ज़िंदगी सिर्फ़ विलपॉवर से नहीं बदलती. कनेक्ट करने से बदलती है.

और किसी एडिक्शन से मुक्ति कनेक्शन से मिलती है.

एडिक्शन का विलपॉवर से क्या संबंध है ये मैं थोड़ी देर में बताऊंगा.

पिछले सप्ताह मैंने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर ज़िंदगी का अब तक का सबसे मुश्किल वर्कआउट किया. एक बेहतरीन ट्रेनर ने हमें इसमें लगाए रखा और हम दोनों (मैं और मेरा दोस्त) एक-दूसरे को और अधिक करने के लिए मोटीवेट कर रहे थे.

उस दिन तो जैसे मेरे पैरों में आग-सी लग गई थी. पैरों पर चलकर जिम से बाहर आते भी नहीं बन रहा था. शुरुआती तेज दर्द लगभग आधा घंटे तक रहा, फिर कई घंटों तक मन में अजीब सी खुशी और प्रेरणा जगी रही.

वापसी में दोस्त के साथ उसके घर तक जाते वक्त उसने मुझसे कहा, “मैं ऐसा काम ज़िंदगी में अकेले कभी नहीं कर सकता था.”

विलपॉवर के साथ समस्या क्या है?

जब आप विलपॉवर या संकल्प शक्ति के बारे में बातें करते हैं तो आप खुद के बारे में सोचते हैं या किसी के साथ मिलकर कुछ करने के बारे में सोचते हैं?

दरअसल विलपॉवर अकेले लड़ी जानेवाली लड़ाई है.

विलपॉवर का संबंध व्यक्ति-विशेष से होता है, समूह से नहीं.

विलपॉवर हमें अकेले ही खुद के दम पर कार्य करने को उद्यत करती है. विलपॉवर मौन रहकर युद्ध को जीतना है. यह वल्नेरेबिलिटी के विपरीत है. यह संबंध जोड़ने की अनिवार्यता पर निर्भर नहीं होती.

एडिक्शन के एक प्रसिद्ध एक्सपर्ट अक्सर कहते हैं, “जिस व्यक्ति के भीतर जितने रहस्य होते हैं वह उतना ही रुग्ण होता है.” इसे हम आगे के वाक्यों में समझेंगे.

अपनी किताब में एक प्रसिद्ध डॉक्टर ने यह बताया है कि गंभीर सदमा पहुंचानेवाले अनुभव किसी व्यक्ति के विकास को फ़्रीज़ कर देते हैं या रोक देते हैं. किसी सदमे से गुज़रनेवाले व्यक्ति अपने दर्द को अपने तक सीमित रखते हैं. वे इसे किसी से साझा नहीं करते. वे किसी को बताते नहीं है कि उनके भीतर क्या चल रहा है.

इसके परिणामस्वरूप उनका दर्द दब-छुप जाता है लेकिन खत्म नहीं होता. इससे यह सिद्ध होता है कि असल सदमा वह घटना नहीं है जो आपके साथ हुई बल्कि वह है जो आपके भीतर घट रही है.

और सदमा हमेशा ही किसी कठोर अनुभव से उत्पन्न नहीं होता. यह उन कठोर अनुभवों, दर्द और कन्प्यूज़न को अपने भीतर बनाए रखने से उपजता है. यह भीतर-ही-भीतर एक खामोश लड़ाई लड़ते रहने से उत्पन्न होता है. यह सब कुछ अकेले ही झेलने की इच्छा से उपजता है.

बहुत से लोग यह मानते हैं कि एडिक्शन पर विलपॉवर से जीत पाई जा सकती है लेकिन यह बात सच से कोसों दूर है.

विलपॉवर बहुत निजी चीज है. किसी एडिक्शन से हम अपने दम पर आसानी से छुटकारा नहीं पा सकते. एडिक्शन से उबरने का एकमात्र उपाय खुद को लोगों से जोड़ना है.

एडिक्शन और समस्त मानवीय व्यवहारों का संबंध प्रसंगों से होता है.

वर्तमान में मनुष्य का व्यवहार पूरी तरह से इंडीवीजुएलिस्टिक होता जा रहा है. हम अपने वातावरण के प्रभाव को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और निजी गुणों जैसे विलपॉवर, मानसिकता, धैर्य, साहस आदि को सफलता के आवश्यक तत्व मानने लगते हैं. इंडीवीजुआलिटी एक भ्रम है जो कि सारे दुःखों का मूल है.

