पृथ्वी पर वर्तमान जन्म-दर लगभग 16,000 शिशु प्रति घंटा है और मृत्यु-दर लगभग 9,000 व्यक्ति प्रति घंटा है. इसका अर्थ यह है कि पृथ्वी पर साल के हर महीने हर दिन के हर घंटे में जनसंख्या लगभग 7,000 की दर से बढ़ती जा रही है.
यदि हम यह मान लें कि हमारे वर्तमान ज्ञान और टैक्नोलॉजी के बूते पर हम अन्य ग्रहों को रहने योग्य बना लें तो भी हम 7,000 व्यक्तियों को वहां तक कैसे भेज सकेंगे? हमें वहां प्रति घंटे 7,000 से अधिक व्यक्ति भेजने होंगे तभी हम पृथ्वी की जनसंख्या को कम कर पाएंगे. हम इतने विशाल अंतरिक्ष यान कैसे बनाएंगे और उनमें सप्लाई का इंतजाम कैसे करेंगे? उन यानों को ऊर्जा कैसे मिलेगी – वह भी तब जब हम पृथ्वी के संसाधनों का पर्याप्त दोहन कर चुके होंगे.
हमारे सामने कोई विकल्प नहीं है. या तो हम पृथ्वी की देखभाल करें ताकि भावी पीढ़ियां यहां रह सकें, अन्यथा कभी-न-कभी मानव जाति का विनाश निश्चित है.
जेयर्ड डायमंड (Jared Diamond) ने ईस्टर द्वीपों (Easter Island) में रहने वाली सभ्यताओं और माया (Mayans) लोगों के बारे में लिखा है जिन्होंने अपने सारे संसाधन खत्म कर दिए और नष्ट हो गए. हमारा पर्यावरणीय फुटप्रिंट पहले ही विशाल हो चुका है और संभाले नहीं संभल रहा हालांकि हमारे संसाधन अभी कुछ बचे हुए हैं, फिर भी किसी दूसरे ग्रह पर पूरी मानव आबादी को ले जाने की बात सोचना भी कठिन है. यदि मंगल ग्रह को जीवन के पनपने योग्य बनाया जाए तो भी उसकी टेराफार्मिंग में ही हजारों वर्ष लग जाएंगे.
फिलहाल ऐसा कोई ग्रह नहीं है जिस पर हम जा सकते हों. हमें ऐसे कुछ संभावित ग्रहों की जानकारी है लेकिन हम यह नहीं जानते कि हम उनकी संभावना को वास्तविकता में कैसे बदल सकते हैं क्योंकि वर्तमान साधनों से वहां तक जाने में हमें सैंकड़ों-हजारों वर्ष लगेंगे.
अब यदि हम पृथ्वी के संसाधनों की बात करें तो ऐसे बहुत से संसाधन हैं जिनका नवीनीकरण किया जा सकता है बशर्ते हम उनका प्रबंधन बेहतर करें. हमें पृथ्वी के संसाधनों के प्रयोग को सुधारना होगा क्योंकि विकासशील देशों में बढ़ रहे मध्यवर्ग की ज़रूरतों ने भी परिस्तिथियों को जटिल बना दिया है.
यहां मैं यह मानकर चल रहा हूं कि मनुष्यों का संपूर्ण विनाश कर सकने वाली घटना अचानक बिना किसी चेतावनी के नहीं होगी. यदि कोई बड़ा उल्का पिंड या क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकरा गया तो हम कुछ नहीं कर सकेंगे. यह बहुत संभव है कि पूर्ण विनाश को न्यौता देने वाली घटना धीरे-धीरे हमें प्रभावित करती जाएगी और हमें अनेक चिन्ह और चेतावनी देगी.
हमें अपनी सारी ऊर्जा, सारी शक्ति, सारे संसाधन, सारा धन, सारा चिंतन, सारे प्रयास, और सारे इनोवेशन को अंतर्तारकीय यात्रा को सुगम बनाने की दिशा में झोंकना पड़ेगा. यदि हमारे विनाश की घड़ी सर पर टिक-टिक करने लगेगी तो अंतिम विकल्प के रूप में हमें बहुत थोड़े से मनुष्यों को पृथ्वी से बाहर इस उम्मीद से भेजना पड़ेगा कि वे मानव जाति के अस्तित्व को सुरक्षित रखेंगे.
यदि हम पृथ्वी के विनाश के बारे में नहीं सोचें तो भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा खतरा हमारे ऊपर मंडरा रहा है. मानव जाति के इतिहास में हम अब उस मोड़ पर आ खड़े हुए हैं जब हम अपनी आंखों से प्रकृति को हमारे द्वारा हुए नुकसान को देख सकते हैं. हमें पृथ्वी को किसी भी हालत में बचाना होगा. हमें इस आदर्श ग्रह पर विकसित होने में लाखों वर्ष लगे हैं. यह हमारा घर है. यह अभी भी अरबों व्यक्तियों को आश्रय दे रहा है जबकि दूसरे ग्रहों पर हमें कुछ सौ व्यक्तियों की कॉलोनी को सहेजने में ही नानी याद आ जाएगी क्योंकि हमें पृथ्वी जैसे किसी ग्रह के मिलने की संभावना न-के-बराबर है.
हाल ही में हुई एक रिसर्च से कुछ संसाधनों के पूर्ण दोहन होने की संभावित अवधि का पता चला है. ये आंकड़े इन वस्तुओं की मौजूदा खपत के आधार पर तैयार किए गए हैं. समय बीतने के साथ-साथ इनमें सुधार और बिगाड़ भी हो सकता है.
- पेट्रोलियमः 2045.
- तांबा: 2040.
- सीसा: 2025. दस वर्ष से भी कम.
- एंटीमनी: 2026.
- कोयला: 2056.
- खनिज: 2050.
- टिन, जस्ता: 2031.
- भोजन: 2050. ज़रा सोचिए. हमारे जीवनकाल में ही पृथ्वी पर सभी व्यक्तियों के लिए आहार की भारी कमी होनेवाली है.
चीज़ों की बरबादी होते देखने पर दो पीढ़ियों पहले लोग कहते थे कि “अपने नाती-पोतों के बारे में सोचो,” एक पीढ़ी पहले लोग कहने लगे “अपने बच्चों के बारे में सोचो”. अब उनकी कही बातें सच साबित होने जा रही हैं. हमारी पीढ़ी पृथ्वी के अधिकांश संसाधनों को खत्म होता देखेगी. ये सभी संसाधन शून्य कभी नहीं होंगे लेकिन उन्हें प्राप्त करना इतना कठिन और महंगा होता जाएगा कि हम उन्हें समाप्त मानकर बैठ जाएंगे.
हमें जो करना है, यहीं करना है. हमारा समय बहुत पहले शुरु हो चुका था. (featured image)