बड़े-बुजुर्ग हमें उंगलियां और शरीर के दूसरे जोड़ चटकाने को मना करते थे क्योंकि ऐसा माना जाता था कि इससे हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं और संधिवात (arthritis) हो जाता है. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने इन सारी आशंकाओं को दरकिनार कर दिया है.
लेकिन यह प्रश्न फिर भी उठता है कि उंगलियां चटकाने पर आवाज़ क्यों आती है और हमें उंगलियां चटकाने पर अच्छा क्यों लगता है?
हमारी हड्डियों के जोड़ों के बीच एक प्रकार का ल्युब्रिकेंट द्रव मौजूद होता है जिसे साइनोवियल फ्लुइड (Synovial fluid) कहते हैं. साइनोवियल फ्लुइड में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, और कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैसें होती हैं. उंगलियां चटकाने पर ये गैसें रिलीज़ होती हैं और इनका बुलबुला बनता है. यह बुलबुला अधिक दबाव पड़ने पर फूट जाता है. यही आवाज़ हमें उंगलियां चटकने पर सुनाई देती है. उंगलियों को चटकाने पर उनके जोड़ फैल जाते हैं और जोड़ों पर स्थित तंत्रिकाएं शिथिल हो जाती हैं और हमें राहत का अनुभव होता है. एक बार अच्छे से चटकने के बाद गैस को दोबारा बनने में लगभग 20 मिनट लग जाते हैं, इसीलिए एक बार चटक चुकी उंगलियों को फौरन दोबारा चटकाने की कोशिश करने पर आवाज़ नहीं आती.
यदि उंगलियां चटकाने पर हमें दर्द नहीं होता हो तो इससे किसी तरह का नुकसान होने के प्रमाण नहीं मिले हैं. कैलीफोर्निया के मेडिकल डॉ. डोनाल्ड उंगर (Donald Unger) ने लगभग 60 वर्ष तक केवल अपने एक ही हाथ की उंगलियां रोज़ चटकाईं. साठ वर्षों के बाद उनके दोनों हाथों की जांच करने पर यह पाया गया कि उनके दोनों हाथों की हड्डियों में किसी प्रकार का अंतर नहीं था, अर्थात 60 वर्ष तक हड्डियां चटकाने पर भी उनकी उंगलियों की हड्डियों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा था. इस अनूठे प्रयोग के लिए डॉ. उंगर को 2009 का Ig Nobel पुरस्कार दिया गया.
यदि आप अपनी उंगलियां चटकाते रहते हैं तो आपको हड्डियों को नुकसान पहुंचने की आशंका से भयभीत नहीं होना चाहिए. आप केवल इतना ही ध्यान रखें कि उंगलियां चटकाने कि लिए आप अधिक बल का प्रयोग नहीं करें क्योंकि इससे जोड़ों को नुकसान पहुंच सकता है और दर्द बढ़ सकता है. (featured image)