इस प्रश्न का सीधा उत्तर यह है कि मनुष्य और प्राइमेट्स कपि-वानर (जैसे ओरांगउटान, गिबन, चिंपांजी, आदि) के मेल से संतान उत्पन्न नहीं हो सकती.
लेकिन इसका कारण क्या है? यह सच है कि मनुष्य और प्राइमेट्स (कपि-मनुष्य परिवार के सदस्य) के DNA में 95% से 97% तक समानताएं हैं लेकिन हम एक ही स्पीशीज़ (प्रजाति) के सदस्य नहीं हैं. हमारे DNA के इतना अधिक समान होने के कारण हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि बहुत पहले हम एक ही प्रजाति के सदस्य थे लेकिन प्रजातिकरण (speciation) नामक एक प्रक्रिया ने हमें अलग-अलग प्रजातियों में बांट दिया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि एक समूह के प्राइमेट्स दूसरे समूह के प्राइमेट्स से दूर या अलग हो गए. समय बीतने के साथ-साथ उनमें आनुवांशिक परिवर्तन आ गए. सबसे पहले अस्तित्व में आनेवाले मनुष्य इसी के परिणामस्वरूप विकसित हुए थे.
प्रजातिकरण की प्रक्रिया अपनी गति पर चलती रही और आधुनिक मनुष्य अस्तित्व में आए. आज हमारे और कपि-वानरों के बीच एक प्रजनन अवरोध उत्पन्न हो गया है जिसे लांघना संभव नहीं है. यदि किसी मनुष्य का शुक्राणु लेकर उसे किसी प्राइमेट के अंडाणु से निषेचित करने का प्रयास करें तो दोनों (शुक्राणु और अंडाणु) एक-दूसरे को पहचान नहीं पाएंगे. यह किसी कार को पेट्रोल की जगह दूध से चलाने जैसा होगा. दूध भी द्रव है और हमें ऊर्जा देता है लेकिन कार के इंजन और दूध का कोई मेल नहीं है. उसे तो पेट्रोल ही चाहिए. मनुष्य के शुक्राणु का किसी कपि के अंडाणु से निषेचन तो दूर की बात है, शुक्राणु इस प्रक्रिया के दौरान अपने औसत जीवनकाल के बहुत पहले ही मर जाएगा क्योंकि यह किसी विदेशी प्रजाति के शरीर या रसायनों के बीच है और इस मेल के लिए विकसित नहीं हुआ है.
कुछ अलग-अलग प्रजातियां होती हैं जो एक-दूसरे से समागम कर सकती हैं, जैसे घोड़े और गधे के मेल से खच्चर तथा लॉयन और टाइगर के समागम से लाइगर का जन्म होता है. ऐसी संतानें हाइब्रिड कहलाती हैं. इन जंतुओं में प्रजातिकरण एक सीमा तक ही हुआ है क्योंकि ये अलग-अलग प्रजातियां हैं. आनुवांशिकता के स्तर पर ये अलग-अलग प्रजातियां एक दूसरे से समागम कर सकती हैं लेकिन इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होनेवाले हाइब्रिड जंतुओं में कई कमियां होती हैं. हाइब्रिड प्रायः नपुंसक होते हैं और उनकी शारीरिक क्षमताएं और दक्षताएं सीमित होती हैं. उनका जीवनकाल उनकी पालक प्रजातियों से कम ही होता है. कुछ भाग्यशाली हाइब्रिड नपुंसक नहीं होते लेकिन उनकी संतानें नपुंसक और अधिक कमज़ोर होती हैं. इस प्रक्रिया को हाइब्रिड ब्रेकडाउन (hybrid breakdown) कहते हैं.
मनुष्य के किसी अन्य प्रजाति से मेल कराने के कुछ अनैतिक प्रयोग अतीत में किए गए हैं. ऐसा शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ में किया गया था. इल्या इवानोविच इवानोव (Ilya Ivanovich Ivanov) नामक सोवियत जीवविज्ञानी कृत्रिम गर्भाधान और हाइब्रिडीकरण का विशेषज्ञ था. उसने मादा चिंपांजी को मनुष्य के शुक्राणु से निषेचित करके हाइब्रिड प्रजाति बनाने के प्रयोग किए. यह भी कहा जाता है कि उसने अपने प्रयोगों में स्त्री वालंटियर्स का भी इस्तेमाल किया. उसके प्रयोगों के दौरान लगभग सभी सब्जेक्ट्स में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हुईं और सारे प्रयोग बुरी तरह से असफल हुए. हर मामले में अलग-अलग प्रजातियों के शुक्राणुओं और अंडाणुओं के बीच किसी प्रकार का संपर्क नहीं हुआ क्योंकि वे एक-दूसरे को पहचान ही नहीं पाए. इस घटना को गेमेटिक आइसोलेशन (gametic isolation) का नाम दिया गया.
चिंपांजी हमारे सबसे निकटतम संबंधी हैं. चिंपांजी को छोड़कर हमने हर उस प्रजाति को नष्ट कर दिया है जो हमारी और अधिक निकटतम संबंधी थी. ऐसा करके हमने अपने चारों ओर एक दीवार खड़ी कर ली जिसने हमें अन्य प्राइमेट्स से दूर कर दिया. इस प्रकार जिन अलग प्रजातियों के साथ मिलकर हम हाइब्रिड संतानें उत्पन्न कर सकते थे वे सभी हमसे आनुवांशिकता के स्तर पर दूर होती चली गईं. मनुष्यों और नियांडरथल (Neanderthals) के बीच समागम होने के प्रमाण मिले हैं और उनकी संतानें जीवक्षम और प्रजननक्षम होती थीं. नियांडरथल के जीनोम की सीक्वेंसिंग (sequencing) की जा चुकी है. इससे यह पता चला है कि अफ़्रीका की वंशावली से संबंध नहीं रखनेवाले आधुनिक मनुष्यों में नियांडरथल का DNA है. आप भी अपने DNA की जांच करवा कर यह पता लगा सकते हैं कि आपमें नियांडरथल से कितनी निकटता है. मनुष्य (होमो सेपियंस) और होमो डेनिसोवेंस (Homo denisovans) के समागम करके संतानोत्पत्ति करने के प्रमाण पैसिफ़िक क्षेत्र के व्यक्तियों के DNA में मिले हैं. यह भी संभव है कि होमो सेपियंस और होमो इरेक्टस के मेल से कोई नपुंसक हाइब्रिड जीव की उत्पत्ति हुई हो. लेकिन हम इस बारे में कुछ भी प्रमाण के साथ नहीं कह सकते. विकास के चरणों में हमने हर उस प्रजाति को पीछे छोड़ दिया जो हमारे साथ मिलकर किसी जीवक्षम हाइब्रिड को उत्पन्न कर सकती थी. इसके परिणाम अच्छे ही हुए क्योंकि यदि मनुष्यों की कोई नपुंसक हाइब्रिड प्रजाति अस्तित्व में होती तो मनुष्य उससे उसी प्रकार व्यवहार करते जैसा वे बोझा ढोने वाले पशुओं से करते हैं. (image credit)