कुत्तों की गुदा (anus) के दोनों तरफ़ दो बहुत छोटे छेद होते हैं जिन्हें गुदा ग्रंथि (anal glands) कहते हैं. इन ग्रंथियों से बहुत खास तरह की तेज गंध निकलती है जो हर कुत्ते के लिए अलग-अलग होती है. यह बहुत अच्छी बात है कि हम मनुष्यों को इस गंध का पता नहीं चलता लेकिन कुत्तों के सूंघने की शक्ति मनुष्यों से सैंकड़ों-हजारों गुना अधिक होने के कारण वे इसे बहुत अच्छे से पहचान लेते हैं. इन ग्रंथियों से निकलती गंध के कारण एक कुत्ते को दूसरे कुत्ते की शारीरिक और स्वभावगत विशेषताएं पता चल जाती हैं.
कुत्तों की कुछ प्रजातियों (जैसे अल्सेशियन) की घ्राणशक्ति (olfactory, सूंघने की शक्ति) मनुष्यों से एक लाख गुनी तक होती है. इनके थूथन के भीतर स्थित ऊतक (tissue) को फैलाने पर इसका आकार रूमाल जितना बड़ा हो सकता है और इसमें बीस करोड़ रिसेप्टर्स तक हो सकते हैं. इसके विपरीत मनुष्य की नाक के भीतर स्थित वैसे ही ऊतक का आकार डाकटिकट जितना होता है और उसमें केवल 50 लाख रिसेप्टर्स होते हैं.
कोई कुत्ता किसी दूसरे कुत्ते के पास जाकर उसकी पूंछ के नीचे सूंघता है, यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हम लोग किसी की बात सुनने के लिए उसके और करीब चले जाते हैं ताकि हम उसके बारे में और अधिक बेहतर जान सकें. प्राणी समुदाय में कुत्तों का यह व्यवहार रासायनिक संचार प्रक्रिया का एक उदाहरण है. इसे हम “रसायनों के माध्यम से होनेवाली बातचीत” कह सकते हैं. ऐसा करने पर एक कुत्ते को दूसरे कुत्ते के लिंग, प्रजननकाल, आहार, व्यवहार, और भावनात्मक दशा का पता चलता है. वे यह भी पता लगा सकते हैं कि दूसरा कुत्ता/कुतिया संतानोपत्ति में सक्षम है या नहीं और वह सैक्स करना चाहता/चाहती है या नहीं.
जब दो अजनबी कुत्ते पहली बार मिलते हैं तो वे एक-दूसरे के इर्द-गिर्द चक्कर काटते हैं ताकि एक-दूसरे की गंध ले सकें. पूंछ के नीचे सूंघने पर उन्हें यह गंध बहुत अच्छे से मिल जाती है. जिस प्रकार दो छोटे अजनबी बच्चे पार्क में एक-दूसरे को पहली बार देखते हैं तो सीधे-सीधे ज़रूरी सवाल करते हैं जैसे “तुम कौन हौ” “तुम कहां रहते हो?” उसी तरह से दो कुत्ते भी उनकी गंध के आधार पर एक-दूसरे से संपर्क बढ़ाते हैं. यह संपर्क उन्हें एक-दूसरे से परिचय और मेल-जोल बढ़ाने में मदद करता है. यह मेलजोल चिरकालिक भी हो सकता है और अस्थाई भी. (featured image)
इस तरह की जानकारी पहली बार पढ़ने को मिली
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