सबसे दुर्भाग्यशाली वैज्ञानिक – थॉमस मिगेली जूनियर

Thomas Midgley Jr

विज्ञान के इतिहास में सबसे दुर्भाग्यशाली वैज्ञानिक होने की पदवी थॉमस मिगेली जूनियर (Thomas Midgley Jr, 1889 – 1944) को मिली है. थॉमस ने अपने खोजों के दौरान ऐसी बड़ी गलतियां कीं जिनका दुष्परिणाम हम उसकी मृत्यु के अनेक दशक बाद भी उठा रहे हैं. यह क्रूर विसंगति का अनोखा उदाहरण ही है कि थॉमस की मृत्यु के पीछे भी उसके एक अविष्कार का ही हाथ था.

थॉमस बहुत अच्छा वैज्ञानिक और भला व्यक्ति था. वह सबकी सहायता करना चाहता था लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. उसे इतिहास का सबसे खराब वैज्ञानिक कहा जाता है जो कि बहुत बुरी उपाधि है लेकिन इसके कारण बहुत बड़े हैं.

थॉमस ने जनरल मोटर्स कार कंपनी में काम करने के दौरान पेट्रोल के साथ टेट्राइथाइल लेड (tetraethyl lead, TEL) मिलाने से संबंधित प्रयोग किए और इसके उपयोग को प्रोत्साहित किया. मोटर इंजन के बारे में जानने वालों को नॉकिंग (knocking) के बारे में पता होगा. गाड़ियों में इंटरनल इंजन के भीतर पेट्रोल को ठीक से जलाने के लिए उसमें एंटी-नॉकिंग एजेंट के रूप में बाहरी रसायन मिलाया जाता है. ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री बहुत लंबे समय से नॉकिंग की समस्या का सामना कर रही थी. थॉमस ने देखा कि TEL के प्रयोग से यह समस्या सुलझ गई. थॉमस की खोज की चहुंओर सराहना हुई. लेकिन कुछ समय बाद यह पता चला कि पेट्रोल में मिलाया गया लेड (सीसा धातु) वायुमंडल को प्रदूषित कर रहा था और लोगों का स्वास्थ्य चौपट कर रहा था. जनरल मोटर कंपनी में काम करने वाले बहुत से कर्मचारियों की मौत लेड से होने वाली पॉइज़निंग से हो गई क्योंकि उन्होंने बहुत अधिक मात्रा में इसे सांस के माध्यम से लंबे समय तक लिया था.

थॉमस को लगा कि वह उसकी छोटी सी गलती थी. उसने अपना ध्यान दूसरे प्रोजेक्ट पर लगाया. इस बार उसे रेफ्रिजरेशन और एयर-कंडिशनिंग में उपयोग लाए जाने वाले अमोनिया और प्रोपेन का विकल्प खोजना था. अनेक प्रयोगों से थॉमस ने उस विकल्प की पहचान कर ली. वह नया रसायन था डाइक्लोरोडाइफ्लोरोमीथेन (dichlorodifluoromethane). इसे फ्रीऑन (FREON) या क्लोरोफ्लोरोकार्बन (chlorofluorocarbons) भी कहते हैं.

कुछ वर्षों में ही इस रसायन के अंधाधुंध इस्तेमाल ने ओज़ोन पर्त को नुकसान पहुंचाना शुरु कर दिया. ओज़ोन की पर्त हमें हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (ultraviolet light) से बचाती है. क्लोरोफ्लोरोकार्बन को CFC भी कहते हैं. इसका प्रयोग 1966 से ही बंद कर दिया गया है.

लेकिन थॉमस का बैडलक अभी खत्म नहीं हुआ था. उसने रसायनशास्त्र की प्रयोगशाला को अलविदा कह दिया और मैकेनिकल चीजों पर अपना ध्यान लगाया. वह पोलियो का शिकार था. खुद को सुबह पलंग से उठाने के लिए इसने एक चेन-पुली सिस्टम बनाया.

उसके सिस्टम में बड़ी खामियां थीं. एक दिन थॉमस की गरदन चेन में फंस गई. दम घुटने से उसकी मौत हो गई.

आज थॉमस के किस्से विज्ञान के विद्यार्थियों को यह बताने के लिए सुनाए जाते हैं कि अपनी किसी भी नई खोज से उत्साहित होकर उसे बाजार में नहीं उतार देना चाहिए. हर प्रोडक्ट को भली भांति जांच-परख कर ही व्यवहार में लाना चाहिए. यही कारण है कि बहुत सी नई खोजों, विशेषकर चिकित्सा और जीवन-विज्ञान के क्षेत्र में नई दवाओं और उपायों को कई वर्षों की टेस्टिंग और रिसर्च के बाद ही जनप्रयोग के लिए स्वीकृत किया जाता है. (featured image)

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