क्योंकि ब्रह्मांड वास्तव में बहुत-बहुत विशाल है. आप जितने बड़े स्थान की कल्पना कर सकते हैं यह उससे भी बहुत अधिक विशाल है. आप पृथ्वी से सबसे तेज गति से छोड़े जा सकनेवाले अंतरिक्ष यान पर बैठकर चलते जाइए, चलते जाइए और कई सौ वर्ष बाद भी आप सौरमंडल के बाहर नहीं जा पाएंगे.
बहुत से तारे हमारे सूर्य की तुलना में एक-दूसरे के बहुत पास-पास होते हैं, लेकिन आकाशगंगा में हमारा इस तरह से अलग-थलग होना भी कोई अनूठी बात नहीं है. अंतरिक्ष के स्तर पर 4 प्रकाश वर्ष की दूरी को तो पड़ोस माना जाता है. यदि तारे इससे भी निकट आ जाएंगे तो एक दूसरे के गुरुत्व में आकर एक-दूसरे की परिक्रमा करने लगेंगे. इससे ग्रहीय तंत्र खतरे में पड़ जाएगा.
सूर्य का अन्य तारों से दूर होना हमारे लिए सौभाग्य की बात है. हमसे निकटतम दो तारे 4 प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं. लेकिन ये दोनों तारे बाइनरी तारा युग्म हैं. बाद में अच्छी दूरबीनों और इन तारों की गतियों के अध्ययन से हमें पता चला कि ये वास्तव में दो नहीं बल्कि तीन तारों के दो समूह हैं.
एल्फ़ा सैंटोरी (Alpha Centauri) समूह में तीन तारे A, B और प्रोक्सिमा (Proxima) हैं. बीटा सैंटोरी (Beta Centauri) समूह में तारे A, B और C हैं.
तारों का निर्माण कई प्रकाश वर्ष लंबे-चौड़े धूल और गैस के विशाल बादलों से होता है. जब गुरुत्व के कारण यह बादल अपने ही भीतर गिरने लगता है तो कोणीय संवेग (angular momentum) के कारण ये घूर्णन करने लगता है. जब एक तारा बनता है तो वह बहुत तेजी से घूर्णन करता है, लेकिन गति अधिक होने के कारण पदार्थ के छिटकने से आमतौर पर 2 या 3 तारे बन जाते हैं जो एक-दूसरे की परिक्रमा करने लगते हैं.
आकाशगंगा में हमें यह घटना हर जगह होती दिखती है. हमने अभी तक जितने भी तारा तंत्र देखे हैं उनमें से 80% में 2 या उससे अधिक तारे दिखते हैं. दो तारों का बाइनरी तारा तंत्र दिखना तो बहुत आम है.
अधिकांश वैज्ञानिकों का यह मानना है कि हमारा सूर्य भी प्रारंभ में 3 या अधिक तारों के समूह का सदस्य था. लेकिन एक-दूसरे के इर्द-गिर्द जटिल और अनियमित गतियों के कारण कुछ तारे दूर-दूर होते गए और स्वतंत्र हो गए. इस प्रकार इस सिद्धांत के अनुसार हमारा सूर्य जब नया-नया तारा बना था तभी एक झुंड से निकलकर आत्म-निर्भर हो गया. लेकिन यह बताने का फिलहाल कोई तरीका नहीं है कि ऐसा कब और कैसे हुआ होगा और सूर्य के बचपन के संगी-साथी आज कहां हैं क्योंकि तब से सूर्य और उसके जुड़वां भाई तारे आकाशगंगा के केंद्र की 15 से 20 बार अलग-अलग गतियों से परिक्रमा लगा चुके हैं और तितर-बितर हो चुके हैं. हो सकता है हमें किसी दिन किसी तारे के खास जन्मचिन्ह या फिंगरप्रिंट (तत्वों के आधार पर) मिल जाएं और हम सूर्य के जुड़वां भाई का पता लगा लें जो कॉस्मिक कुंभ के मेले में बिछड़ गए थे.
सूर्य के अन्य तारों से दूर होने के कारण सौरमंडल में स्थिरता बनी रही है. यदि ऐसा नहीं होता तो यहां जीवन उत्पन्न होना असंभव था. यदि सूर्य के बहुत अधिक निकट कोई दूसरा तारा होता तो पृथ्वी उसके गुरुत्व के कारण जीवनदायी “गोल्डीलॉक क्षेत्र” से बाहर निकल जाती. तब ग्रहों की वह पोजीशनिंग भी नहीं होती जो हम आज देखते हैं क्योंकि ग्रहों का निर्माण करने वाली मलबे, धूल और गैस की डिस्क तारों के गुरुत्व के कारण प्रभावित होती रहती. ऐसी स्थितियों में जटिल जीवन की उत्पत्ति या उसका विकास होना बहुत कठिन हो जाता.
तो आप खुद को खुशनसीब मानिये कि बाकी तारे हमसे बहुत दूर-दूर हैं. (featured image, Artist’s impression of the double-star system GG Tauri-A)