टाइटन (Titan) शनि ग्रह (Saturn) का सबसे बड़ा चंद्र है. सौरमंडल में केवल यही एकमात्र चंद्र है जिसपर सघन वातावरण है और जहां सतह पर पानी के द्रव रूप की प्रामाणिक उपस्तिथि देखी गई है.
टाइटन शनि ग्रह का छठवां चंद्र है जो पर्याप्त गुरुत्व के कारण पूरी तरह से गोल है. इसे प्रायः ग्रह-सदृश चंद्र कहते हैं क्योंकि यह हमारे चंद्रमा से भी लगभग 50% अधिक बड़ा है. ब्रहस्पति (Jupiter) के चंद्र गैनीमीड (Ganymede) के बाद यह सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्र है. यह सबसे छोटे ग्रह बुध से भी बड़ा है लेकिन उसके द्रव्यमान का केवल 40% है. इसकी खोज 1655 में डच खगोलशास्त्री क्रिस्टियान हायगेंस (Christiaan Huygens) ने की थी. यह खोजा जाने वाला शनि का सबसे पहला चंद्र और सौरमंडल का छठवां चंद्र (एक हमारा चंद्रमा और बाकी चार ब्रहस्पति के चंद्र) था. यह शनि की परिक्रमा 20 शनि त्रिज्या की दूरी से करता है. टाइटन के आकाश से शनि ग्रह पृथ्वी से चंद्रमा की तुलना में 11.4 गुना अधिक बड़ा दिखता है.
टाइटन की सतह मुख्यतः चट्टानों और बर्फ से बनी है. घने अपारदर्शी वातावरण के कारण इसकी सतह का अध्ययन करना संभव नहीं था. वर्ष 2004 में कैसिली-हायगेंस मिशन अंतरिक्ष यान ने टाइटन के ध्रुवीय क्षेत्र में द्रव हाइड्रोकॉर्बन की खोज की. इसकी सतह अपेक्षाकृत सपाट है और इसपर क्रेटरों की संख्या बहुत कम है.
टाइटन के वातावरण में मुख्यतः नाइट्रोजन गैस है. अन्य तत्वों की अल्पमात्रा से इसमें मीथेन-ईथेन के बादल और नाइट्रोजन के यौगिकों के स्मॉग बनते हैं. इसकी जलवायु में हवा और वर्षा होने के कारण पृथ्वी से मिलती-जुलती स्थलाकृतियां जैसे टीले, टिब्बे, डेल्टा, नदियां, तालाब, और सागर आदि बनते हैं जिनमें द्रव मीथेन-ईथेन की अधिकता होती है. इसके नाइट्रोजन आधारित द्रव वातावरण के कारण टाइटन का मीथेन चक्र पृथ्वी के जल चक्र जैसा होता है लेकिन इसका औसत तापमान बहुत कम (लगभग −179.2 °C) होता है.
टाइटन को पानी की मौजूदगी के कारण मंगल ग्रह के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है. नीचे कुछ बिंदु दिए जा रहे हैं जिनमें टाइटन और मंगल ग्रह की तुलना की गई हैः
- टाइटन का गुरुत्व चंद्रमा से कम है और मंगल की तुलना में तो बहुत ही कम है. इतने कम गुरुत्व में वहां रहनेवालों का स्वस्थ रह पाना संभव नहीं है.
- टाइटन मंगल ग्रह की तुलना में हमसे 15 गुना अधिक दूर है. फिलहाल मंगल ग्रह की यात्रा में कम-से-कम 6 महीने लगते हैं. टाइटन की यात्रा में लगभग 6 वर्ष लगेंगे. अंतरिक्ष में अधिक समय तक रहना अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है. अंतरिक्ष में 6 महीने में ही स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है तो 6 वर्ष (आना-जाना कुल 12 वर्ष) में तो यात्रियों के जीवन पर घोर संकट खड़ा होने की पूरी संभावना है.
- टाइटन का औसत तापमान -150 डिग्री C है जबकि मंगल ग्रह पर यह -65 C है जो कि 25 C तक गर्म हो सकता है.
- मंगल और पृथ्वी 2 वर्ष में एक बार एक-दूसरे के निकटतम आते हैं जबकि पृथ्वी और शनि (और टाइटन) 26 वर्ष में निकटतम आते हैं. ऐसी स्थिति में हमें लंबी यात्रा की योजना बनाने के लिए कई वर्ष का इंतज़ार करना पड़ सकता है.
- टाइटन का वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी से भी अधिक है. ऐसे स्पेस-सूट बनाना कठिन होगा जिनमें अंदर का प्रेशर बाहर के प्रेशर से कम हो. मंगल का वातावरण लगभग निर्वात जैसा है इसलिए वहां सामान्य स्पेस-सूटों से काम चल जाएगा.
- टाइटन और मंगल, दोनों जगह रहनेवालों को विद्युत उत्पन्न करने के लिए सोलर पैनल लगाने पड़ेंगे, लेकिन टाइटन की सूर्य से दूरी बहुत अधिक होने के कारण समान मात्रा में विद्युत बनाने के लिए इसके पैनलों का क्षेत्रफल मंगल की तुलना में 225 गुना अधिक रखना पड़ेगा. वास्तव में पैनलों का आकार 225 गुना से भी अधिक रखना पड़ेगा क्योंकि टाइटन का वातावरण अधिक सघन है.
- टाइटन शनि ग्रह से ज्वारीय रूप से (tidally) जुड़ा है और इसका परिक्रमा काल 15 दिन का है. इसका अर्थ यह है कि इसके आधे भाग पर दिन एक सप्ताह से भी अधिक समय तक रहता है, फिर इस हिस्से पर इतने ही समय तक अंधेरा छा जाता है. इस अंधकार और उससे उत्पन्न ठंडक का सामना करने के लिए बहुत बड़ी संख्या में सोलर पैनल और बैटरियों की ज़रूरत पड़ेगी.
- यदि मंगल पर कॉलोनी बना पाना और जीवन जीना बहुत कठिन है तो टाइटन पर यह लगभग असंभव होगा.
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