बदलती हुई दुनिया के साथ हमें दिनों-दिन और अधिक क्रिएटिव, और अधिक प्रोडक्टिव बनने का प्रयास करना पड़ता है. इसका कारण यह है कि जीवन के हर पक्ष में प्रतिस्पर्धा घनघोर हो चली है. यदि हम नए विचारों का सृजन और कामकाज के तौरतरीकों में इनोवेशन नहीं लाएंगे तो पीछे रह जाएंगे.
यही कारण है कि हमारी मैंटल एनर्जी या मानसिक ऊर्जा के संवर्धन का विचार अब ज़ोर पकड़ने लगा है. प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के लिए मेंटल एनर्जी अब नया मानक या स्टैंडर्ड बन गई है.
प्रोडक्टिविटी क्या है? प्रोडक्टिविटी या उत्पादकता का संबंध केवल ईकोनॉमी या कृषि जगत से ही नहीं है. यह हर प्रकार की वस्तु को कम-से-कम संसाधनों का प्रयोग करते हुए उत्पन्न करने की बात करती है. अधिक प्रोडक्टिविटी का अर्थ है हमें मिलनेवाली चीज की क्वांटिटी और क्वालिटी दोनों में ही वृद्धि होना. यदि आप एक प्रोडक्टिव लेखक हैं तो कम समय और कम उधेड़बुन के एक अच्छा लेख लिख लेते हैं. यदि आप एक प्रोडक्टिव प्रोग्रामर हैं तो किसी भी कोड को लिखने या जांचने में आप सबसे आगे रहते हैं.
हजारों वर्ष पहले विकसित होने के दौरान मनुष्य ने अपने प्रयासों से उपलब्ध संसाधनों का दोहन करना शुरु कर दिया. हर कालखंड में मानव जाति में हमेशा कुछ-एक व्यक्ति ही ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी मानसिक क्षमताओं का उपयोग करके ऐसे उपाय खोजे जिनसे काम करना आसान हो गया और मनुष्यों ने सामाजिक और वैज्ञानिक उन्नति की.
सबसे पहला चैलेंज चीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखने से संबंधित था: मधुमक्खी के छत्ते से शहद कैसे निकालें? बांस के आगे पत्थर की नोक बांधकर भाला कैसे बनाएं? वन्य जीवों से सुरक्षा के लिए ईंट-पत्थरों की दीवार कैसे बनाएं? गोल पत्थर को पहिए की तरह कैसे उपयोग में लाया जाए?
फिर लोगों को दलबद्ध करके काम करने की शुरुआत हुई: हिंसक हुए बिना हम लोगों के साथ मिलकर काम कैसे करें? विशाल पिरामिड और मंदिर कैसे बनाए जाएं?
फिर उन कार्यों पर ध्यान दिया गया जिन्हें बार-बार करना पड़ता है: किसी बड़ी मशीन को बनाने के लिए कारीगरों के बीच काम का बंटवारा किस प्रकार किया जाए? श्रमिक एक दिन में अधिक-से-अधिक अगरबत्तियां या लिफाफे कैसे बना पाएं?
फिर समय के प्रबंधन की बात होने लगी: मुझे बॉस के लिए प्रेजेंटेशन बनाना है, अपना टैक्स रिटर्न फाइल करना है और बच्चों के प्रोजेक्ट के लिए सामग्री भी नेट से खोजनी है. मैं एक ही दिन में यह सब कैसे करुं?
फिर मामला प्राथमिकताओं तक आ गया: आज शेयर बाज़ार गिर गया और नियम यह कहता है मुझे भयभीत हो जाना चाहिए लेकिन मैं किस तरह घबड़ाए बिनाअपनी लॉंग-टर्म फ़ाइनेंशियल प्लानिंग पर फ़ोकस करुं?
फिर हम मेंटल क्लैरिटी की बात करने लगे: मैं एक ई-मेल को पढ़ नहीं पाता इसी बीच दो नई मेल आ जाती हैं. यह सब मुझे चकरा देता है. मैं इसपर कैसे कंट्रोल करुं?