अपने में परिवर्तन लाने की कामना रखनेवाले अधिकांश व्यक्तियों को सफलता नहीं मिलने का कारण यह है कि वे सब कुछ अकेले ही करना चाहते हैं. उनके भीतर चलते शांत युद्ध और कठोर विलपॉवर उनके दर्द को और गहरे दबा देती है.

किसी भी व्यक्ति में एक तरह का व्यक्तित्व नहीं होता. हम सबके भीतर अलग-अलग तरह के व्यक्तित्व घुलते-मिलते रहते हैं.

न्यूरोसाइंटिस्ट्स का यह कहना है कि हम सब में कई तरह के व्यक्तित्व होते हैं. इन व्यक्तित्वों में से कुछ तो अच्छे से विकसित होते हैं जबकि कुछ अल्प विकसित होते हैं.

कभी हमारे साथ कुछ घटता है और हमारा वह व्यक्तित्व उभर आता है जो उस समय प्रबल था जब हम 3-4 वर्ष के छोटे बच्चे थे. हम समझ नहीं पाते कि हम इस परिस्तिथि का सामना कैसे करें. ऐसे में हम हर वह काम करने लगते हैं जो हमें दर्द और कन्फ्यूज़न की अवहेलना करने पर विवश करने लगता है. यही कारण है कि एडिक्शन भी हमारे लिए किसी समस्या का समाधान बन जाता है. यह दुःख और दर्द का अस्थाई और अस्वास्थ्यप्रद ही सही लेकिन समाधान बन जाता है.

जब कोई व्यक्ति अपनी वैयक्तिकता और दर्द में खो जाता है तो ऐसे व्यक्ति के लिए मनोवैज्ञानिक “फ़्रोज़न पर्सनालिटी” शब्द का उपयोग करते हैं. व्यक्तित्व के संबंध में लोगों में बहुत सी भ्रांतियां और गलतफ़हमियां होती हैं. हम सभी यह मानते हैं कि हमारी पर्सनालिटी नियत होती है- कि यह हमारे जन्म से ही हमसे जुड़ी रहती है और मृत्यु तक हमारे साथ रहती है.

हम अपनी पर्सनालिटी पर बहुत ज़ोर देते हैं. हम यह मानते हैं कि हमारी पर्सनालिटी ही “वास्तविक हम” हैं. यह सही नहीं है.

हमारी पर्सनालिटी हमारे वातावरण के प्रति अनुकूलन से विकसित हेती है. जिन भावनाओं का हम दमन करते हैं वे भी हमारी पर्सनालिटी में रूपांतरित होती रहती हैं.

जब हम दूसरों से जुड़कर उनके साथ सीखते हैं और उनसे मदद लेते हैं तब हमारे दबे हुए दर्द कम होने लगते हैं, हमारी पर्सनालिटी बदलने लगती है. हमें फिर बैसाखियों का सहारा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती. हम जीवन के उजले और गहरे पक्षों का अनुभव करने लगते हैं.

इसके भी आगे जब हम दूसरों से कनेक्ट करते हैं तब हम उन्नति और अवसरों के लिए खुद को तैयार करने लगते हैं. अपने अकेलेपन के साथ यह सब हमें उपलब्ध होने की कोई संभावना नहीं होती.

दूसरों से कनेक्ट करना उन्नति के पथ पर चलना है.

कनेक्शन करने से एडिक्शन से निज़ात पाने में मदद मिलती है.

कनेक्शन करने से हम अकेले चलने की बजाए अधिक दूरी तक की यात्रा कर सकते हैं.

हार्वर्ड यूनीवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट कीगन कहते हैं कि हमारी चेतना के विकास से संबंधित एक 3-स्टेप मॉडल होता है.

सामाजिक – इस प्रकार का व्यक्ति दूसरों पर बहुत अधिक निर्भर होता है. वह जो कुछ भी करता है वह भय और चिंता के अधीन होकर करता है. वह वही काम करता है जो उसे लगता है कि दूसरे लोग उससे करने की अपेक्षा करते हैं.

