घास में पोषक तत्वों की मात्रा न-के-बराबर है. इसे पचाना भी बहुत कठिन है. यदि हम घास खाएंगे तो शरीर के वजन को औसत रखने के लिए हमें बहुत अधिक घास खानी पड़ेगी. लेकिन असली बात तो यह है कि हमारे लिए घास एकमात्र उपलब्ध आहार नहीं है. बहुत से आहार कम मात्रा में ही हमें अधिक ऊर्जा दे सकते हैं क्योंकि उनमें पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है.
यदि पृथ्वी पर सभी प्राणी घास खाने लगेंगे तो कहीं घास का एक तिनका भी नहीं बचेगा.
हमें ऐसा लगता है कि घास बहुत अधिक उगती है लेकिन सच तो यह है कि यह अपने जीवनचक्र में केवल कुछ समय के लिए ही खाने लायक होती है. यही कारण है कि घास खाने वाले प्राणी एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए प्रवास करते रहते हैं.
मनुष्यों का विकास पेड़ों पर रहनेवाले प्राइमेट कपियों से हुआ है. घास पेड़ों पर नहीं उगती. पेड़ों पर पत्ते और फल उगते हैं. पत्तों में पोषण तत्व कम होता है लेकिन फलों से भरपूर पोषण मिलता है. पेड़-पौधे फल इसलिए उगाते हैं ताकि अन्य जीव-जंतु उन्हें खाएं और उनके बीजों को यहां-वहां फैलाएं. बंदरों और कपियों ने यह काम बखूबी किया. कपियों के विकसित होने के दौरान पर्यावरण में बदलाव आते गए. फलों का मिलना कठिन होता गया. ऐसे में कपियों ने भोजन के अन्य स्रोत खोजना शुरु कर दिया. वे बीज, कंद-मूल, छोटे जंतु, और शाक-भाजी खाने लगे – उन्होंने हर वह वस्तु अपने आहार में शामिल कर ली जो उन्हें आसानी से उपलब्ध थी और पर्याप्त पोषण देती थी. कपियों ने छोटे पशु भी खाने शुरु कर दिए क्योंकि मांस में प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक होती है और इसकी कम खुराक से ही काम चल जाता है.
मनुष्यों के पूर्वज जब सीधे खड़े होकर चलने लगे तब सवाना के घास के मैदानों में बस गए. उस समय वे शिकार करने लगेऔर उनके भोजन में मांस प्रमुख हो गया. सूखे मौसम में घास उपलब्ध नहीं होती थी लेकिन भूमि के अंदर कंद-मूल हमेशा मिल जाते थे (आज भी अफ़्रीका और भारत के बहुत से आदिवासी कंद-मूल खोजकर खाते हैं). हिरण, गाय, बकरे का शिकार करना बहुत आसान हो गया था क्योंकि मनुष्य औजारों का प्रयोग करने लगे थे. वे फल और बीज भी अल्प मात्रा में खाते थे. कुछ हजार वर्ष पूर्व मनुष्यों ने फसलें उगाना सीख लिया और शिकार पर उनकी निर्भरता कम हो गई. फसलें उगाने की प्रवृत्ति ने उन्हें चैन से एक ही स्थान पर रहने के लिए विवश कर दिया और इस प्रकार हमारी सभ्यता-संस्कृति की शुरुआत हुई.
इस प्रकार हमारे विकासवादी इतिहास के परिप्रेक्ष्य में घास नहीं खाने के लिए हमारे पास पर्याप्त कारण हैं. (featured image)