यह एक भ्रांति है कि हमारे चारों ओर स्थित ठोस वस्तुएं जिन परमाणुओं से मिलकर बनी हैं उनके भीतर 99.9% रिक्त स्थान होता है. और इस भ्रांति का कारण यह है कि हम परमाण्विक कणों (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन) को कण की तरह मानकर बात करते हैं. लेकिन वे कण जैसी चीज़ नहीं हैं.
वास्तविकता में इलेक्ट्रॉन कण नहीं हैं और उनका कोई नियत आकार या स्थिति नहीं होती. स्कूल में छोटी कक्षाओं में हम मोती-मनकों से बने परमाणु संरचना के मॉडल या चित्र देखते हैं तो हमारे मन में उनकी वही छवि अंकित हो जाती है.
यही कारण है कि महान भौतिकशास्त्री और नोबल पुरस्कार विजेता रिचर्ड फेनमेन (Richard Feynman) ने बच्चों की विज्ञान की किताबों को रिव्यू करने का ऑफ़र मिलने पर कहा था कि, “आपको बच्चों को वे बातें बताकर नहीं सिखाना चाहिए जो असत्य हैं.”
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, और न्यूट्रॉन कण नहीं बल्कि परिमाण या क्वांटा (quanta) होते हैं. उनमें कुछ गुण कणों के होते हैं और कुछ गुण तरंग के होते हैं. वे स्पेस में संभाव्यता प्रकार्य (probability function) के रूप में स्थित होते हैं इसलिए वह “रिक्त स्थान” वास्तव में रिक्त स्थान नहीं होता. उस रिक्त स्थान का अवयव संभाव्यताओं से भरा होता है. आप किसी परमाणु को धुंए या कोहरे से भरे क्षेत्र के रूप में सोच सकते हैं. यह कल्पना भी सही नहीं है लेकिन यह परमाणु को सौरमंडल में सूर्य की परिक्रमा लगाते ग्रहों के रूप में मानने से बेहतर है.

ऊपर दिए गए परमाणु मॉडल के चित्र में नीले रंग से इलेक्ट्रॉन क्लाउड में दिखाए गए नीले बिंदु इलेक्ट्रॉन कण नहीं बल्कि संभाव्यता के संकेतक (indicators) हैं. इलेक्ट्रॉन उस पूरे क्षेत्र में प्रकाश की गति से मंडराते रहते हैं और किसी भी समय कहीं भी हो सकते हैं. यह तो तय है कि वे एक नियत परिक्रमा पथ पर नाभिक की परिक्रमा नहीं करते.
जब हम किसी वस्तु को ठोस कहते हैं तो यह मानते हैं कि ठोस वस्तु कुछ स्थान घोरती है और दो ठोस वस्तुएं एक दूसरे को ठेलती हैं, जबकि स्पेस का कोई आकार नहीं होता और स्पेस हर चीज को बिना किसी प्रतिरोध के अपने में से आने-जाने देता है. रदरफोर्ड के प्रसिद्ध सोने की पन्नी वाले प्रयोग ने भी लोगों के मन में यह बात बिठा दी कि परमाणु के भीतर बहुत अधिक खाली स्थान होता है.
अब प्रश्न यह उठता है कि यदि परमाणुओं के भीतर बहुत अधिक खाली क्षेत्र होता है तो चीजें किस तरह पूरी ठोस दिखती हैं?
इलेक्ट्रॉन्स का चार्ज निगेटिव होता है और वे एक दूसरे को प्रचंड वेग से परे धकेलते रहते हैं. लेकिन प्रोटॉन का चार्ज पॉज़िटिव होता है और वे इल्क्ट्रॉनों को उसी प्रचंड वेग से अपनी ओर खींचते हैं. इसके परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉन प्रोटॉनों से जुड़े रहना चाहते हैं लेकिन वे दोनों एक ही स्पेस में एक साथ नहीं रह सकते इसलिए इलेक्ट्रॉन्स नाभिक के चारों और बादल जैसा क्षेत्र बना देते हैं. इस क्षेत्र में तथाकथित परमाण्विक कण प्रकाश की गति से मंडराते रहते हैं और हमें वस्तुओं के ठोस होने की प्रतीति होती है.
बड़े और जटिल परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों में आपसी भिडंत होती रहती है (क्योंकि वे एक दूसरे को परे धकेलते हैं, नाभिक की ओर आकर्षित होते हैं, और प्रोटॉनों के साथ एक ही स्पेस में नहीं रह सकते) जिसके कारण वे एक कक्षा जैसी दिखनेवाली संरचना में पंक्तिबद्ध हो जाते हैं. बड़े परमाणुओं में ही बहुत अधिक प्रोटॉनों के एक साथ मिलकर बड़ा नाभिक बना लेने के पर एक शक्तिशाली बल (जिसे हम प्रबल नाभिकीय शक्ति (strong nuclear force) कहते हैं) उन प्रोटॉनों को एक साथ चिपकाए रखती है. यह जानना रोचक है कि प्रोटॉन भी पॉज़िटिव चार्ज वाले होने के कारण एक दूसरे को परे धकेलते हैं लेकिन न्यूट्रॉन उनके बीच में इस प्रकार से अटक जाते हैं कि प्रबल नाभिकीय शक्ति उन सभी को एक ही चार्ज वाला होने के बाद भी बिखरने नहीं देती.
यह प्रबल नाभिकीय शक्ति 92 प्राकृतिक तत्वों को ब्रह्मांड में बनाए रखती है और 92 से अधिक होते ही यह शक्ति क्षीण होने लगती है और तालिका में 92 से अधिक प्रोटॉन वाले तत्व अत्यधिक अस्थाई होकर अन्य छोटे तत्वों में बदल जाते हैं. तत्वों के रासायनिक गुणों के अलग-अलग होने के पीछे भी इसी नाभिकीय शक्ति का हाथ होता है. (featured image)