आज मैंने कुछ प्रोडक्टिव नहीं किया. कोई बात नहीं.

जब आपको केवल ब्लॉग पर पोस्ट पब्लिश करने के लिए ही पोस्ट लिखनी हो तो यह बहुत ही बोझिल और अरूचिकर काम बन जाता है. आप दिन भर उस एक विचार की खोज करते हैं जिसे थोड़ा बढ़ाकर आप एक अच्छी प्रेरक पोस्ट लिख सकते हैं. लेकिन ऐसा कोई विचार रोज़-रोज़ नहीं मिलता. यदि विचार मिल भी जाए तो समय नहीं मिलता. केवल विचार और पर्याप्त समय का मिलना ही सब कुछ नहीं है. लिखते वक्त आपको एक-एक शब्द पर ध्यान देना पड़ता है. यदि आप अपनी मातृभाषा में नहीं लिखते या आप मेरी तरह एक अनुवादक हैं तो आपका काम कुछ और बढ़ जाता है. आपको कई तरह के राइटिंग टूल्स जैसे डिक्शनरी वगैरह की मदद लेनी पड़ती है क्योंकि अनुवादक का दायित्व केवल शब्दशः अनुवाद कर देना भर नहीं होता. एक अनुवादक के तौर पर मैं कई बार सुधार या संवर्धन इस सीमा तक कर देता हूं कि अनूदित पोस्ट पूरी तरह से नई और मूल से असंबद्ध दिखने लगती है.

ब्लॉग पर पोस्ट लिखना कोई कंक्रीट वस्तु बनाने जैसा काम है. कई बार आप कुछ बना रहे होते हैं लेकिन आपको यह हमेशा लगता रहता है कि कहीं कुछ कमी है. आप अपने काम को लेकर मोटीवेटेड फ़ील नहीं करते. आपको अपने ऊपर खीझ और झुंझलाहट होने लगती है कि आपने ऐसा काम नहीं किया जिसकी लोग सराहना करें. ऐसे में आप कभी-कभी अपने लिखे हुए को सिरे से डिलीट कर देते हैं या उसे कम्प्यूटर की किसी ऐसी फ़ाइल में कैद कर देते हैं जहां से वह दोबारा नहीं निकलता.

असल बात तो यह है कि आप अपने ब्लॉग के समर्पित पाठकों या फौलेवर्स के लिए शानदार पोस्ट लिखना चाहते हैं क्योंकि यही करने से आप खुद को ब्लॉगिंग के क्षेत्र में स्थापित रख सकते हैं. यदि आप अपने ब्लॉग से कुछ कमाई करते हैं तो लगातार अच्छी सामग्री प्रस्तुत करते रहने का दबाव और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा घनघोर हो चली है. यदि कुछ दिन आप पोस्ट न करें तो व्यूज़ और कमाई का ग्राफ़ नीचे जाने लगता है.

यह मेरे साथ भी अक्सर होता रहता है. मैंने हर दिन एक पोस्ट लिखने का लक्ष्य नहीं बनाया है. वास्तव में तो मैं एक सप्ताह में एक पोस्ट के औसत से भी बहुत संतुष्ट हूं. लेकिन मन में पोस्ट लिखने के लिए अच्छा आइडिया आने वाली समस्या मेरे साथ भी है. फिलहाल तो मैं कोई आइडिया न होने और पर्याप्त समय नहीं मिलने की समस्याओं से घिरा हुआ हूं. मुझे 2006 से 2010 तक के ब्लॉगिंग के वे शुरुआती साल बहुत याद आते हैं जब मैं धुंआधार लिखता था. एक-दूसरे से बहुत अच्छे से जुड़ी ब्लॉगर कम्युनिटी भी उन दिनों बहुत मजबूत थी, जो सोशल मीडिया की आंधी में तितर-बितर हो गई.

आज मैंने लिखने के लिए अपने एक पुराने ड्राफ़्ट पर काम करना शुरु किया. मैं बिल्कुल इसी बारे में लिखना चाहता था कि किसी दिन नहीं लिख पाने की स्थिति में आपको अफ़सोस नहीं करना चाहिए. यदि आप वाकई बहुत धीर-गंभीर प्रकृति के लेखक या ब्लॉग हैं जो अपने लेखन से लोगों को इंप्रेस करना नहीं बल्कि उनकी मदद करना चाहता है तो आपको कभी-कभी लिख पाने में सक्षम नहीं होने पर अपने मन में किसी भी तरह का दबाव या तनाव लाने की ज़रूरत नहीं है.

यह सबके साथ होता है. हर व्यक्ति हर दिन एक समान ऊर्जा से काम नहीं कर सकता. किसी दिन तो सूरज खुशनुमा चमकता है तो किसी दिन मायूस कर देने वाले बादल छा जाते हैं. जब आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुत करते हैं तो लोग उसका नोटिस लेते हैं. आपकी पोस्टें शेयर की जाती हैं, उनपर कमेंट्स आते हैं. इससे बहुत खुशी मिलती है. लेकिन आज मैं उम्मीद के मुताबिक काम नहीं कर पाया तो मुझे निराश नहीं होना चाहिए. यह किसी तरह का सेटबेक नहीं है. ऐसा किसी-किसी दिन होता है. मैं किसी तरह के राइटर्स-ब्लॉक का सामना नहीं कर रहा हूं. आज मैंने कुछ प्रोडक्टिव नहीं किया. कोई बात नहीं. कल ऐसा नहीं होगा.

इन सारी बातों में सकारात्मक यह है कि जब आप किसी एक खास पॉइंट से नीचे जाने लगते हैं तो ऊपर आने की, अपनी गति या लय को दोबारा पकड़ लेने की छटपटाहट होने लगती है. जब यह अपनी हद पार कर लेती है तब आप खुद को प्रोडक्टिविटी के शिखर पर पाते हैं. ऐसे में ही किसी-किसी दिन आपके भीतर मोटीवेशन इतना अधिक हो जाता है कि आप सुध-बुध खोकर अपने काम में डूब जाते हैं. उस दिन आप अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाते हैं.

इसीलिए यदि आप अपनी बनाई योजनाओं के अनुसार काम नहीं कर पा रहे हों या आपका हौसला कुछ पस्त हो रहा हो तो खुद से यह सवाल पूछें, “वह व्यक्ति कौन है जो हर समय अपनी रचनात्मकता के शिखर पर बैठा रहता है और वहां से कभी नहीं उतरता?”

ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है.

Photo by Jesus Kiteque on Unsplash

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