखा जाता और यह मादा की पोषण आवश्यकताओं पर भी निर्भर करता है. यदि संसाधन सीमित हों तो मादा उन कीड़ों के पास जाना पसंद करती है जिनके पंख सही सलामत हैं. लेकिन यदि पर्याप्त पोषण उपलब्ध हों तो मादा को इस बात की परवाह नहीं होती कि नर झींगुर कुंवारे हैं या नहीं और फिर वह उन्हें अपना शिकार नहीं बनाती.
कीड़ों की कुछ प्रजातियों में नर को समागम के दोरान बहुत यातना झेलनी पड़ती है लेकिन उन्हें इसका पुरस्कार भी मिलता है, भले ही उन्हें पहले से इसका पता न हो. समागम के दौरान मादा नर कीड़े का खून चूस लेती है जिससे नर का जननांग टूटकर मादा के भीतर रह जाता है. यह बहुत रोचक है कि ऐसा होने के पीछे भी विकासवादी लाभ होता है क्योंकि यह दूसरे कीड़ों को मादा को गर्भवती करने से रोकता है. इस प्रकार यह घटना यह सुनिश्चित कर देती है कि उनकी संतान का जन्म अवश्य होगा. एक प्रजाति की सफेद मकड़ी के नर का जननांग भी मादा के भीतर टूटकर छूट जाता है लेकिन ऐसा होने से उसकी जान भी बच जाती है और उसकी संतानें भी जन्म ले पाती हैं.
मादा वोल्फ़ मकड़ी सैक्सुअल कैनिबलिज़्म तभी करती है जब अन्य सारे विकल्प समाप्त हो गए हों. जब भोजन सीमित होता है तो वह अपनी प्रजाति के किसी असहाय नर की बजाए किसी दूसरे कीड़े को भोजन बनाती है. लेकिन ब्लैक विडो मकड़ी हर परिस्तिथि में समागम के बाद अपने नर साथी को खाने के लिए विकसित हुई है, उसका नर खुद को मादा के दांतों के बीच फंसा देता है. स्तनधारी प्राणियों में विशाल हरी मादा एनाकोंडा कई नर एनाकोंडा से एक साथ समागम करती है और अपनी गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिए उनमें से किसी एक को खा जाती है.
प्रकृति में सैक्सुअल कैनिबलिज़्म कोई चुनाव नहीं बल्कि आवश्यकता अधिक प्रतीत होता है. पर्यावरणीय दशाएं और भोजन की कमी ऐसे जंतुओं की आदतों में बदलाव लाते हैं, इसीलिए इन जंतुओं का अलग-अलग परिस्तिथियों (जैसे बंधन में या जंगली परिवेश) में अध्ययन करने से सही परिणाम नहीं मिलते. लेकिन कीड़ों की लगभग 10 करोड़ विद्यमान प्रजातियों में से उन प्रजातियों को पहचानना बहुत कठिन है जो सैक्सुअल कैनिबलिज़्म के अलग-अलग आयाम प्रदर्शित करते हों.
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