प्राधिकार – यह व्यक्ति स्वतंत्र होता है. उसका अपना लक्ष्य, विश्वास और एजेंडा होता है. वह किसी रिलेशनशिप में तब तक रहता है जब तक उसे रिलेशनसिप से कुछ प्राप्त होता रहता है. वह दूसरों पर निर्भर रहने वाले व्यक्तियों की तुलना में बहुत-बहुत आगे जा सकता है. पाश्चात्य संस्कृतियों में इस प्रकार के लोगों की अधिकता होती है क्योंकि पश्चिम में इंडीवीजुआलिटी को बहुत महत्व दिया जाता है. पश्चिम में लोग एक दूसरे से घुलने-मिलने और सहभागिता करने को बहुत पसंद नहीं करते. इसके विपरीत वे खुद को एक इंडीवीजुअल के तौर पर स्थापित करने और “सुपर-हीरो” की तरह सब कुछ खुद के दम पर करने में यकीन रखते हैं. एक समाज के तौर पर पश्चिम में लोग बहुत एडिक्टेड हो गए हैं और दूसरों से गहराई तक जुड़ने की योग्यता और आत्मविश्वास खो बैठे हैं.

रूपांतर – यह चेतनता के विकास का उच्चतम स्तर है. इसके लक्षण पूर्व की संस्कृतियों में प्रमुखता से देखे जा सकते हैं जहां लोग एक-दूसरे पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं. वे घुट-घुट कर नहीं जीते, वे चुपचाप कोई युद्ध नहीं लड़ते. वे विलपॉवर के दम पर अपने जीवन को बदलने की बातें नहीं करते. वे किसी भी प्रसंग और जुड़ाव के महत्व को पहचानते हैं. उनके अपने लक्ष्य, अपने विचार होते हैं, लेकिन वे अपने निजी मेंटल फ़्रेम के परे भी देख सकते हैं और दूसरों के मेंटल फ़्रेमवर्क से तुलना कर सकते हैं. ऐसा करने से उन्हें अस्वास्थ्यकर और प्रतिबंधक विश्वासों की सतत छंटनी करते रहने की सुविधा मिलती है. इसके अतिरिक्त इस स्तर पर व्यक्ति वल्नेरेबिलिटी और सहभागिता को अंगीकर कर लेता है जिससे वह दूसरों के साथ मिलकर इस प्रकार से कार्य करता है कि सबके द्वारा किए गए कार्यों का योग सबके द्वारा अलग-अलग किए गए कार्यों के योग से बहुत अधिक और बेहतर हो जाता है. कीगन कहते हैं कि चेतनता के विकास का केवल यही स्तर आस्था का संवाहक होता है क्योंकि कार्य करने वाला व्यक्ति सभी पर भरोसा करता है और सबसे अच्छे परिणामों की आशा करता है.

निष्कर्ष

आपकी पर्सनालिटी एक तथा नियत नहीं होती. इसके एक से अधिक रूप हो सकते हैं. जब आप अधिक होलिस्टिक तरीके से अपना जीवन जीते हैं और विलपॉवर के स्थान पर दूसरों से जुड़कर प्रगति करने की इच्छा रखते हैं तब आप अपने पुराने दुःखों से उबरने के लिए शक्ति जुटाते हैं और इस तरह आप अपने लिए बेहतर भविष्य की रचना करते हैं.

स्टीवन कोवी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 7 Habits of Highly Effective People में लिखा है, “साइनर्जी तब घटित होती है जब एक और एक जुड़कर दस या सौ, यहां तक कि हजार भी हो सकते हैं! सबसे अच्छे परिणाम तब मिलते हैं जब दो या अधिक मनुष्य अपने पूर्वग्रहों के परे जाकर एक दूसरे से कनेक्ट करते हैं और मिलकर चुनौतियों का सामना करते हैं.”

क्या आप भी कोई युद्ध भीतर-ही-भीतर अकेले लड़ रहे हैं?

क्या आप अभी भी अपनी विलपॉवर के बलबूते परिवर्तन की इच्छा करते हैं?

या आप प्रसंग और कनेक्शन की संकल्पना को स्वीकारने के लिए तैयार हैं?

यदि आप तैयार हैं तो आपको अन्य व्यक्तियों से भरपूर मदद मिलेगी. वे आपको उतनी दूर तक ले जाएंगे जहां आप अकेले रहकर नहीं जा सकते थे. हेलेन केलर ने कहा था, “अकेले हम बहुत कम कर पा रहे थे; एक-दूसरे का साथ पाकर हमने बहुत कुछ उपलब्ध कर लिया.” इसी तरह जिम रोह्न ने कहा था कि, “किसी आसान भीड़ का हिस्सा मत बनो; वहां तुम बढ़ नहीं पाओगो. वहां जाओ जहां परफॉर्म करने के लिए उम्मीदें और मांग बहुत बहुत अधिक हैं.”

साभार बेंजामिन पी. हार्डी. Photo by Sweet Ice Cream Photography on Unsplash

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