हजारों-लाखों वर्ष पूर्व हम अन्य वानर-कपि जंतु समुदाय के साथ विकसित हो रहे थे. अन्य जीवों को ऊपर बताई गई चीजों की फ़िक्र नहीं थी लेकिन हमने हर बात पर, हर समस्या पर सोचविचार किया और एक प्रॉब्लम सॉल्व कर लेने पर दूसरी प्रॉब्लम की ओर बढ़ चले.
अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित कर लेने के बाद, अपने कैलेंडर में निशान लगा लेने के बाद, अपने जीवन और कार्यस्थल को ऑर्गेनाइज़ कर देने के बाद हमारे पास करने के लिए क्या बचता है?
सोचिए कि एक मिनट के भीतर आप क्या कर सकते हैं. आप किसी मेल या मैसेज का झटपट उत्तर दे सकते हैं. एक ट्वीट कर सकते हैं. या कोई ऐसा विचार उत्पन्न कर सकते हैं जो आपके जीवन और बिजनेस को पूरी तरह से बदल देने की क्षमता रखता हो.
ऊपर वाले वाक्य में बताए गए कार्यों को नहीं कर लेने और कर लेने के बीच शून्य से एक का अंतर है. शून्य अर्थात कुछ नहीं, और एक अर्थात एक पॉज़िटिव नंबर. यह बहुत बड़ा अंतर है.
उस एक शानदार विचार को अपने मस्तिष्क में लाने के लिए आपको क्या करना होगा? सबसे पहले तो हमारा पेट भरा होना चाहिए और हमारे जीवन पर कोई संकट नहीं होना चाहिए. फिर हमारी प्राथमिकताएं स्पष्ट होनी चाहिए और मेंटल क्लेरिटी भी होनी ताहिए कि हमें वास्तव में करना क्या है.
ऊपर बताई गई सारी शर्तें पूरी कर लेने के बाद हमें सिर्फ एक एक ही चीज चाहिए जिसे मैं मेंटल एनर्जी कहता हूं. मेंटल एनर्जी कभी-कभी हमारे मन के बिजली की तेजी से अनूठा विचार उत्पन्न कर देती है. कभी-कभी यह दिमाग के किसी कोने में निष्क्रिय पड़े विचार को क्रियान्वित करने के लिए सहयोगी विचारों का सृजन कर देती है.
हमारे मस्तिष्क में कोई क्रिएटिव विचार कभी भी जाग सकता है लेकिन उसे ग्रो करने के लिए तैयारी करनी पड़ती है. उस तैयारी को करने के लिए हमें मेंटल एनर्जी की ज़रूरत होती है. हर व्यक्ति के मस्तिष्क की क्षमता एक-समान होती है. सभी अपने मस्तिष्क का 100% उपयोग करते हैं लेकिन सबके सोचविचार करने की कैपेसिटी अलग-अलग होती है. यह कैपेसिटी उनके ज्ञान, अध्ययन और विचारशीलता पर निर्भर करती है. इस कैपेसिटी का सीधा संबंध हमारी मेंटल एनर्जी से है. हमारी क्रिएटिविटी और प्रोडक्टिविटी हर समय एक समान नहीं रहती. इसमें ज्वार-भाटे की तरह उतार-चढ़ाव आता रहता है. यदि हम अपनी मेंटल एनर्जी को कायम रख सकें तो इस उतार-चढ़ाव को नियंत्रित किया जा सकता है.
सूचना के युग में हमारी मेंटल एनर्जी हमारा सबसे बड़ा संसाधन है. यदि हम इसका दोहन कर सकेंगे तो अपने समूह में सबसे आगे रहेंगे. जब आपके सहकर्मी मधुमक्खियों के हमले से बचने की कोशिश कर रहे होंगे, अपने वीकली प्लानर को भर रहे होंगे, या ई-मेल्स का उत्तर देने में व्यस्त होंगे तब तक आप अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट को प्रिंट कर चुके होंगे और दूसरे ज़रूरी काम की ओर बढ़ चुके होंगे.
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