परीक्षणों से इसके संकेत मिले हैं कि बृहस्पति ग्रह की एक ठोस चट्टानी कोर है. बृहस्पति की यह कोर उसके हजारों किलोमीटर गहराई वाले सघन गैसीय वातावरण के नीचे है. बृहस्पति के वातावरण में प्रवेश करके नीचे उतरने का प्रयास करने वाले अंतरिक्ष यान को प्रचंड वायुदाब का सामना करना पड़ेगा और यान अंततः असीम दबाव के कारण चकनाचूर हो जाएगा.
एक पल के लिए हम मान लेते हैं कि हमारा अंतरिक्ष यान इतना मजबूत है कि किसी भी दशा में टूट नहीं सकता. बृहस्पति के वातावरण में प्रवेश करने के बाद कुछ हजार किलोमीटर तक दबाव क्रमशः बढ़ता जाएगा और सघन होता जाएगा. एक हजार किलोमीटर पर वायुमंडलीय दबाव लगभग दस लाख पास्कल होगा. यदि हम हमारे ग्रह से इसकी तुलना करें तो पृथ्वी पर वायुमंडलीय दबाव एक लाख पास्कल है. बृहस्पति ग्रह पर इतने ऊंचे दबाव पर हाइड्रोजन गैसीय अवस्था में नहीं रह सकती. हमारे अंतरिक्ष यान को हजारों किलोमीटर नीचे की यात्रा द्रव हाइड्रोजन के महासागर में करनी पड़ेगी. इस बीच दबाव और ताप बहुत तेजी से बढ़ता जाएगा. कोई दूसरा अंतरिक्ष यान होता तो वो बहुत पहले ही चकनाचूर हो चुका होता, लेकिन हमारा अंतरिक्ष यान तो अटूट और अभेद्य है.
अब जैसे-जैसे अंतरिक्ष यान नीचे जा रहा है, वैसे-वैसे इसके आसपास के पदार्थ का घनत्व भी बढ़ता जा रहा है. ऐसे में एक सीमा ऐसी आती है जब यान के पदार्थ और बाहर के वातावरण का घनत्व एक-समान हो जाता है. इस बिंदु पर हमारा यान बृहस्पति के वातावरण में थम जाएगा, वह आगे नहीं बढ़ पाएगा. अब यान वहां हमेशा के लिए फंसा रहेगा जब तक बृहस्पति का विनाश नहीं हो जाता.
अब हम यह मान लेते हैं कि हमारा अंतरिक्ष यान न केवल अटूट और अभेद्य है बल्कि इसका घनत्व भी असीम है. इस स्थिति में हमारा यान बृहस्पति के वातावरण में धंसता चला जाएगा. आगे कुछ हजार किलोमीटर की यात्रा करने के बाद हमारा यान उस बिंदु तक आएगा जहां हाइड्रोजन गैस द्रव अवस्था में नहीं रह सकती. यहां पर वायुमंडलीय दबाव 200 गीगापास्कल या पृथ्वी के वायुमंडलीय दबाव का बीस लाख गुना होगा. यहां का तापमान लगभग 20,000 डिग्री सेल्सियस होगा और हाइड्रोजन धातु जैसी दिखेगी. धात्वीय हाइड्रोजन की यह पर्त बृहस्पति की आंतरिक संरचना के 50% भाग का निर्माण करती है. असीम घनत्व वाला हमारा अंतरिक्ष यान इसको भी भेदकर आगे बढ़ता जा रहा है. यह अंततः बृहस्पति की चट्टानी कोर तक पहुंच जाएगा.
सच तो यह है कि हम नहीं जानते कि बृहस्पति की कोर कितनी विशाल है. एक अनुमान के अनुसार यह पृथ्वी की कोर के व्यास की लगभग 10 गुना होगी. यहां वातावरण का दबाव अरबों-खरबों गुना अधिक होगा. यहां का तापमान एक लाख डिग्री तक पहुंच जाएगा. हम खुशकिस्मत हैं कि हम भौतिकी के नियमों को तोड़-मरोड़ कर बृहस्पति की “सतह” तक पहुंच गए.
गैलीलियो ऑर्बिटर ने बृहस्पति के वातावरण में एक जांच डिवाइस छोड़ी थी जो नष्ट होने के पहले 78 मिनट तक कार्य करती रही. छोड़े जाते समय इस डिवाइस की गति लगभग एक लाख किलोमीटर प्रति घंटा थी जो बृहस्पति के वायुमंडल की सघनता के कारण घटकर तीन सौ किलोमीटर प्रति घंटा रह गई. वातावरण में उतरने के साथ-साथ इसकी गति कम होती गई. फिर बृहस्पति के प्रचंड दबाव ने इसे नष्ट कर दिया.
अपनी सारी कल्पनाओं को हम विराम दें तो सच यह है कि हम बृहस्पति की सतह पर अंतरिक्ष यान नहीं उतार सकते. हमारा हर प्रयास बहुत महंगी आतिशबाजी का नमूना बनकर रह जाएगा और उसे भी हम अच्छे से नहीं देख पाएंगे. (featured image)