स्टीफ़न हॉकिंग ने भौतिकी में ब्लैक होल के अध्ययन के क्षेत्र में सर्वाधिक काम किया था. उन्हें नोबल पुरस्कार नहीं मिलने का कारण भी यही है.
एल्फ़्रेड नोबल ने मानवता की सेवा करने के उद्देश्य से नोबल पुरस्कार देने के लिए संकल्प किया था. ये पुरस्कार उन योगदानों के लिए दिए जाते हैं जिनसे मानवता का हित हो.
भौतिकी (और अन्य क्षेत्रों में) सिद्धांतों के लिए नहीं बल्कि खोजों और सफल प्रयोगों के लिए नोबल पुरस्कार देने की परंपरा है.आइंस्टीन को भी नोबल पुरस्कार उनके भौतिकी के प्रति सबसे प्रमुख योगदान सापेक्षता के लिए नहीं बल्कि प्रकाश विद्युत प्रभाव के लिए दिया गया. ऐसे अनेक महान सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री हुए हैं जिन्हें नोबल पुरस्कार नहीं दिया गया. एडवर्ड विटन (Edward Witten) को भी नोबल पुरस्कार नहीं मिला, हालांकि उन्हें फ़ील्ड्स मेडल (Fields medal) मिल चुका है.
भौतिकी के क्षेत्र में स्पेस-टाइम से संबंधित सिद्धांतों को प्रामाणित करके दिखाना बहुत कठिन है. इन्हें सिद्ध करने में कई दशक या सदियां भी लग सकती हैं क्योंकि इन्हें प्रयोग करके जांचनेवाली प्रोद्योगिकी या टैक्नोलॉजी हमारे पास उपलब्ध नहीं है.यदि हमारे पास गति की समस्या को हल करके गहन अंतरिक्ष की यात्रा करने की तकनीक होती तो हम ब्लैक होल्स का अध्ययन करके हॉकिंग की परिकल्पनाओं की जांच कर सकते थे. यदि उनके परिणाम आशानुरूप प्राप्त होते तो हॉकिंग को नोबल पुरस्कार मिलने में कोई संदेह नहीं होता. दुर्भाग्यवश यह कहना सरल है लेकिन इसे कर पाना बहुत कठिन है.
हॉकिंग की मुख्य स्थापना को हम हॉकिंग रेडिएशन के नाम से जानते हैं. उनके इस सिद्धांत के अनुसार ब्लैक होल पूरी तरह से ब्लैक नहीं होते. वे अपनी बाहरी सतह (इवेंट होराइज़न) से क्वांटम प्रभावों के कारण रेडिएशन का उत्सर्जन करते हैं. इस उत्सर्जन के परिणामस्वरूप उनके द्रव्यमान में कमी आती जाती है और वे अंततः गायब हो जाते हैं. ब्लैक होल से होने वाले रेडिएशन के उत्सर्जन की प्रकृति इस बात पर निर्भर करती है कि उनके भीतर किस प्रकार का पदार्थ है. इस प्रकार सूचना के संरक्षण का नियम ब्लैक होल्स पर पूरी तरह से लागू नहीं होता.
हॉकिंग की ये परिकल्पनाएं व स्थापनाएं उन्होंने 1970 के दशक में की थीं लेकिन उन्हें अभी तक प्रयोगों या अवलोकनों के द्वारा परखा नहीं जा सका है.
पीटर हिग्स (Peter Higgs) ने स्पेस-टाइम के संबंध में हिग्स-बोसॉन के सिद्धांत का प्रतिपादन तब कर लिया था जब उनकी उम्र केवल 31 वर्ष थी. उनके सिद्धांत का प्रामाणीकरण होते-होते वे 86 वर्ष के हो गए. इस सिद्धांत को सिद्ध करके दिखाने वाली तकनीक (लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर) के निर्माण में कई दशक लग गए और इस काम में अरबों डॉलर का खर्च आया.
अब वैज्ञानिक एलएचसी में माइक्रो ब्लैक होल्स बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि वे क्वांटम भौतिकी के सिद्धांतों की जांच कर सकें. वैज्ञानिकों ने हाल ही में आइंस्टीन के गुरुत्वीय तरंगों से संबंधित सिद्धांत को सुदूर अंतरिक्ष में दो ब्लैक होल्स के मर्ज होने पर उत्पन्न हुई तरंगों के अध्ययन से सिद्ध किया है. आइंस्टीन ने यह सिद्धांत 1920 में दिया था. इसे प्रामाणित होने में लगभग 100 वर्ष लग गए.
विज्ञान और हॉकिंग से प्रेम करनेवाले हर व्यक्ति को यह आस बंधी रहती थी कि हॉकिंग को कभी-न-कभी नोबल पुरस्कार मिलेगा. अब वे हमारे बीच नहीं है और हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले दशकों में तकनीकी विकास होने के साथ-साथ उनके दिए अनेक सिद्धांत परखे जा सकेंगे और भौतिकी के लिए उनके योगदान का यथोचित मूल्यांकन हो सकेगा. (photo credit)